NCERT Solutions Class 11 Political Science in Hindi (राजनीतिक सिद्धांत)Chapter-6(नागरिकता)
Class 11 (राजनीतिक सिद्धांत)
अभ्यास के अन्तर्गत दिए गए प्रश्नोत्तर
पाठ-6 (नागरिकता)
प्रश्न 1.
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतान्त्रिक राज्यों में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व हैं?
उत्तर-
समकालीन विश्व में राष्ट्रों ने अपने सदस्यों को एक सामूहिक राजनीतिक पहचान के साथ-साथ कुछ अधिकार भी प्रदान किए हैं। नागरिकों को प्रदत्त अधिकारों की सुस्पष्ट प्रकृति विभिन्न राष्ट्रों में भिन्न-भिन्न हो सकती है, लेकिन अधिकतर लोकतान्त्रिक देशों ने आज उनमें कुछ राजनीतिक अधिकार शामिल किए हैं। उदाहरणस्वरूप, मतदान अभिव्यक्ति या आस्था की आजादी जैसे नागरिक अधिकार और न्यूनतम मजदूरी या शिक्षा पाने से जुड़े कुछ सामाजिक-आर्थिक अधिकार अधिकारों और प्रतिष्ठा की समानता नागरिकता के बुनियादी अधिकारों में से एक है।
प्रश्न 2.
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
सभी नागरिकों को समान अधिकार और अवसर देने पर विचार करना और सुनिश्चित करना किसी सरकार के लिए सरल नहीं होता। विभिन्न समूह के लोगों की आवश्यकताएँ और समस्याएँ अलग-अलग हो सकती हैं और एक समूह के अधिकार दूसरे समूह के अधिकारों के प्रतिकूल हो सकते हैं। नागरिकों के लिए समान अधिकार का आशय यह नहीं होता कि सभी लोगों पर समान नीतियाँ लागू की दी जाएँ, क्योंकि विभिन्न समूह के लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न-भिन्न हो सकती हैं। अगर उद्देश्य केवल ऐसी नीति बनाना नहीं है जो सभी लोगों पर एक तरह से लागू हों बल्कि लोगों को अधिक बराबरी पर लाना है तो नीतियों का निर्माण करते समय विभिन्न आवश्यकताओं और दावों का ध्यान रखना होगा।
प्रश्न 3.
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिए। इन संघर्षों में किन अधिकारों की मॉग की गई थी?
उत्तर-
झोपड़पट्टी वाली का आन्दोलन – भारत के प्रत्येक शहर में एक बड़ी जनसंख्या झोपड़पट्टियों और अवैध कब्जे की जमीन पर बसे लोगों की हैं। यद्यपि ये लोग अपरिहार्य और उपयोगी काम अक्सर कम मजदूरी पर करते हैं फिर भी शहर की शेष जनसंख्या उन्हें अवांछनीय अतिथि के रूप में देखती है। उन पर शहर के संसाधनों पर बोझ बनने या अपराध करने का आरोप लगाया जाता हैं।
गन्दी बस्तियों की दशा अत्यन्त दयनीय होती है। छोटे-छोटे कमरों में बहुत-से लोग हुँसे रहते हैं। यहाँ न निजी शौचालय होता है, न जलापूर्ति और न सफाई व्यवस्था। गन्दी बस्तियों में जीवन और सम्पत्ति असुरक्षित होते हैं। झोपड़ी-पट्टियों के निवासी अपने श्रम से अर्थव्यव्सथा में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। अन्य व्यवसायों के बीच ये फेरीवाले, छोटे व्यापारी, सफाई कर्मी या घरेलू नौकर, नल ठीक करने वाले या मिस्त्री होते हैं। झोपड़-पट्टियों में बेत-बुनाई या कपड़ा-हँगाई-छपाई या सिलाई जैसे छोटे व्यवसाय भी चलते हैं।
झोपड़-पटिटय अपने अधिकारों के प्रति जागरूक और संगठित हो रही हैं। उन्होंने इसके लिए आन्दोलन भी चलाए और अदालतों में दस्तक भी दी है। उनके लिए वोट देने जैसे बुनियादी राजनीतिक अधिकार का प्रयोग करना भी कठिन हो जाता है। सर्वोच्च न्यायालय ने मुम्बई की झोपड़-पट्टियों में रहने वालों के अधिकारों के बारे में समाजकर्मी ओल्गा टेलिस की जनहित याचिका (ओल्गा टेलिस बनाम बम्बई नगर निगम) पर 1985 में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय दिया। याचिका में कार्यस्थल के निकट रहने की वैकल्पिक जगह उपलब्ध नहीं होने के कारण फुटपाथ या झोपड़-पट्टियों में रहने के अधिकार का दावा किया गया था। अगर यहाँ रहने वालों को हटने के लिए मजबूर किया गया तो उन्हें आजीविका भी गॅवानी पड़ेगी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि संविधान की धारा 21 में जीने के अधिकार की गारण्टी दी गई है, जिसमें आजीविका का अधिकार शामिल है। इसलिए अगर फुटपाथवासियों को बेदखल करना हो तो उन्हें आश्रय के अधिकार के अन्तर्गत पहले वैकल्पिक जगह उपलब्ध करानी होगी।
टिहरी विस्थापितों का आन्दोलन – टिहरी गढ़वाल में टिहरी बाँध के बनने से टिहरी शहर डूब गया। इसके विस्थापितों के लिए सरकार ने जो व्यवस्थाएँ की थीं वे अपर्याप्त थीं। उचित मुआवजे की माँग और उचित आवास की माँग ने जीने के अधिकार का रूप धारण कर लिया। एक बड़ा आन्दोलन चला। अन्तत: सरकार ने सभी को उनके अधिकारों के अन्तर्गत राहत प्रदान की।
प्रश्न 4.
