NCERT Solutions Class 10 कृतिका Chapter-1 (माता का आँचल)
Class 10 कृतिका
पाठ-1 (माता का आँचल)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
पाठ-1 (माता का आँचल)
प्रश्न 1.
प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे को अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ को शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है? [CBSE; CBSE 2008 ; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
अथवा
माँ के प्रति अधिक लगाव न होते हुए भी विपत्ति के समय भोलानाथ माँ के आँचल में ही प्रेम और शांति पाता हैं। इसका आप क्या कारण मानते हैं? [CBSE 2008 C]
उत्तर:
चूहे के बिल से निकले साँप को देखकर भयभीत भोलानाथ जब गिरता-पड़ता घर भागता है तो उसे जगह-जगह चोट लग जाती है। वह अपने पिता को ओसारे में हुक्का गुड़गुड़ाता हुआ देखता है परंतु उनकी शरण में न जाकर घर में सीधे माँ के पास जाकर माँ के आँचल में छिप जाता है। साँप से भयभीत अर्थात् विपदा के समय पिता के दुलार की कम, माता के स्नेह, ममता और सुरक्षा की ज़रूरत अधिक होती है। यह सुरक्षा उसे माँ के आँचल में नज़र आती है, इसलिए बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव होने पर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण में जाती है।
प्रश्न 2.
आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है? [Imp.] [CBSE; CBSE 2008 C; A.I. CBSE 2008 ]
उत्तर:
भोलानाथ को अपने साथियों के साथ खेलने में गहरा आनंद मिलता है। वह साथियों की हुल्लडबाजी, शरारतें और मस्ती देखकर सब कुछ भूल जाता है। उसी मग्नावस्था में वह सिसकना भी भूल जाता है।
प्रश्न 3.
आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जव-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की दुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।
उत्तर:
छात्र अपने बचपन से जुड़ी किसी तुकबंदी के बारे में स्वयं लिखें।
प्रश्न 4.
भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न है? [CBSE; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
आज ज़माना बदल चुका है। आज माता-पिता अपने बच्चों का बहुत ध्यान रखते हैं। वे उसे गली-मुहल्ले में बेफिक्र खेलने-घूमने की अनुमति नहीं देते। जब से निठारी जैसे कांड होने लगे हैं, तब से बच्चे भी डरे-डरे रहने लगे हैं। अब न तो हुल्लडबाजी, शरारतें और तुकबंदियाँ रही हैं; न ही नंगधडंग घूमते रहने की आजादी। अब तो बच्चे प्लास्टिक और इलेक्ट्रॉनिक्स के महँगे खिलौनों से खेलते हैं। बरसात में बच्चे बाहर रह जाएँ तो माँ-बाप की जान निकल जाती है। आज न कुएँ रहे, न रहट, न खेती का शौक। इसलिए आज का युग पहले की तुलना में आधुनिक, बनावटी और रसहीन हो गया है।
प्रश्न 5.
पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों? [Imp.]
अथवा
ऐसी किसी घटना का उल्लेख कीजिए जब अपनी माता या पिता का स्नेह आपके अंतर्मन को छू गया हो। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
‘माता का अँचल’ नामक इस पाठ में अनेक ऐसे प्रसंग हैं, जो अनायास ही हमारे मन को छू जाते हैं। ये प्रसंग निम्नलिखित हैं-
- भोलानाथ पिता जी की छाती पर चढ़कर उनकी पूँछे उखाड़ने लगता था। उनके चुम्मा माँगने पर जब अपनी मूंछे भोलानाथ के पिता जी उसके गाल पर गड़ा देते तब भोलानाथ फिर से उनकी पूँछे उखाड़ने लगता।
- भोलानाथ के प्रत्येक खेल में पिता जी का शामिल होना दिल को छु जाता है।
- भोजन तैयार करके बैठे बच्चों के बीच जब खाने के लिए पिता जी भी पंक्ति में बैठते तो बच्चे हँसते हुए भाग जाते थे।
- भोलानाथ का साँप से भयभीत होकर भागना तथा पिता जी की शरण में न जाकर माँ के आँचल में छिपने जैसे प्रसंग मन को अनायास छू जाते हैं।
प्रश्न 6.
