NCERT Solutions Class 8 रुचिरा Chapter-1 (सुभाषितानि)
NCERT Solutions Class 8 रुचिरा 8 वीं कक्षा से Chapter-1 (परिमेय संख्याओं पर संक्रियाएँ) के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी रुचिरा के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
एनसीईआरटी प्रश्न-उत्तर
Class 8 रुचिरा
पाठ-1 (सुभाषितानि)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
पाठ-1 (सुभाषितानि)
अभ्यासः (Exercise)
प्रश्नः 1.
पाठे दत्तानां पद्यानां (श्लोकानां) सस्वरवाचनं कुरुत-(पाठ में दिए गए श्लोकों का सस्वर वाचन कीजिए-)
उत्तरम्:
छात्र स्वयं सुस्वर वाचन करें।
प्रश्नः 2.
श्लोकांशेषु रिक्तस्थानानि पूरयत-(श्लोक के अंशों में रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए-)
(क) समुद्रमासाद्य ………………………..
(ख) ……………………….. वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति।
(ग) तद्भागधेयं …………………………….. पशूनाम्।
(घ) विद्याफलं …………………………… कृपणस्य सौख्यम्।
(ङ) पौरुषं विहाय यः ……………………….. अवलम्बते। ।
(च) चिन्तनीया हि विपदाम् …………………………. प्रतिक्रियाः ।
उत्तरम्:
(क) भवन्त्यपेयाः,
(ख) श्रुत्वा,
(ग) परमं,
(घ) व्यसनिन:,
(ङ) दैवम्,
(च) आदावेव।
प्रश्नः 3.
प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-(प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए-)
(क) व्यसनिन: किं नश्यति?
(ख) कस्य यशः नश्यति?
(ग) मधुमक्षिका किं जनयति?
(घ) मधुरसूक्तरस के सृजन्ति?
(ङ) अर्थिनः केभ्यः विमुखा न यान्ति।
उत्तरम्:
(क) विद्याफलम्,
(ख) लुब्धस्य,
(ग) माधुर्यम्,
(घ) सन्तः
(ङ) महीरुहेभ्यः
प्रश्नः 4.
अधोलिखित-तद्भव-शब्दानां कृते पाठात् चित्वा संस्कृतपदानि लिखत-(नीचे लिखे तद्भव शब्दों के लिए पाठ में से संस्कृत शब्द चुनकर लिखिए-)
यथा- कंजूस कृपणः
कड़वा …………….
पूँछ …………..
सन्तः …………….
लोभी ……………….
मधुमक्खी ………………….
तिनका ………………
उत्तरम्:
कटुकम्, पुच्छम्, लुब्धः, मधुमक्षिका, तृणम्।
प्रश्नः 5.
अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदं क्रियापदं च चित्वा लिखत-(नीचे लिखे वाक्यों में से कर्तृपद और क्रियापदों का चयन करके लिखिए-)
उत्तरम्:
प्रश्नः 6.
रेखाङ्कितानि पदानि आधृत्य प्रश्ननिर्माणं कुरुत-(रेखांकित पदों के आधार पर प्रश्न-निर्माण कीजिए-)
(क) गुणा: गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति।
(ख) नद्यः सुस्वादुतोयाः भवन्ति।
(ग) लुब्धस्य यशः नश्यति।
(घ) मधुमक्षिका माधुर्यमेव जनयति।
(ङ) तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः।
उत्तरम्:
(क) के गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति?
(ख) काः सुस्वादुतोयाः भवन्ति?
(ग) कस्य यशः नश्यति?
(घ) का माधुर्यमेव जनयति?
(ङ) तस्य कस्मिन् / कुत्र तिष्ठान्ति वायसाः।
प्रश्नः 7.
उदाहरणानुसारं पदानि पृथक् कुरुत-(उदाहरण अनुसार पदों को पृथक्-पृथक् कीजिए)
यथा- समुद्रमासाद्य – समुद्रम् + आसाद्य
1. माधुर्यमेव – ……………. + ……………….
2. अल्पमेव – ……………. + ……………….
3. सर्वमेव – ……………. + ……………….
4. दैवमेव – ……………. + ……………….
5. महात्मनामुक्ति: – ……………. + ……………….
6. विपदामादावेव – ……………. + ……………….