शरणार्थियों की समस्याएँ क्या हैं? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है?
उत्तर-
जब हम शरणार्थियों या अवैध अप्रवासियों के विषय में सोचते हैं तो मन में अनेक छवियाँ उभरती हैं। उसमें एशिया या अफ्रीका के ऐसे लोगों की छवि हो सकती है जिन्होंने यूरोप या अमेरिका में चोरी-छिपे घुसने के लिए दलाल को पैसे का भुगतान किया हो। इसमें जोखिम बहुत है लेकिन वे प्रयास में तत्पर दिखते हैं। एक अन्य छवि युद्ध या अकाल से विस्थापित लोगों की हो सकती है। इस प्रकार के बहुत से दृश्य हमें दूरदर्शन पर दिखाई दे जाते हैं। सूडान डरफर क्षेत्र के शरणार्थी, फिलीस्तीनी, बर्मी या बंगलादेशी शरणार्थी जैसे कई उदाहरण हैं। ये सभी ऐसे लोग हैं जो अपने ही देश या पड़ोसी देश में शरणार्थी बनने के लिए मजबूर किए गए हैं।
हम यह मान लेते हैं कि किसी देश की पूर्ण सदस्यता उन सबको उपलब्ध होनी चाहिए, जो सामान्यतया उस देश में रहते और काम करते हैं या जो नागरिकता के लिए आवेदन करते हैं। वैसे अनेक देश वैश्विक और समावेशी नागरिकता को समर्थन करते हैं लेकिन नागरिकता देने की शर्ते भी निर्धारित करते हैं। ये शर्ते साधारणतया देश के संविधान और कानूनों में लिखी होती हैं। अवांछित आगंतुकों को नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्य सत्ताएँ शक्ति का प्रयोग करती हैं।
अनेक प्रतिबन्ध, दीवार और बाड़ लगाने के बाद आज भी दुनिया में बड़े पैमाने पर लोगों का देशान्तरण होता है। अगर कोई देश स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं होता और वे घर नहीं लौट सकते तो वे राज्यविहीन और शरणार्थी हो जाते हैं। वे शिविरों में या अवैध प्रवासी के रूप में रहने के लिए विवश किए जाते हैं। अक्सर वे कानूनी रूप से काम नहीं कर सकते या अपने बच्चों को पढ़ा-लिखा नहीं सकते या सम्पत्ति अर्जित नहीं कर सकते। शरणार्थियों की समस्या इतनी गम्भीर है कि संयुक्त राष्ट्र ने शरणार्थियों की जाँच करने और सहायता करने के लिए उच्चायुक्त नियुक्त किया हुआ है।
विश्व नागरिकता की अवधारणा अभी साकार नहीं हुई है। फिर भी इसके आकर्षणों में से एक यह है कि इससे राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का मुकाबला करना सरल हो सकता है। जिसमें कई देशों की सरकारों और लोगों की संयुक्त कार्यवाही आवश्यक होती है। इससे शरणार्थियों की समस्या का सर्वमान्य समाधान पाना सरल हो सकता है या कम-से-कम उनके बुनियादी अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है चाहे वे किसी भी देश में रहते हों।
प्रश्न 5.
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के आप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं?
उत्तर-
प्रवासी लोग अपने श्रम से अर्थव्यवस्था में महत्त्वपूर्ण योगदान करते हैं। अन्य व्यवसायों के बीच ये प्रवासी फेरीवाले, छोटे व्यापारी, सफाईकर्मी या घरेलू नौकर, नल ठीक करने वाले या मिस्त्री होते हैं। प्रवासी लोग अपने रहने के स्थान पर बेत-बुनाई या कपड़ा-हँगाई-छपाई, कपड़ों की सिलाई जैसे छोटे कारोबार भी चलाते हैं।
यदि ये प्रवासी लोग किसी नगर के जीवन से चले जाएँ या अपनी सभी आर्थिक गतिविधियाँ बन्द कर दें तो लोगों की क्या दशा होगी उसे उपर्युक्त चित्र के माध्यम से भली-भाँति समझा जा सकता है।
प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता देने वाले देशों में भी लोकतान्त्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिए जो आजकल भारत में उठाये जा रहे हैं?