इस उपन्यास अंश में तीस के दशक की ग्राम्य संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं। [Imp.]
अथवा
‘माता का अँचल’ पाट में ग्रामीण जीवन का चित्रण हुआ है। यह आज के ग्रामीण जीवन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
आज की ग्रामीण संस्कृति में अनेक परिवर्तन हो चुके हैं। आज कुओं से सिंचाई होने की प्रथा प्रायः समाप्त हो गई है। उसकी जगह ट्यूबवैल आ गए हैं। अब बैलों की जगह ट्रैक्टर आ गए हैं। आजकल पहले की तरह बूढे दूल्हे भी नहीं दिखाई देते। आज धीरे-धीरे ग्रामीण अंचल मौज-मस्ती और आनंद मनाने की चाल को भूलता जा रहा है। वहाँ भी भविष्य, प्रगति और पढ़ाई-लिखाई का भूत सिर पर चढ़कर बोलने लगा है।
प्रश्न 7.
पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता को लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।
उत्तर:
सौम्य के बचपन की डायरी का एक पेज-
सोमवार, 12 अक्टूबर, 20XX
मनुष्य के मस्तिष्क से माता-पिता के स्नेह का चित्र कभी गायब नहीं होता है। मुझे याद है कि बचपन की वह घटना जब पिता जी ने मुझे मेरे जन्मदिन पर नई साइकिल दिलवाई थी। मुझे साइकिल चलाना नहीं आता था, इसलिए पिता जी मुझे बाग की ओर ले गए। वे घंटे भर साइकिल पकड़कर चलाना सिखाते रहे, पर मैंने उनसे कहा कि अब मैं खुद चलाऊँगा। मैं थोड़ी दूर ही गया था कि आगे थोड़ी ऊँचाई थी, जिसे मैं पार करना चाहता था पर साइकिल पार न हो सकी और पीछे की ओर सरकने लगी। मैं स्वयं को सँभाल न सकी और गिर पड़ा। साइकिल मेरे ऊपर थी। मेरे पैर चेन और गीयर के बीच में होने से घाव हो गया। पिता जी भागे-भागे आए। मुझे गोद में उठाया और डॉक्टर के पास ले गए। इलाज करवाया। इधर माँ और पिता जी हफ्तों तक मेरे ऊपर विशेष ध्यान रखते रहे। वह स्नेह मैं आज भी नहीं भूल पाया हूँ।
प्रश्न 8.
यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए। [Imp.]
उत्तर:
माता का अँचल’ में माता-पिता के वात्सल्य का बहुत ही सरस और मनमोहक वर्णन हुआ है। बच्चे के माता-पिता में मानो वात्सल्य की होड़ है। बच्चे के पिता अपने बच्चे से माँ जैसा प्यार करते हैं। वे बच्चे को अपने साथ सुलाते हैं, जगाते हैं, नहाते-धुलाते हैं और खाना भी खिलाते हैं। उन्हें यह सब करने में बहुत आनंद मिलता है। वे कभी अपने बच्चे को डाँटते-फटकारते नहीं। वे माँ यशोदा की तरह बच्चे की एक-एक क्रीड़ा में पूरी रुचि लेते हैं। वे उसके एक-एक खेल को मानो भगवान भोलानाथ की लीला मानकर साथ देते हैं। इसलिए वे हँसकर पूछते हैं-‘फिर कब भोज होगा भोलानाथ?’ ‘इस साल की खेती कैसी रही भोलानाथ?’ पिता बच्चे से हर संभव लाड़ करते हैं। उसके साथ खेलते हैं। उससे जान-बूझकर हारते हैं। फिर उसे चूमते हैं, कंधे पर बिठाकर घूमते हैं। इन सारी क्रियाओं में उन्हें बहुत आनंद मिलता है।
बच्चे की माता भी मानो ममता की मूर्ति है। उसे इस बात का बोध है कि बच्चे का पेट तो महतारी के खिलाने से ही भरता है। उसका मन बच्चे को खिलाने-पिलाने और पुचकारने-दुलराने के लिए तरसता है। वह बच्चों से लाड़ करने में पारंगत है। वह भरपेट खाना खाए हुए बच्चे को भी अपनी वात्सल्य-कला से रिझाकर ढेर सारा और भोजन करा देती है। यह उसकी ममता का ही प्रसाद है कि बच्चा अपने पिता के संग रहने का अभ्यासी होने पर भी माँ का आँचल खोजता है। विपत्ति में उसे माँ की गोद ही अधिक सुरक्षित प्रतीत होती है। माँ का ममतालु मन इतना भावुक है कि वह बच्चे को डर के मारे काँपता देखकर रोने ही लगती है। उसकी यह सजल ममता पाठक को बहुत प्रभावित करती है।
प्रश्न 9.