उत्तरम्:
1. माधुर्यम् + एव
2. अल्पम् + एव
3. सर्वम् + एव
4. दैवम् + एव
5. महात्मनाम् + उक्तिः
6. विपदाम् + आदौ + एव
अतिरिक्तः अभ्यासः
प्रश्नः 1.
श्लोकांशान् परस्परम् मेलयत-(श्लोकांशों का परस्पर मेल कीजिए-)
उत्तरम्:
प्रश्नः 2.
पदानि पृथक्कुरुत (पदों को पृथक् कीजिए-)
1. कुलमर्थपरस्य = (…………….. + …………………..)
2. त्वमेव = (…………….. + …………………..)
3. अहमपि = (…………….. + …………………..)
4. समुद्रमासाद्य = (…………….. + …………………..)
5. गृहमागतः = (…………….. + …………………..)
उत्तरम्:
1. कुलम् + अर्थपरस्य
2. त्वम् + एव
3. अहम् + अपि
4. समुद्रम् + आसाद्य
5. गृहम् + आगतः
प्रश्नः 3.
समानार्थकं पदं चित्वा समक्षं रिक्तस्थाने लिखत-(समानार्थक पद चुनकर समाने रिक्त स्थान में लिखिए-)
मञ्जूषा-सज्जनाः, काकाः, कीर्तिः, त्यक्त्वा, राजा
1. यशः = ………………………..
2. नराधिपः = ………………………..
3. सन्तः = ………………………..
4. वायसाः = ………………………..
5. विहाय = ………………………..
उत्तरम्:
1. कीर्तिः
2. राजा
3. सज्जनाः
4.काकाः
5. विहाय।
प्रश्नः 4.
अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदं क्रियापदं च चित्वा लिखत-(नीचे लिखे वाक्यों में से कर्त्तापद और क्रियापद को चुनकर लिखिए-)
उत्तरम्:
1. मधुमक्षिका – जनयति
2. व्यसनम् – नाशयति
3. सज्जनाः – आकर्णयन्ति
4. धर्म: – नश्यति
5. यः – अवलम्बते
प्रश्नः 5.
विपरीतार्थकानि पदानि मेलयत-(विपरीतार्थक पदों का परस्पर मेल कीजिए-)
कटुकम् – वैरम्
दोषाः – नश्यति
मैत्री – अपयशः
पेयाः – गुणा:
सृजति – मधुरम्
यशः – अपेयाः
उत्तरम्:
कटुकम् – मधुरम्;
दोषाः – गुणा:;
मैत्री – वैरम्;
पेयाः – अपेयाः;
सृजति – नश्यति;
यशः – अपयशः।
बहुविकल्पीयप्रश्नाः
प्रश्नः 1.
प्रत्तविकल्पेभ्यः शुद्धम् उत्तरम् चित्वा लिखत-(दिए गए विकल्पों में से शुद्ध उत्तर चुनकर लिखिए)
1. यो हि दैवमेवावलम्बते। (…………………… + …………………..) (एव + अवलम्बते, एवा + अवलम्बते, एवा + आवलम्बते)
2. समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः (…………………… + …………………..) (भवन्ति + पेयाः, भविन्त + अपेयाः, भवन्त्य + पेयाः)
3. लुब्धस्य नश्यति ………………….। (यशम्, यश, यशः)
4. मधुमक्षिका पुष्पाणां रस …………….. (पा + क्त्वा) मधुरं मधु जनयति। (पात्वा, पिबित्वा, पीत्वा)
5. राज्यं प्रमत्तसचिवस्य: ………………….। (कृपणस्य, पिशुनस्य, नराधिपस्य)
उत्तरम्:
1. एव + अवलम्बते
2. भवन्ति + अपेयाः
3. यशः
4. पीत्वा
5. नराधिपस्य।
प्रश्न: 2.
उचितं विकल्पं चित्वा एकपदेन उत्तरत-(उचित विकल्प चुनकर एक पद में उत्तर दीजिए-)
1. अर्थपरस्य कः नश्यति? (गुणः, धर्मः, अर्थः)
2. कस्य सौख्यं नश्यति? (कृपणस्य, लुब्ध, पिशुनस्य)
3. के निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति? (सज्जनाः, दर्जुनाः, गुणाः)
4. के मधुरसूक्तरसं सृजन्ति? (मधुमक्षिकाः, सन्तः, समुद्राः)
5. नद्यः कम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति? (निर्गुणम्, समुद्रम्, स्वभावम्)
उत्तरम्:
1. धर्म:
2. कृपणस्य
3. गुणाः
4. सन्तः
5. समुद्रम्
प्रश्नः 3.