उत्तर-
भारत स्वयं को धर्मनिरपेक्ष और लोकतान्त्रिक राष्ट्र राज्य कहता है। स्वतन्त्रता आन्दोलन का आधार व्यापक था और विभिन्न धर्म, क्षेत्र और संस्कृति के लोगों को आपस में जोड़ने के कृत संकल्प प्रयास किए गए। यह सही है कि जब मुस्लिम लीग से विवाद नहीं सुलझाया जा सका, तब 1947 ई० में देश का विभाजन हुआ। लेकिन इसने उस राष्ट्र राज्य के धर्मनिरपेक्ष ओर समावेशी चरित्र को बनाए रखने के भारतीय राष्ट्रीय नेताओं के निश्चय को और सुदृढ़ ही किया जिसके निर्माण के लिए वे प्रतिबद्ध थे। यह निश्चय संविधान में सम्मिलित किया गया।
भारतीय संविधान ने बहुत ही विविधतापूर्ण समाज को समायोजित करने का प्रयास किया है। इन विविधताओं में से कुछ उल्लेखनीय हैं-
इसने अनुसूचित्र जाति और अनुसूचित जनजाति जैसे भिन्न-भिन्न समुदायों, पूर्व में समान अधिकार से वंचित रही महिलाएँ, आधुनिक सभ्यता के साथ मामूली सम्पर्क रखने वाले अण्डमान और निकोबार द्वीपसमूह के कुछ सुदूरवर्ती समुदायों और कई अन्य समुदायों को पूर्ण और समान नागरिकता देने का प्रयास किया।
इसने देश के विभिन्न हिस्सों में प्रचलित विभिन्न भाषाओं, धर्म और रिवाजों की पहचान बनाए रखने का प्रयास किया। इसे लागों को उनकी निजी आस्था, भाषा या सांस्कृतिक रिवाजों को छोड़ने के लिए बाध्य किए बिना सभी को समान अधिकार उपलब्ध कराना था। संविधान के जरिए आरम्भ किया गया यह अद्वितीय प्रयोग था दिल्ली में गणतन्त्र दिवस परेड में विभिन्न क्षेत्र, संस्कृति और धर्म के लोगों को सम्मिलित करने के राजसत्ता के प्रयास को प्रतिबिम्बित करता है।
नागरिकता से सम्बन्धित प्रावधानों का उल्लेख संविधान के तीसरे भाग और संसद द्वारा बाद में पारित कानूनों में हुआ है। संविधान ने नागरिकता की लोकतान्त्रिक और समावेशी धारणा को अपनाया है। भारत में जन्म, वंश परम्परा, पंजीकरण, देशीकरण या किसी भू-क्षेत्र के राज क्षेत्र शामिल होने से नागरिकता प्राप्त की जा सकती है। संविधान में नागरिकों के अधिकार और दायित्वों का उल्लेख है। यह प्रावधान भी है कि राज्य को नस्ल/जाति/लिंग/जन्मस्थल में से किसी भी आधार पर नागरिकों के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों को भी संरक्षित किया गया है। इस प्रकार के समावेशी प्रवाधानों ने संघर्ष और विवादों को जन्म दिया है। महिला आन्दोलन, दलित आन्दोलन या विकास योजनाओं से विस्थापित लोगों का संघर्ष ऐसे लोगों द्वारा चलाए जा रहे संघर्षों के कुछ उदाहरण हैं, जो मानते हैं कि उनकी नागरिकता को पूर्ण अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। भारत के अनुभवों से संकेत प्राप्त होते हैं कि किसी देश में लोकतान्त्रिक नागरिकता एक परियोजना या लक्ष्यसिद्धि का एक आदर्श है। जैसे-जैसे समाज बदल रहे हैं, वैसे-वैसे नित-नए मुद्दे भी समाने आ रहे हैं।
परीक्षोपयोगी प्रश्नोत्तर
प्रश्न 1.
‘कर्तव्य के उचित क्रम-निर्धारण का नाम ही नागरिकता है।’ यह कथन किसका है।
(क) ए० के० सीयू को
(ख) सुकरात का
(ग) प्लेटो का
(घ) डॉ० विलियम बॉयड का
उत्तर-
(घ) डॉ० विलियम बॉयड का।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित में से नागरिक का सामाजिक अधिकार चुनिए
(क) मताधिकार
(ख) शिक्षा का अधिकार
(ग) चुनाव लड़ने का अधिकार
(घ) न्याय प्राप्त करने का अधिकार
उत्तर-
(ख) शिक्षा का अधिकार।
प्रश्न 3.
