NCERT Solutions Class 7 हमारे अतीत Chapter-8 (ईश्वर से अनुराग)

NCERT Solutions Class 7 हमारे अतीत Chapter-8 (ईश्वर से अनुराग)

NCERT Solutions Class 7  हमारे अतीत 7 वीं कक्षा से Chapter-8 (ईश्वर से अनुराग) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी हमारे अतीत के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 7 हमारे अतीत Chapter-8 (ईश्वर से अनुराग)
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर

Class 7 हमारे अतीत

पाठ-8 (ईश्वर से अनुराग)

अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर

पाठ-8 (ईश्वर से अनुराग)

प्रश्न 1 – निम्नलिखित में मेल बैठाएँ:-

(क) बुद्ध                            नामघर

(ख) शंकरदेव                         विष्णु की पूजा

(ग) निज़ामुद्दीन औलिया           सामाजिक अंतरों पर सवाल उठाए

(घ) नयनार                           सूफ़ी संत

(ड़) अलवार                           शिव की पूजा

उत्तर:-

(क) बुद्ध           सामाजिक अंतरों पर सवाल उठाए

(ख) शंकरदेव            नामघर

(ग) निज़ामुद्दीन औलिया            सूफी संत

(घ) नयनार                  शिव की पूजा

(ड़) अलवार                 विष्णु की पूजा

प्रश्न 2 – रिक्त स्थान की पूर्ति करे:-

(क) शंकर ______ के समर्थक थे।

(ख) रामानुज _____ के द्वारा प्रभावित हुए थे।

(ग) _____ , ____और ___वीरशैव मत के समर्थक थे।

(घ) _______ महाराष्ट्र में भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

उत्तर:-

(क)  शंकर अद्वैत के समर्थक थे।

(ख) रामानुज अलवार के द्वारा प्रभावित हुए थे।

(ग) वसवन्ना,  अल्लामा प्रभु, और ज अक्का महादेवी   वीरशैव मत के समर्थक थे।

(घ) पंढरपुर महाराष्ट्र में भक्ति परंपरा का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

प्रश्न 3 – नाथपंथियों, सिद्धों और योगियों के विश्वासों और आचार-व्यवहारों का वर्णन करें

उत्तर:- इस काल में अनेक ऐसे धार्मिक समूह उभरे जिन्होंने साधारण तर्क वितर्क का सहारा लेकर रूढ़िवादी धर्म के कर्मकाण्डों और अन्य बनावटी पहलुओं तथा समाज व्यवस्था की अलोचना की। उनमे नाथपंथी, सिद्धों और योगी उल्लेखनीय है। उन्होंने संसार का परित्याग करने का समर्थन किया। उनके विचार से निराकार परम सत्य का चिन्तन – मनन और इसके साथ हो जाने की अनुभूति ही मोक्ष का मार्ग है। इसके लिए उन्होंने योगासन, प्राणायाम और चिन्तन मनन जैसी क्रियाओं के माध्यम से मन एवं शरीर को कठोर प्रशिक्षण देने की आवश्यकता पर बल दिया। ये समूह खासतौर पर नीची कहीं जाने वाली जातियों में बहुत लोकप्रिय हुए। उनके द्वारा की गई रूढ़िवादी धर्म की अलोचना ने भक्तिमार्गीय धर्म के लिए आधार तैयार किया जो आगे चलकर उत्तरी भारत में लोकप्रिय शक्ति बना।

प्रश्न 4 – कबीर द्वारा अभिव्यक्त प्रमुख विचार क्या-क्या थे ? उन्होंने इन विचारों को कैसे अभिव्यक्त किया ?

उत्तर:-कबीर सम्भ्वत: पंद्रहवी- सोलहवीं शताब्दी में हुए थे। वे अत्यधिक प्रभावशाली संत थे। हमें उनके विचारों की जानकारी उनकी साखियों और पदों के विशाल संग्रह से मिलती है, जिनके बारे में यह कहा जाता है कि इनकी रचना तो कबीर ने की थी परन्तु ये घुमंतू भजन गायकों द्वारा गाए जाते थे। कबीर के विचार प्रमुख धार्मिक परम्पराओं की पूर्ण एवं प्रचण्ड अस्वीकृति पर आधारित था। उनके उपदेशों में ब्राह्मणवादी हिन्दू धर्म और इस्लाम दोनों की बाह्य आडंबरपूर्ण पूजा के सभी रूपों का मजाक उड़ाया गया।

आइए समझे

प्रश्न 5 – सूफियों के व्यवहार क्या थे ?