उचितपदं चित्वा प्रश्ननिर्माणम् कुरुत- (उचित पदों को चुनकर प्रश्न निर्माण कीजिए-)
1. सन्तः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति। (कः, किम्, के)
2. लुब्धस्य यश: नश्यति। (कः, कस्य, कम्) ।
3. गुणाः गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति। (कस्मिन्, कयोः, केषु)
4. व्यसनेन विद्याफलम् नश्यति। (क:, किम्, केन)।
5. नद्यः सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति। (का, के, का:)
6. वह्निना प्रदीप्तेगृहे कूपखननं न युक्तम्। (कः, किम्, केन)
7. महीरुहाः धन्याः भवन्ति। (कः, किम्, कीदृशाः)
8. विहाय पौरुषम् यो हि दैवम् एव अवलम्बते। (कः, कस्य, कम्)
उत्तरम्:
1. के
2. कस्य
3. केषु
4. किम्।
5. काः
6. केन
7. कीदृशाः
8. कम्
पाठ का परिचय (Introduction of the Lesson)
‘सुभाषित’ शब्द सु + भाषित दो शब्दों के मेल से बना है। सु का अर्थ है-सुन्दर, मधुर और भाषित का अर्थ है-वचन। इस प्रकार सुभाषित का अर्थ है-सुन्दर/मधुर वचन। इस पाठ में सूक्तिमञ्जरी, नीतिशतकम्, मनुस्मृतिः, शिशुपालवधम्, पञ्चतन्त्रम् से रोचक और उदात्त विचारों को उभारने वाले श्लोकों का संग्रह किया गया है।
पाठ-शब्दार्थ एवं सरलार्थ ।
(क) गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति
ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषाः ।
सुस्वादुतोयाः प्रभवन्ति नद्यः
समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेयाः ॥1॥
अन्वयः गुणा: गुणज्ञेषु गुणाः भवन्ति। ते निर्गुणं प्राप्य दोषाः भवन्ति। सुस्वादुतोयाः नद्यः प्रभवन्ति, परं (ता:) समुद्रम् आसाद्य अपेयाः भवन्ति।
शब्दार्थ : गुणज्ञेषु = गुणियों में निर्गुणं = निर्गुण/गुणहीन को। प्राप्य = प्राप्त करके/पहुँचकर। दोषाः = दोष। सुस्वादुतोयाः = स्वादिष्ट जल वाली। नद्यः = नदियाँ। प्रभवन्ति ( प्र + भू ) = निकलती है। आसाद्य = पहुँचकर। अपेयाः = न पीने योग्य। भवन्ति = हो जाती हैं।
सरलार्थ : गुण गुणवान व्यक्तियों में गुण होते हैं किंतु गुणहीन व्यक्ति को पाकर वे (गुण) दोष बन जाते हैं। नदियाँ स्वादिष्ट जल से युक्त ही (पर्वत से) निकलती हैं। किन्तु समुद्र तक पहुँचकर वे पीने योग्य नहीं रहती।
भाव : संगति में गुण विकसित होते हैं किंतु कुसंगति में वही गुण दोष स्वरूप बन जाते हैं।
(ख) साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः
साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः ।।
तृणं न खादन्नपि जीवमानः
तद्भागधेयं परमं पशूनाम् ॥ 2 ॥
अन्वय : साहित्यसङ्गीतकलाविहीनः (नरः) साक्षात् पुच्छविषाणहीनः पशुः तृणं न खादन् अपि जीवमानः (अस्ति); तत् पशूनां परमं भागधेयम्।।
शब्दार्थ : विहीनः = रहित। साक्षात् = वास्तव में। पुच्छविषाणहीनः = पूँछ तथा सींग से रहित। तृणं = घास। खादन्नपि ( खादन् + अपि) = खाते हुए भी। जीवमानः = जीवित रहता है। भागधेयम् = भाग्य। परमम् = परम/बड़ा।