निम्नांकित में कौन विदेशी है?
(क) राजनीतिक अधिकार प्राप्त
(ख) सैनिक
(ग) राजदूत
(घ) राज्य का सदस्य
उत्तर-
(ग) राजदूत।
प्रश्न 4.
किन देशों में सम्पत्ति खरीदने पर वहाँ की नागरिकता प्राप्त हो जाती है?
(क) भारत
(ख) बांग्लादेश
(ग) दक्षिणी अमेरिका के कुछ देश
(घ) पाकिस्तान
उत्तर-
(ग) दक्षिणी अमेरिका के कुछ देश।
प्रश्न 5.
आदर्श नागरिकता का तत्त्व नहीं है
(क) कर्तव्यपरायणता
(ख) जागरूकता
(ग) शिक्षा
(घ) साम्प्रदायिकता
उत्तर-
(घ) साम्प्रदायिकता।
प्रश्न 6.
“शिक्षा, जो आत्मा का भोजन है, स्वस्थ नागरिकता की प्रथम शर्त है।” यह कथन किसका है?
(क) अब्राहम लिंकन का
(ख) सुकरात का
(ग) बाल गंगाधर तिलक को
(घ) महात्मा गांधी का
उत्तर-
(घ) महात्मा गांधी का।
प्रश्न 7.
आदर्श नागरिक के मार्ग में बाधा है
(क) अशिक्षा व अज्ञानता
(ख) अच्छा स्वास्थ्य
(ग) संयुक्त परिवार
(घ) निर्धन मित्र
उत्तर-
(क) अशिक्षा व अज्ञानता।
प्रश्न 8.
आदर्श नागरिक का गुण नहीं है
(क) सच्चरित्रता
(ख) आत्म-संयम
(ग) उग्र-राष्ट्रीयता
(घ) अधिकार-कर्तव्य का ज्ञान
उत्तर-
(ग) उग्र-राष्ट्रीयता।
प्रश्न 9.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधा नहीं है
(क) साम्प्रदायिकता
(ख) अशिक्षा
(ग) निर्धनता
(घ) राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना
उत्तर-
(घ) राष्ट्र के प्रति सम्मान की भावना।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से कौन-सा तत्त्व आदर्श नागरिकता के मार्ग में बाधक नहीं है।
(क) निर्धनता
(ख) अनुशासन
(ग) अशिक्षा
(घ) स्वार्थपरता
उत्तर-
(ख) अनुशासन।
प्रश्न 11.
किसी राज्य में निवास करने वाले विदेशी के सम्बन्ध में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?
(क) वह राज्य में भूमि का क्रय नहीं कर सकता
(ख) उसकी जान-माल की सुरक्षा के लिए राज्य उत्तरदायी नहीं है।
(ग) राज्य उसे अल्पकाल के लिए निवास करने की अनुमति दे सकता है।
(घ) वह अपने राज्य के प्रति निष्ठा रखता है।
उत्तर-
(ख) उसकी जान-माल की सुरक्षा के लिए राज्य उत्तरदायी नहीं है।
प्रश्न 12.
किसी देश में विदेशी को निम्नलिखित में से कौन-से अधिकार प्राप्त नहीं हैं ?
(क) राजनीतिक अधिकार
(ख) सामाजिक अधिकार
(ग) धार्मिक अधिकार
(घ) व्यापारिक अधिकार
उत्तर-
(क) राजनीतिक अधिकार।
प्रश्न 13.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में प्रमुख बाधा क्या है ?
(क) औद्योगीकरण
(ख) शहरीकरण
(ग) साक्षरता
(घ) निर्धनता
उत्तर-
(घ) निर्धनता।
प्रश्न 14.
संसद में भारतीय नागरिकता अधिनियम कब पारित हुआ ?
(क) 1950 ई० में
(ख) 1952 ई० में
(ग) 1955 ई० में
(घ) 1960 ई० में
उत्तर-
(ग) 1955 ई० में।
प्रश्न 15.
“दि फिलॉस्फी ऑफ सिटिजनशिप” नामक पुस्तक के लेखक हैं
(क) एफ० जी० गोल्ड
(ख) अल्फ्रेड जे० शॉ
(ग) डॉ० ई० एम० ह्वाइट
(घ) वार्ड
उत्तर-
(ग) डॉ० ई० एम० ह्वाइट।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरिकता प्राप्त करने के दो तरीके बताइए।
या नागरिकता प्राप्त होने की कोई दो स्थितियाँ बताइए।
उत्तर-
1. जन्म द्वारा तथा
2. देशीयकरण द्वारा।
प्रश्न 2.