उत्तर:-सूफी मुसलमान रहस्यवादी थे। वे धर्म के बाहरी आडंबरो को अस्वीकार करते हुए ईश्वर के प्रति प्रेम और भक्ति तथा सभी मनुष्यों के प्रति दयाभाव रखने पर बल देते थे। वे ईश्वर के साथ ठीक उसी प्रकार जुड़े रहना चाहते थे, जिस प्रकार एक प्रेमी, दुनिया की परवाह किए बिना अपनी प्रियतमा से जुड़े रहना चाहते हो।

प्रश्न 6 – आपके विचार से बहुत से गुरुओं ने उस समय प्रचलित धार्मिक विश्वासों तथा प्रथाओं को अस्वीकार क्यों किया ?

उत्तर:-हमारे विचार से बहुत – से गुरुओं ने उस समय प्रचलित विश्वासों तथा प्रथाओं को निम्नलिखित कारणों से अस्वीकार किया। बहुत से गुरु एक ही धार्मिक शक्ति में विश्वास करते थे। उनका विश्वास था कि प्रचलित धार्मिक विश्वास कर्मकांडा से छुटकारा पाकर ही नीची जातियों को मार में समानता पर लाया जा सकता है। बहुत से गुरुओं ने ईश्वर भक्ति के अधिकार करना चाहा। वे ईश्वर की भक्ति को बड़े – बड़े से मुक्त करके सरल बनाना चाहते थे।

प्रश्न 7 – बाबा गुरु नानक की प्रमुख शिक्षाएँ क्या थी ?

उत्तर:- तलवंडी में जन्म लेने वाले बाबा गुरु नानक ने करतारपुर में एक केंद्र स्थापित करने से पहले कई यात्राएं की। उन्होंने अपने अनुयायियों के लिए करतारपुर में एक नियमित उपासना पद्धति अपनाई, जिनके अंतर्गत उन्हीं के भजनों को गाया जाता था। उनके अनुयायी अपने अपने पहले धर्म या जाति अथवा लिंग भेद को नजरअंदाज कर एक सांझी रसोई में इकठ्ठा खाते पीते थे। उनका मानना था कि ईश्वर केवल एक हैं। ईश्वर को कभी जाति के अनुसार नहीं बांटना चाहिए। गुरुनानक सभी जाति और लिंग को एक सामान मानते थे। उनका कहना था कि अभी भी किसी को दुःख नहीं पहुंचना चाहिए।

आइए विचार करें

प्रश्न 8 – जाति के प्रति वीरशैवो अथवा महाराष्ट्र के संतो का दृष्टिकोण कैसा था ? चर्चा करें।

उत्तर:-वीरशैवों ने सभी व्यक्तियों की समानता के पक्ष में तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने जाति तथा नारी के प्रति ब्राह्मणवादी विचारधारा का विरोध किया। इसके अलावा वीरशैव सभी प्रकार के कर्मकांडों और मूर्तिपूजा के भी विरोधी थे। इन सन्तों ने इस बात पर बल दिया कि असली भक्ति दूसरों के कष्ट दूर करने में है। महाराष्ट्र के सन्तों ने सभी प्रकार के कर्मकांडों व जन्म पर आधारित सामाजिक अंतरों का विरोध किया ।

प्रश्न 9 – आपके विचार से जनसाधारण ने मीरा की याद को क्यों सुरक्षित रखा ?

उत्तर:-जनसाधारण ने मीरा की याद को इसलिए सुरक्षित रखा क्योंकि मीराबाई एक राजपूत राजकुमारी थी। जिनका विवाह सोलहवीं शताब्दी में मेवाड़ के राजसी घराने में हुआ था। वे श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित थी। उन्होंने अपने सम्पूर्ण भक्तिभाव को कई भजनों में भी व्यक्त किया। उनके गीतों ने उच्च जातियों के रीतियों नियमों को खुलीं चुन्नौती दी। ये गीत लोकप्रिय भी हुए और पीढ़ी दर पीढ़ी मौखिक रूप से चलती भी आ रही है। जब भी प्रसारण की कोई प्रक्रिया होती ये लोग अपने अनुभव भी जोड़ देते। इस तरह आज मिलने वाले गीत, संतों की रचनाए तो है ही, साथ साथ उन पीढ़ियों की लोगों की रचनाए भी मानी जा सकती है जो उन्हें गाया भी करते थे। इस प्रकार वे हमारी जीती जागती संस्कृति की याद बन गई।

आइए करके देखें

प्रश्न 10 – पता लगाए कि क्या आपके आसपास भक्ति परंपरा के संतो से जुड़ी हुई कोई दरगाह, गुरुद्वारा या मंदिर है। इनमें से किसी एक को देखने जाइए और बताइए कि वहां आपने क्या देखा और सुना।