सरलार्थ : साहित्य, सङ्गीत व कला-कौशल से हीन व्यक्ति वास्तव में पूँछ तथा सींग से रहित पशु है जो घास न खाता हुआ भी (पशु की भाँति) जीवित है। वह तो (उन असभ्य पशु समान मनुष्यों) पशुओं का परम सौभाग्य है (कि घासफूस न खाकर अपितु स्वादिष्ट व्यञ्जन खाते हैं)।
भाव : साहित्य में अभिरुचि संगीत आदि कलाओं में कौशल से ही मनुष्य मनुष्य बनता है, अन्यथा वह पशु का-सा ही जीवन जीता रहता है।
(ग्) लुब्धस्य नश्यति यशः पिशुनस्य मैत्री
नष्टक्रियस्य कुलमर्थपरस्य धर्मः ।।
विद्याफलं व्यसनिनः कृपणस्य सौख्यं
राज्यं प्रमत्तसचिवस्य नराधिपस्य ॥ 3 ॥
अन्वय : लुब्धस्य यशः पिशुनस्य मैत्री, नष्टक्रियस्य कुलम्, अर्थपरस्य धर्मः व्यसनिनः विद्याफलम्, कृपणस्य सौख्यम् प्रमतसचिवस्य नराधिपस्य राज्यम् नश्यति।।
शब्दार्थ : लुब्धस्य = लालची व्यक्ति का। पिशुनस्य = चुगलखोर का। मैत्री = मित्रता। नष्ट क्रियस्य = जिसकी क्रिया नष्ट हो गई है उसका अर्थात अकर्मशील व्यक्ति का। अर्थपरस्य = अर्थपरायण व्यक्ति का (धन को अधिक महत्त्व देने वाले का)। व्यसनिनः = बुरी आदतों वालों का। विद्याफलम् = विद्या का फल। कृपणस्य = कंजूस का। सौख्यम् = सुख। प्रमत्तसचिवस्य = प्रमत्त/कर्तव्य से पराङमुख मन्त्री वाले (राजा) का। नराधिपस्य = राजा का। नश्यति = नष्ट हो जाता है।
सरलार्थ : लालची व्यक्ति का यश, चुगलखोर की दोस्ती, कर्महीन का कुल, अर्थ/धन को अधिक महत्त्व देने वाले का धर्म अर्थात् धर्मपरायणता, बुरी आदतों वाले का विद्या का फल अर्थात् विद्या से मिलने वाला लाभ, कंजूस का सुख और प्रमाद करने वाले मन्त्री युक्त राजा को राज्य/सत्ता नष्ट हो जाता/जाती है।
भाव : यदि यश चाहिए तो व्यक्ति लालच न करे, मित्रता चाहिए तो चुगलखोर न हो, धर्माचरण करना हो तो धन लाभ को अधिक महत्त्व न दे, विद्या का फल प्राप्त करना हो तो बुरी आदतों से बचे। जीवन में सुख चाहिए तो कंजूस न हो और सत्ता को बनाए रखना हो तो मन्त्री कर्तव्य के प्रति लापरवाह न हो। |
(घ) पीत्वा रसं तु कटुकं मधुरं समानं
माधुर्यमेव जनयेन्मधुमक्षिकासौ ।
सन्तस्तथैव समसज्जनदुर्जनानां
श्रुत्वा वचः मधुरसूक्तरसं सृजन्ति ॥4॥
अन्वय : असौ मधुमक्षिका कटुकं मधुरं (वा) रसं समानं पीत्वा माधुर्यम् एव जनयेत् तथैव सन्तः समसज्जनदुर्जनानां वचः श्रुत्वा मधुरसूक्तरसम् सृजन्ति।
शब्दार्थ : मधुमक्षिका = मधुमक्खी। असौ = यह। कटुकं = कटुकड़वा। पीत्वा (पा+क्त्वा ) = पीकर। माधुर्यम् = मिठास। जनयेत् = उत्पन्न करती है। सन्तस्तथैव ( सन्तः+तथा+एव) = सज्जन उसी प्रकार। वचः = वचन को। श्रुत्वा ( श्रु + क्त्वा) = सुनकर। सृजन्ति = सृजन करते हैं/रचना करते हैं। मधुरसूक्तरसम् = मधुर सूक्तियों के रस को।
सरलार्थ : जिस प्रकार यह मधुमक्खी मीठे अथवा कड़वे रस को एक समान पीकर मिठास ही उत्पन्न करती है, उसी प्रकार सन्त लोग सज्जन व दुर्जन लोगों की बात एक समान सुनकर सूक्ति रूप रस का सृजन करते हैं।