भारत में नागरिकता के लोप होने के कोई दो कारण लिखिए।
या नागरिकता खोने के दो आधार बताइए।
उत्तर-
1. विदेश में सरकारी नौकरी करने पर तथा
2. सेना से भागने पर।
प्रश्न 3.
आदर्श नागरिक के विषय में लॉर्ड ब्राइस की परिभाषा लिखिए।
उत्तर-
“एक लोकतन्त्रीय (आदर्श) नागरिक में बुद्धि, आत्म-संयम तथा उत्तरदायित्व होना चाहिए।’
प्रश्न 4.
कोई दो स्थितियाँ बताइए जिनमें केन्द्रीय सरकार नागरिक की नागरिकता समाप्त कर | सकती है।
या एक भारतीय स्त्री की नागरिकता का लोप हो गया है। इसके दो सम्भावित कारणों का |’ उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
1. देशद्रोह करने पर तथा
2. लम्बे समय तक देश से अनुपस्थित रहने पर।
प्रश्न 5.
आदर्श नागरिकता के चार तत्त्व बताइए।
उत्तर-
आदर्श नागरिकता के चार तत्त्व हैं—
1. कर्तव्यपरायणता,
2. प्रगतिशीलता,
3. व्यापक दृष्टिकोण तथा
4. जागरूकता।
प्रश्न 6.
भारतीय संविधान में समस्त नागरिकों के लिए कैसी नागरिकता की व्यवस्था की गयी है?
उत्तर-
भारतीय संविधान में समस्त नागरिकों के लिए इकहरी नागरिकता की व्यवस्था की गयी है।
प्रश्न 7.
नागरिक के दो प्रमुख कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
नागरिक के दो प्रमुख कर्तव्य हैं—
1. राज्य के प्रति भक्ति एवं
2. राज्य के कानूनों का पालन करना।
प्रश्न 8.
विदेशी किसे कहते हैं ?
उत्तर-
विदेशी वह व्यक्ति है जो अपना देश छोड़कर किसी कारणवश अन्य देश में रहने लगा हो। उसे उस देश के सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते।
प्रश्न 9.
विदेशियों का वर्गीकरण कीजिए।
उत्तर-
विदेशियों को तीन प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-
1. स्थायी विदेशी,
2. अस्थायी विदेशी तथा
3. राजदूत।
प्रश्न 10.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में सहायक दो प्रमुख तत्त्व बताइए।
उत्तर-
आदर्श नागरिकता के मार्ग में सहायक दो प्रमुख तत्त्व हैं-
1. स्वतन्त्र प्रेस तथा
2. स्वस्थ राजनीतिक दल।
प्रश्न 11.
“शिक्षा श्रेष्ठ नागरिक जीवन के वृत्त-खण्ड की आधारशिला है।” यह कथन किस विद्वान् का है ?
उत्तर-
यह कथन डॉ० बेनी प्रसाद नामक विद्वान् का है।
प्रश्न 12.
नागरिकों के कौन-से दो मुख्य प्रकार होते हैं ?
उत्तर-
नागरिकों के दो मुख्य प्रकार हैं-
1. जन्मजात नागरिक तथा
2. देशीयकरण से नागरिकता प्राप्त नागरिक।
प्रश्न 13.
भारत में नागरिकता अधिनियम कब बनाया गया?
उत्तर-
भारत में नागरिकता अधिनियम 1955 ई० में बनाया गया।
प्रश्न 14.
भारत का प्रथम नागरिक कौन है?
उत्तर-
भारत का राष्ट्रपति भारत का प्रथम नागरिक माना जाता है।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरिक की विभिन्न परिभाषाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
‘नागरिक’ की परिभाषाएँ
प्राचीन यूनानी विचारक अरस्तु ने नागरिक की परिभाषा इन शब्दों में की थी, “एक नागरिक वह है, जिसने राज्य के शासन में कुछ भाग लिया हो और जो राज्य द्वारा प्रदान किए गए सम्मान का उपभोग कर सके।”
भले ही तत्कालीन परिस्थितियों में अरस्तु की उपर्युक्त परिभाषा सटीक रही हो, लेकिन अरस्तू की यह परिभाषा आधुनिक काल में अपूर्ण मानी जाती है, क्योंकि आज नगर-राज्यों का स्थान विशाल राज्यों ने ले लिया है। फलतः ‘नागरिक’ शब्द का अर्थ भी बहुत अधिक व्यापक हो गया है। आधुनिक विद्वानों ने ‘नागरिक’ शब्द की परिभाषा निम्नलिखित प्रकार से दी है ।
लॉस्की के अनुसार, “नागरिक केवल समाज का एक सदस्य ही नहीं है, वरन् वह कुछ कर्तव्यों का यान्त्रिक रूप से पालनकर्ता तथा आदेशों का बौद्धिक रूप से ग्रहणकर्ता भी है।”
गैटिल के अनुसार, “नागरिक समाज के वे सदस्य हैं, जो कुछ कर्तव्यों द्वारा समाज से बँधे रहते हैं, जो उसके प्रभुत्व को मानते हैं और उससे समान रूप से लाभ उठाते हैं।”
सीले के अनुसार, “नागरिक उस व्यक्ति को कहते हैं, जो राज्य के प्रति भक्ति रखता हो, उसे सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों और जन-सेवा की भावना से प्रेरित हो।”
प्रश्न 2.