माता का अँचल शीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्पक सुझाइए।
उत्तर:
किसी भी कहानी, उपन्यास या नाटक का शीर्षक उसके मुख्य पात्र, घटनाक्रम या पाठ की महत्ता प्रकट करने वाला होता
है। ‘माता को अंचल’ पाठ का शीर्षक इस पाठ की घटनाओं पर आधारित है। वास्तव में भोलानाथ अपने पिता के साथ अधिक लगाव रखता, वह उन्हीं के साथ पूजा पर बैठता, खेलता तथा वे ही भोलानाथ को गुरु जी से बचाकर लाए, पर बिल में पानी डालने पर जब अचानक साँप निकल आता है और भोलानाथ गिरता पड़ता घर आता है तो माँ के अंचल को सुरक्षित मान उसी में शरण लेता है। अतः यह शीर्षक पूर्णतः उपयुक्त है। इस पाठ के अन्य शीर्षक हो सकते हैं:
- बचपन के दिन
- बच्चों की दुनिया
- बचपन की दुनिया कितनी रंग-बिरंगी।
प्रश्न 10.
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं? [CBSE; A.I. CBSE 2008; CBSE 2008 ]
अथवा
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं? अपने जीवन से संबंधित कोई घटना लिखिए जिसमें आपने अपने माता-पिता के प्रति प्रेम अभिव्यक्त किया हो। [CBSE]
उत्तर:
बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को उनके साथ रहकर, उनकी सिखाई हुई बातों में रुचि लेकर, उनके साथ खेल करके, उन्हें चूमकर, उनकी गोद में या कंधे पर बैठकर प्रकट करते हैं। मेरे माता-पिताजी की बीसवीं वर्षगाँठ थी। मैंने उनके बीस वर्ष पुराने युगल-चित्र को सुंदर से फ्रेम में सजाया और उन्हें भेंट किया। उसी दिन मैं उनके लिए अपने हाथों से सब्जियों का सूप बनाकर लाई और उन्हें आदरपूर्वक दिया। माता-पिता मेरा यह प्रेम देखकर बहुत प्रसन्न हुए।
प्रश्न 11.
इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है? [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
‘माता का अँचल’ नामक पाठ में बच्चों की जिस दुनिया की संरचना की गई है उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। पाठ में तीस-चालीस के दशक के आस-पास का वर्णन है। इस ग्रामीण परिवेश में खेतों में उगी फ़सलें, फ़सलों के बीच उड़ती-फिरती चिड़ियाँ, उनका बालकों द्वारा उड़ाया जाना, बिल में पानी डालना और चूहे की जगह साँप निकलने पर डरकर भागना, आम के बाग में बच्चों का पहुँचना और वहाँ भीगना, बिच्छुओं को देखकर भागना, मूसन तिवारी को चिढ़ाना, माता दुवारा पकड़कर बलपूर्वक तेल लगाना, टीका लगाना आदि का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण है।
यह सब हमारे बचपन से पूर्णतया भिन्न है। आज तीन वर्ष या उससे कम उम्र में ही बालकों को पूर्व प्राथमिक विद्यालयों में भरती करा दिया जाता है। इससे उनका बचपन प्रभावित होता है। खेलों में क्रिकेट, फुटबॉल, कंप्यूटर, वीडियोगेम, मोबाइल फ़ोन पर गेम, लूडो, कैरम आदि खेलते हैं। माता-पिता के पास कहानियाँ सुनाने का समय न होने के कारण बच्चे टीवी पर कार्यक्रम देखकर अपनी शाम बिताते हैं।
प्रश्न 12.
फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।
उत्तर:
छात्र पुस्तकालय से पुस्तकें लेकर पढ़ें।