भाव : सन्त लोग सज्जन और दुर्जन में भेदभाव न कर दोनों की बात सुनकर अच्छी बातें कहते हैं, जिस प्रकार मधुमक्खी मीठा अथवा कड़वा दोनों रस एक समान पीकर मधु का ही निर्माण करती है।
(ङ) विहाय पौरुषं यो हि दैवमेवावलम्बते ।।
प्रासादसिंहवत् तस्य मूर्ध्नि तिष्ठन्ति वायसाः ॥ 5 ॥
अन्वय : यो हि पौरुषं विहाय दैवम् एव अवलम्बते, प्रसाद सिंहवत् तस्य मूर्ध्नि वायसा: तिष्ठन्ति।
शब्दार्थ : विहाय = छोड़कर। पौरुषम् = मेहनत (परिश्रम) को। यः (यो) = जो। हि = निश्चय से। दैवम् = भाग्य को। एव = ही। अवलम्बते = सहारा लेता है। प्रासादसिंहवत् = महल के द्वार पर बने सिंह की तरह। तस्य = उसके। मूर्ध्नि = सिर पर। तिष्ठन्ति = बैठते हैं। वायसाः = कौए।
सरलार्थ : जो व्यक्ति निश्चय से पुरुषार्थ छोड़कर भाग्य का ही सहारा लेते हैं। महल के द्वारा पर बने हुए नकली सिंह (शेर) की तरह उनके सिर पर कौए बैठते हैं।
भाव : व्यक्ति को कभी भी अपने भाग्य पर निर्भर नहीं होना चाहिए बल्कि सदैव अपना पुरुषार्थ करते रहना चाहिए। भाग्य पर भरोसा करने वाला ऐसा व्यक्ति सदैव दिखावा ही करता है।
(च) पुष्पपत्रफलच्छायामूलवल्कलदारुभिः ।।
धन्या महीरुहाः येषां विमुखा यान्ति नार्थिनः ॥6॥
अन्वय : पुष्प-पत्र-फल-छाया-मूल-वल्कल-दारुभिः महीरुहा: धन्याः (भवन्ति), येषाम्अर्थिनः विमुखा न यान्ति।
शब्दार्थ : वल्कल = पेड़ की छाल। दारुभिः = लकड़ियों द्वारा। महीरुहाः = वृक्ष। मूल = जड़। पत्र = पत्ते। धन्याः = धन्य हैं। येषाम् = जिनके (जिनसे)। विमुखाः = विमुख (मुँह मोड़ने वाले)। न = नहीं। यान्ति = होते हैं। अर्थिनः = माँगने वाले।
सरलार्थ : फूल-पत्ते-फल-छाया-जड़-छाल और लकड़ियों से (के कारण) वृक्ष धन्य होते हैं, जिनसे माँगने वाले (कभी) विमुख (निराश/वापस) नहीं होते हैं।
भावः वृक्ष सदैव परोपकार करते हैं। वे अपने शरीर के अंगों से सदैव लोगों का भला ही करते रहते हैं। हमें भी वृक्षों की तरह हर प्रकार से लोगों की ही नहीं अपितु समस्त जीवों की सेवा करनी चाहिए।
(छ) चिन्तनीया हि विपदाम् आदावेव प्रतिक्रियाः।
न कूपखनेनं युक्तं प्रदीप्ते वह्निना गृहे ॥7॥
अन्वय : हि विपदाम् आदौ एव प्रतिक्रियाः चिन्तनीयाः, वह्निना गृहे प्रदीप्ते कूपरवननं न युक्तम्।
शब्दार्थ : कूपखननं = कुआं खोदना। वह्मिना = अग्नि द्वारा। चिन्तनीयाः = सोचनी चाहिए। हि = निश्चय से। विपदाम् = मुसीबतों का। आदौ एव = प्रारम्भ में ही। प्रतिक्रियाः = समाधान (उपाय)। युक्तम् = उचित। प्रदीप्ते = जलने पर। गुहे = घर के (में)।
सरलार्थ : निश्चय से विपत्तियों (मुसीबतों) का शुरुआत में ही इलाज (समाधान) सोचना चाहिए। आगे से घर के जलने पर कुआँ खोदना उचित नहीं होता है।
भाव : प्रत्येक मनुष्य को समस्या का प्रारम्भ से ही समाधान ढूँढ़कर रखना चाहिए। जिससे यदि समस्या आती है तो वह मुसीबत (दु:ख का कारण) न बन जाए। इसी में मनुष्य की भलाई है। समस्या सामने आ जाने पर समाधान ढूंढना उचित नहीं होता है।