किसी देश के नागरिक को कितनी श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर-
किसी देश के नागरिक को निम्नलिखित चार श्रेणियों में विभाजित कर सकते हैं
1. अल्प-वयस्क नागरिक- ये एक निश्चित आयु से कम आयु के व्यक्ति होते हैं। ऐसे नागरिकों को समस्त प्रकार के अधिकार प्राप्त होते हैं, लेकिन निर्धारित आयु के पूर्व वे अपने राजनीतिक अधिकारों का उपयोग नहीं कर सकते। भारत में 18 वर्ष की आयु से कम के व्यक्ति इस श्रेणी में आते हैं।
2. मताधिकार रहित वयस्क नागरिक- ये वे नागरिक होते हैं जो निर्धारित आयु पूर्ण करने के बाद | भी शारीरिक एवं मानसिक अयोग्यताओं के कारण मत देने के अधिकार से वंचित कर दिये जाते हैं। उदाहरणार्थ-कोढ़ी, पागल, दिवालिया व देशद्रोही इत्यादि। इन्हें सिर्फ सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
3. मताधिकार प्राप्त वयस्क नागरिक- इस श्रेणी में वे नागरिक आते हैं जो चारों शर्तों को पूरा करते हों, अर्थात् वे राज्य के सदस्य हों, उन्हें सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों, उन्हें मताधिकार प्राप्त हो तथा उनमें राज्य के प्रति भक्ति-प्रदर्शन की भावना हो।
4. देशीयकृत नागरिक- इस श्रेणी में वे नागरिक आते हैं जो पूर्व में किसी अन्य देश अथवा राज्य के नागरिक थे, लेकिन किसी देश में बहुत दिनों तक रहने एवं कुछ शर्तों को पूरा करने पर राज्य की ओर से उन्हें राजनीतिक एवं सामाजिक अधिकार दे दिये गये हों।
प्रश्न 3.
‘विदेशी पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर-
विदेशी वह व्यक्ति है जो अस्थायी रूप से उस राज्य में निवास करता है जिसका वह सदस्य नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी देश में विदेशी उस समय कहा जा सकता है जब वह अल्पावधि हेतु किसी कार्यवश अपना देश छोड़कर दूसरे देश में रहने के लिए आया हो। कोई व्यक्ति व्यापार करने, शिक्षा प्राप्त करने अथवा घूमने के लिए दूसरे देश में आता है और जितने समय तक अपना देश छोड़कर बाहर रहता है, उतने समय तक उस राज्य में विदेशी कहा जाता है। उसे उस देश के राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते तथा न ही वह उस राज्य के प्रति भक्तिभाव रखता है। वह उस राज्य के प्रति भक्तिभाव रखता है जिसका वह सदस्य है। इस प्रकार विदेशी वह व्यक्ति है जो सिर्फ सामाजिक अधिकारों का उपयोग करता है। एक विदेशी को जीवन एवं सम्पत्ति की रक्षा एवं कुछ सामान्य सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं, लेकिन अन्य सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकार प्राप्त नहीं होते। इन अधिकारों की प्राप्ति के बदले विदेशियों को सम्बन्धित देश के कानून का पूर्णतया पालन करना होता है।]
प्रश्न 4.
