NCERT Solutions Class 10 कृतिका Chapter-2 (जॉर्ज पंचम की नाक)
Class 10 कृतिका
पाठ-2 (जॉर्ज पंचम की नाक)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
पाठ-2 (जॉर्ज पंचम की नाक)
प्रश्न 1.
सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की नाक लगाने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है वह उनकी किस मानसिकता को दर्शाती है। [Imp.] [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
अथवा
जॉर्ज पंचम की नाक को लेकर सरकारी क्षेत्र की बदहवासी किस मानसिकता की द्योतक है? [CBSE; CBSE 2008 C]
उत्तर:
इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ के भारत आने की खबर से सरकारी तंत्र में जॉर्ज पंचम की टूटी नाक ठीक करने को लेकर जो चिंता या बदहवासी दिखाई देती है। वह हमारी गुलाम या परतंत्र मानसिकता को दर्शाती है। इससे यह पता चलता है। कि अंग्रेजों को देश छोड़ने के लिए विवश कर हम भले शारीरिक रूप से स्वयं को स्वतंत्र मानकर खुश हो लें, पर वास्तव में हम मानसिक गुलामी में अब भी जी रहे हैं।
इसका प्रमाण जगह-जगह अंग्रेजों की लगी मूर्तियाँ (लाट) तथा उनके नाम पर बने भवन तथा सड़कें हैं। वास्तव में इनका नामकरण देश के शहीदों तथा प्रतिष्ठित व्यक्तियों के नाम पर किया जा सकता है। वास्तव में हमारे नौकरशाह तथा नेतागण आज भी मानसिक गुलामी से मुक्त नहीं हो सके हैं। वे आज भी अंग्रेजों के प्रति वफ़ादार दिखाई देते हैं। इसके द्वारा लिए गए निर्णय में कभी-कभी देश के सम्मान एवं प्रतिष्ठा के महत्त्व को ध्यान में नहीं रखा जाता है।
प्रश्न 2.
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी का क्या कारण था? उसकी परेशानी को आप किस तरह तर्कसंगत ठहराएँगे?[CBSE] |
उत्तर:
रानी एलिजाबेथ के दरजी की परेशानी यह थी कि रानी भारत, पाकिस्तान और नेपाल के शाही दौरे पर कौन-सी वेशभूषा धारण करेंगी। उसे लगता था कि रानी की आन-बान-शान भी बनी रहनी चाहिए और उसकी वेशभूषा विभिन्न देशों के अनुकूल भी हो। दरजी की परेशानी जरूरत से अधिक है। किसी देश में घूमते वक्त अपने कपड़ों पर आवश्यकता से अधिक ध्यान देना, चकाचौंध पैदा करना अनावश्यक है। परंतु यदि रानी अपने कपड़ों को लेकर परेशान है तो दरजी बेचारा क्या करे? उसे तो रानी की शान और वातावरण के अनुकूल वेशभूषा तैयार करनी ही पड़ेगी।
प्रश्न 3.
‘और देखते ही देखते नयी दिल्ली का काया पलट होने लगा’–नयी दिल्ली के काया पलट के लिए क्या-क्या प्रयत्न किए गए होंगे? [A.I. CBSE 2008 C; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति के साथ भारत आने वाली थीं। उनके आने की जोर-शोर से चर्चा थी। उनके दिल्ली आने का भी कार्यक्रम था। आनन-फानन में नई दिल्ली का कायापलट करने का प्रयास किया जाने लगा। इसके लिए हर स्तर पर प्रयत्न किया गया होगा। इसके लिए-
- दिल्ली की सड़कों की साफ़-सफ़ाई की गई होगी।
- वहाँ की महत्त्वपूर्ण इमारतों को साफ़-सुथरा बनाया गया होगा तथा उन पर रंग-रोगन कर चमकाया गया होगा।
- उन पर सुंदर रोशनी की व्यवस्था कर आकर्षक बनाया गया होगा। उनके आने-जाने वाले रास्तों पर ध्वज लगाए गए होंगे।
- रास्तों के किनारों पर रंग-बिरंगे फूल तथा छायादार वृक्ष लगवाए गए होंगे।
- मार्ग पर पुलिस भी नियुक्त किए गए होंगे।
प्रश्न 4.