उत्तर:- हमारे आसपास भक्ति परम्परा से जुड़ा एक मंदिर है। उस मंदिर का नाम राधे श्याम मंदिर है। मैं मंदिर में शनिवार को गया था। मंदिर में बहुत सारे भगवान जी की प्रतिमाएँ देखी। मंदिर में रात का दृश्य बहुत ही सुंदर था। चारों तरफ लडियाँ लगाई गई थी। मंदिर में जैसे ही सभी लोग आने लगते है, आरती शुरू हो जाती है। किसी घर में से कुछ व्यक्ति अपने घर की सुख शांति के लिए पूजा कराने आए हुए थे। कुछ बच्चे खेल रहे थे। मैंने पंडित जी से मंदिर के इतिहास के बारे में भी पूछा। पंडित जी ने मुझे कहान सुनाई और यह मंदिर राधाकृष्ण जी की याद में और उनके प्रति भक्ति भाव दिखाने के लिए बनाया गया। इस मंदिर को बनाने में जो भी साहित्य कला, वास्तुकला और शैली का प्रयोग हुआ उन्होंने मुझे बताया। मैंने पंडित जी से आशीर्वाद लिया, सभी बातें अच्छे से सुनी और प्रसाद लेकर घर पे आ गया। आप स्वयं किसी मंदिर, दरगाह, गुरद्वारे जाइए, देखिए और इतिहास सुनिए।

प्रश्न 11 – इस अध्याय में अनेक संत कवियों की रचनाओं के उद्धरण दिए गए हैं। उनकी कृतियों के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करें और उनकी कविताओं को नोट करें, जो यहां नहीं दी गई है। पत्ता लगाए कि क्या यह गाई जाती है। यदि हां, तो कैसे गाई जाती हैं और कवियों ने इन में किन विषयों पर लिखा था।

उत्तर:- इस अध्याय में अनेक संतो के बारे में और उनकी रचनाओं के बारे में बताया गया है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण ज्ञानेश्वर, तुकाराम, एकनाथ और सूखाबाई के बारे में बताया गया है। इन संत कवियों ने सभी प्रकार के कर्मकाण्डों, पवित्रता के ढोंगो, और जन्म पर आधारित सामाजिक अंतरों का विरोध किया। ये सब कविताएं सब हर्षोल्लास से गाते भी और नाचते भी।

संतकृतियांकविताओं के कुछ अंश/   नोट की हुई कुछ कविताएं
ज्ञानेश्वर ज्ञानेश्वरी (भावार्थदीपिका), अमृतानुभव, अनेक अभंग भावेवीण भक्ति भक्तिवीण मुक्ति बळेवीण शक्ति बोलू नये। कैसेनि दैवत प्रसन्न त्वरित उगा राहे निवान्त शिणसी वाया। 
तुकाराम चार हजार से अधिक अभंग मैं भुली घरजानी बाट . गोरस बेचन आयें हाट। कान्हा रे मनमोहन लाल . सब ही बिसरूं देखें गोपाल ॥ 
एकनाथ चतुश्लोकी भागवत, पौराणिक आख्यान और संतचरित्र,  भागवत,  रुक्मिणी स्वयंवर ज्ञानियाचा एका बोल हे ऐकता। ठेवितो मी माथा तुझ्या पायी॥ ज्ञानाईने तुला सांगताच स्वप्नी। आलास धावुनी आळंदीस ॥ 
मीराबाई नरसी जी का मायरा, राग गोविंद , राग सोरठ के पद, मीराबाई की मल्हार नैना निपट बंकट छबि अटके। देखत रूप मदनमोहन को, पियत पियूख न मटके। बारिज भवाँ अलक टेढी मनौ, अति सुगंध रस अटके॥ टेढी कटि, टेढी कर मुरली, टेढी पाग लट लटके। 

प्रश्न 12 – इस अध्याय में अनेक संत कवियों के नामों का उल्लेख किया गया है। परंतु कुछ की रचनाओं को इस अध्याय में शामिल नहीं किया गया है उस भाषा के बारे में कुछ और जानकारी प्राप्त करें, जिसमें ऐसे कवियों ने अपनी कृतियों की रचना की। क्या उनकी रचनाएं गाई जाती थी? उनकी रचनाओं का विषय क्या था ?

उत्तर:- कुछ संतो की रचनाएं पढ़ने सुनने के विषयों से जुड़ी हुई होती थी, तथा कुछ की गाने- नाचने से जुड़ी।

संतप्रमुख रचनाएं
ज्ञानेश्वर श्रीमद्भागवत गीता 
तुकाराम मैं भुली घरजानी बाट। गोरस बेचन आयें हाट,कान्हा रे मनमोहन लाल। सब ही बिसरूं देखें गोपाल। 
एकनाथ लोकगीतों (भारुड) की रचनाएँ। 
मीराबाई गीत गोविन्द टीका,सोरठा के पद ,राग गोविन्द, नरसी जी रो मायरो। 

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