आज की पत्रकारिता में चर्चित हस्तियों के पहनावे और खान-पान संबंधी आदतों आदि के वर्णन का दौर चल पड़ा हैं
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता विशेषकर युवा पीढ़ी पर क्या प्रभाव डालती है? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
(क) इस प्रकार की पत्रकारिता मनोरंजन-पत्रकारिता के अंतर्गत आती है। हर देश का फैशन अपने समय के महत्त्वपूर्ण नायक-नायिकाओं की वेशभूषा को देखकर चलता है। अतः मनोरंजन-पत्रकारिता का चर्चित हस्तियों के खान-पान और पहनावे को लेकर बातें करना स्वाभाविक है। इन बातों को सीमित महत्त्व देना चाहिए। इन्हें समाचार-पत्र के भीतरी पृष्ठों पर मनोरंजन-परिशिष्ट के अंतर्गत ही स्थान मिलना चाहिए। इन्हें राष्ट्रीय समाचार-पत्रों की पहली खबर बनाना आवश्यकता से अधिक महत्त्व देना है। इस प्रवृत्ति पर रोक लगनी चाहिए।
(ख) इस तरह की पत्रकारिता आम जनता को रहन-सहन के तौर-तरीकों और फैशन आदि के प्रति जागरूक करती है। बहुत से युवक-युवतियाँ पढ़ाई-लिखाई से अधिक फैशन में रुचि लेने लगते हैं। वे काम की बातों से अधिक ध्यान ऊपरी दिखावे पर देने लगते हैं।
प्रश्न 5.
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने क्या-क्या यत्न किए? [ Imp.] [A.I. CBSE 2008; CBSE]
उत्तर:
जॉर्ज पंचम की लाट की नाक को पुनः लगाने के लिए मूर्तिकार ने कई प्रयास किए; जैसे-
- उसने सबसे पहले वह पत्थर ढुढ़वाने का प्रयास किया जिससे जॉर्ज पंचम की नाक बनी थी।
- सरकारी फाइलों से कुछ पता न चल पाने पर उसने स्वयं पर्वतीय प्रदेश की यात्राएँ की और पत्थर की खानों का निरीक्षण किया।
- भारत के किसी नेता की मूर्ति की नाक लगाने के लिए उसने पूरे देश के शहीद नेताओं की नाकों का नाप लिया पर असफल रहा।
- उसने वर्ष 1942 में बिहार में शहीद बच्चों की मूर्तियों की नाकों की नाप ली पर वे भी बड़ी निकलीं।
- अंत में उसने गुपचुप तरीके से जॉर्ज पंचम की लाट पर एक जिंदा नाक लगवाकर अपनी और देश की भलाई चाहने वालों की परेशानी दूर की।
प्रश्न 6.
प्रस्तुत कहानी में जगह-जगह कुछ ऐसे कथन आए हैं जो मौजूदा व्यवस्था पर करारी चोट करते हैं। उदाहरण के लिए ‘फाइलें सब कुछ हजम कर चुकी है।’ ‘सब हुक्कामों ने एक दूसरे की तरफ़ ताका।’ पाठ में आए ऐसे अन्य कथन छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
ऐसे अन्य व्यंग्यात्मक कथन इस प्रकार हैं
- शंख इंग्लैंड में बज रहा था, पूँज हिंदुस्तान में आ रही थी।
- गश्त लगती रही और लाट की नाक चली गई।
- सभी सहमत थे कि अगर यह नाक नहीं है तो हमारी भी नाक नहीं रह जाएगी।
- एक की नजर ने दूसरे से कहा कि यह बताने की जिम्मेदारी तुम्हारी है।
- पुरातत्व विभाग की फाइलों के पेट चीरे गए पर कुछ भी पता नहीं चला।
- एक खास कमेटी बनाई गई और उसके जिम्मे यह काम दे दिया गया।
- यह छोटा-सा भाषण फ़ौरन अखबारों में छप गया।
प्रश्न 7.
नाक मान-सम्मान व प्रतिष्ठा का द्योतक है। यह बात पूरी व्यंग्य रचना में किस तरह उभरकर आई है? लिखिए। [Imp.][CBSE]
उत्तर:
नाक सदा से ही प्रतिष्ठा का प्रश्न रही है। नाक की इसी प्रतिष्ठा को व्यंग्य रूप में इस पाठ में प्रस्तुत किया गया है। इस पाठ के माध्यम से देश के सरकारी अधिकारियों, कार्यालयों की कार्यप्रणाली, क्लर्को द्वारा अपनी जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति तथा काम को आनन-फानन में येनकेन प्रकारेण निपटाने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है। पाठ में हम भारतीयों की गुलाम मानसिकता पर भी व्यंग्य किया गया है जिसके कारण आज़ादी मिले हुए इतना समय बीत जाने पर भी एक टूटी नाक के पीछे इतना परेशान हो जाते हैं कि यह परेशानी देखते ही बनती है। देश के शहीद नेताओं की नाक को अधिक बड़ा तथा शहीद बच्चों की नाकों को भी जॉर्ज पंचम की लाट की नाक के योग्य न समझकर एक ओर सम्मानित किया गया है, परंतु अंत में बुत पर जीवित नाक लगाकर देश की प्रतिष्ठा को ज़मीन पर ला पटकी है।
प्रश्न 8.
जॉर्ज पंचम की लाट पर किसी भी भारतीय नेता, यहाँ तक कि भारतीय बच्चे की नाक फिट न होने की बात से लेखक किस ओर संकेत करना चाहता है। [Imp.] [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
जॉर्ज पंचम की नाक सभी भारतीय नेताओं और बलिदानी बच्चों से छोटी थी-यह बताना लेखक का लक्ष्य था। भारत में आजादी के लिए लड़ने वाले बलिदानी बच्चों का मान-सम्मान जॉर्ज पंचम से भी अधिक था। गाँधी, नेहरू, सुभाष, पटेल आदि नेता तो निश्चित रूप से जॉर्ज पंचम से कहीं अधिक सम्माननीय थे। यह बताना ही लेखक का उद्देश्य है।
प्रश्न 9.
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को किस तरह से प्रस्तुत किया? [CBSE 2008 C; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
उत्तर:
अखबारों ने जिंदा नाक लगने की खबर को प्रस्तुत करते हुए लिखा कि मूर्तिकार को जब जॉर्ज पंचम की लाट के लिए उपयुक्त पत्थर नहीं मिला तथा उस लाट के अनुरूप नाक न मिल सकी तो उसने लाट पर जिंदा नाक लगाने का फैसला कर लिया। यह बात देश की जनता नहीं जानती थी। सब तैयारियाँ अंदर ही अंदर चल रही थीं। लाट पर किसी जीवित भारतीय की नाक लगाने के सरकारी कदम का अखबार विरोध कर रहे थे। ऐसे में अखबारों ने पत्थर में जिंदा नाक लगने की खबर को बिना किसी दिखावे-प्रदर्शन के चुपचाप तथा शांति एवं सादगी के साथ प्रस्तुत किया। अखबारों में लिखा था कि ‘जॉर्ज पंचम की जिंदा नाक लगाई गई है…यानी ऐसी नाक जो पत्थर की नहीं लगती है।
प्रश्न 10.
“नयी दिल्ली में सब था … सिर्फ नाक नहीं थी।” इस कथन के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहता [Imp.] [CBSE 2008 C]
उत्तर:
इस कथन के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि आजाद भारत में किसी प्रकार की सुख-सुविधा में कोई कमी नहीं थी। सब कुछ था। परंतु अब भी भारतीयों में आत्मसम्मान की भावना नहीं थी। यदि जॉर्ज पंचम ने उन्हें गुलाम बनाकर उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचाई थी तो उसे गलत ठहराने की हिम्मत नहीं थी।
प्रश्न 11.
जॉर्ज पंचम की नाक लगने वाली खबर के दिन अखबार चुप क्यों थे?
उत्तर:
किसी भी देश का समाचार पत्र वहाँ घट रही घटनाओं का आइना तथा लोकतंत्र के सच्चे प्रहरी होते हैं। अंग्रेजों के अत्याचार से मुक्ति दिलाने और उन्हें देश से बाहर करने में समाचारपत्रों ने जोशीले लेखों, भाषणों और विभिन्न घटनाओं के माध्यम से लोगों को उत्साहित और प्रेरित किया था और लोगों की रगों में बहते खून को लावे में बदल दिया था। वही समाचार पत्र उस घटना को कैसे छापते जिसमें देश की प्रतिष्ठा और मान-सम्मान को मिट्टी में मिला दिया गया हो। जॉर्ज पंचम की लाट पर जिंदा नाक लगाने के कुकृत्य को प्रकाशित करने के बजाए समाचार पत्रों ने चुप रहना ही बेहतर समझा।