नागरिकता प्राप्त करने के सन्दर्भ में जन्म-स्थान के सिद्धान्त का विवरण दीजिए।
उत्तर-
इस सिद्धान्त के अनुसार बालक की नागरिकता उसके जन्मस्थान के आधार पर निश्चित की जाती है। उदाहरणार्थ, यदि भारत के किसी नागरिक का बच्चा अर्जेण्टाइना की भूमि पर जन्म लेता है। तो वह बच्चा वहाँ का नागरिक माना जाएगा। लेकिन इसके विपरीत, यदि अर्जेण्टाइन के नागरिक का बच्चा भारत- भूमि पर अथवा अन्य किसी राज्य में जन्म लेता है तो वह स्वदेश की नागरिकता से वंचित रह जाएगा। यद्यपि यह सिद्धान्त अर्जेण्टाइना में प्रचलित है, लेकिन वहाँ की अपेक्षा यह इंग्लैण्ड में अधिक व्यापक है। वहाँ तो कोई बच्चा यदि इंग्लैण्ड के जहाज में भी पैदा होता है तो वह इंग्लैण्ड का नागरिक माना जाता है।
इस सिद्धान्त का सबसे बड़ा दोष यह है कि कोई दम्पति विश्व-भ्रमण के लिए निकले तो हो सकता है। कि उसकी एक सन्तान जापान में हो, दूसरी भारत में तथा तीसरी संयुक्त राज्य अमेरिका में। ऐसी दशा में जन्म-स्थान नियम के अनुसार तीनों बच्चे अलग-अलग देशों के नागरिक होंगे तथा उन्हें अपने माता-पिता के देश की नागरिकता प्राप्त नहीं होगी।
प्रश्न 5.
नागरिकता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर-
नागरिकता वह भावना है जो नागरिक में निवास करती है। यह भावना नागरिक में देशभक्ति को जाग्रत करती है और नागरिक को उसके कर्तव्य-पालन तथा उत्तरदायित्व निभाने के लिए सजग करती है। लॉस्की के कथनानुसार, “अपनी प्रशिक्षित वृद्धि को लोकहित के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता , है।’ गैटिल के विचारानुसार, “नागरिकता किसी व्यक्ति की उस स्थिति को कहते हैं, जिसके अनुसार वह अपने राज्य में सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों का उपभोग कर सकता है तथा कर्तव्यों का पालन करने के लिए तत्पर रहता है।”
विलियम बॉयड के अनुसार, “भक्ति भावना का उचित क्रम-निर्धारण ही नागरिकता है।” डॉ० आशीर्वादी लाल के अनुसार, नागरिकता केवल राजनीतिक कार्य ही नहीं, वरन् एक सामाजिक एवं नैतिक कर्तव्य भी है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि नागरिक होने की दशा का नाम ही नागरिकता है। दूसरे शब्दों में, “जीवन की वह स्थिति, जिसमें व्यक्ति किसी राज्य का सदस्य होने के नाते समस्त प्रकार के सामाजिक एवं राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करता है, ‘नागरिकता (Citizenship) कहलाती है।”
प्रश्न 6.
स्थायी विदेशी तथा अस्थायी विदेशी में अन्तर बताइए।
उत्तर-
स्थायी विदेशी-ऐसे विदेशी जो अपना पूर्व देश छोड़कर किसी ऐसे देश में आ गये हों जहाँ वे स्थायी रूप से रहना चाहते हों तथा नागरिकता-प्राप्ति की शर्तों को पूरा कर रहे हों, स्थायी विदेशी कहलाते हैं। नागरिकता-प्राप्ति की प्रक्रिया द्वारा ये विदेशी उस देश के नागरिक बन जाते हैं। अस्थायी विदेशी–अस्थायी विदेशी विशेष कारण से अपना देश छोड़कर अल्पावधि हेतु दूसरे देश में आकर रहते हैं तथा अपना कार्य पूर्ण करके स्वदेश लौट जाते हैं। सामान्यतया इनका उद्देश्य शिक्षा, भ्रमण अथवा व्यापार होता है।
प्रश्न 7.
नागरिक तथा मतदाता में भेद बताइए।
उत्तर-
एक राज्य के अन्तर्गत नागरिक तथा मतदाता में भेद (अन्तर) होता है। एक राज्य के समस्त नागरिक मतदाता नहीं होते हैं। मतदाता कौन हो सकता है; यह राज्य के कानूनों द्वारा स्पष्ट किया जाता है। किसी भी देश के अन्तर्गत अवयस्क नागरिक को मतदान का अधिकार प्राप्त नहीं होता है। इसके अलावा, कतिपय राज्यों में धर्म, सम्पत्ति, लिंग एवं शिक्षा के आधार पर भी कुछ नागरिकों को मताधिकार से वंचित किया जाता है। किन्तु आधुनिक समय की प्रवृत्ति इस प्रकार के प्रतिबन्धों के प्रतिकूल है। संयुक्त राज्य अमेरिका, भारत, इंग्लैण्ड, पाकिस्तान, फ्रांस इत्यादि संसार के अधिकांश राज्यों में समस्त वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार प्राप्त है।
प्रश्न 8.
नागरिकता की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर-
नागरिकता की चार विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. राज्य की सदस्यता- नागरिकता की सर्वप्रथम विशेषता राज्य की सदस्यता है।
2. सर्वव्यापकता- नागरिकता प्रत्येक उस व्यक्ति को प्राप्त होती है जो कि राज्य का निवासी हो, भले ही वह शहर में निवास करता हो अथवा किसी ग्राम में।
3. राज्य के प्रति निष्ठा- नागरिकता में देशभक्ति का गुण होना परम आवश्यक है।
4. अधिकारों का प्रयोग- नागरिकता व्यक्ति को राज्य की तरफ से अधिकार प्रदान करती है।
प्रश्न 9.
देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने की चार शर्ते बताइए।
या भारतीय नागरिकता को प्राप्त करने की दो शर्ते बताइए।
उत्तर-
देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने की चार शर्ते निम्नलिखित हैं
1. विदेशी ऐसे राज्य का नागरिक न हो जहाँ भारतीयों पर वहाँ की नागरिकता ग्रहण करने पर प्रतिबन्ध लगाया गया हो।
2. वह प्रार्थना-पत्र देने की तिथि से पूर्व न्यूनतम एक वर्ष से लगातार भारत में निवास कर रहा हो।
3. वह एक वर्ष से पूर्व, न्यूनतम 5 वर्षों तक भारत में रह चुका हो अथवा भारत सरकार की नौकरी में । रह चुका हो अथवा दोनों मिलाकर 7 वर्ष का समय हो, लेकिन किसी भी परिस्थिति में 4 वर्ष से कम समय न हो।
4. उसका आचरण अच्छा हो।
प्रश्न 10.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में अशिक्षा कैसे बाधक है?
उत्तर-
शिक्षा तथा ज्ञान के अभाव में आदर्श नागरिकता की कल्पना करना व्यर्थ है। अशिक्षित एवं अज्ञानी व्यक्ति उचित व अनुचित में अन्तर नहीं कर पाते। वे अपने उत्तरदायित्व के बोध से अपरिचित रहते हैं। ऐसे व्यक्ति राजनीतिक तथा सार्वजनिक कर्तव्यों का निष्पादन अपनी समझ-बूझ के आधार पर न करके अन्य व्यक्तियों के बहकावे में आकर करते हैं। शिक्षा तथा ज्ञान के बिना व्यक्ति न तो अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही राष्ट्र के विकास में योगदान दे सकता है। मैकम ने तो यहाँ तक कहा है कि शिक्षा के बिना नागरिक अपूर्ण है।”
प्रश्न 11.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में साम्प्रदायिकता कैसे बाधक है?
उत्तर-
साम्प्रदायिकता को आदर्श नागरिक की प्रबलतम शत्रु माना गया है। साम्प्रदायिकता की भावना से ही सामाजिक जीवन में कटुता पैदा हो जाती है तथा शान्ति नष्ट हो जाती है। कभी-कभी इसके वशीभूत होकर व्यक्ति अपने धार्मिक एवं राजनीतिक समुदायों को इतना अधिक महत्त्व देते हैं कि वे समाज एवं राज्य के हितों की अपेक्षा हेतु तत्पर हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आदर्श नागरिकता की प्राप्ति असम्भव हो जाती है।
प्रश्न 12.
नागरिकता का लोप होने की किन्हीं पाँच स्थितियों का विवेचन कीजिए।
उत्तर-
नागरिकता का लोप
सामान्यतया निम्नलिखित स्थितियों में नागरिकता का लोप हो जाता है अथवा किसी व्यक्ति की नागरिकता समाप्त हो जाती है-
1. विदेशी नागरिकता ग्रहण करने पर- यदि कोई व्यक्ति विदेश की नागरिकता ग्रहण कर लेता है, तो उसकी अपने देश की नागरिकता स्वत: ही समाप्त हो जाती है।
2. विवाह द्वारा- यदि कोई महिला विदेशी पुरुष से विवाह कर लेती है, तो वह अपने देश की नागरिकता खो देती है।
3. अनुपस्थिति के कारण- यदि कोई व्यक्ति अपने देश से लम्बी अवधि तक अनुपस्थित रहता | है, तो उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।
4. सेना से भागने पर- सेना से भागे सैनिक, देशद्रोही तथा घोर अपराधी भी नागरिकता से वंचित कर दिए जाते हैं।
5. विदेशों में नौकरी करने से- यदि कोई व्यक्ति विदेश में नौकरी कर लेता है अथवा विदेशी नागरिकता ग्रहण कर लेता है, तो वह अपने देश की नागरिकता खो देता है।
प्रश्न 13.
सत्रहवीं से बीसवीं सदी के बीच यूरोप के गोरे लोगों ने दक्षिण अफ्रीका के लोगों पर अपना शासन कायम रखा। 1994 तक दक्षिण अफ्रीका में अपनाई गई नीतियों के बारे में नीचे दिए गए ब्योरे को पढिए।
श्वेत लोगों को मत देने, चुनाव लड़ने और सरकार को चुनने का अधिकार था। वे सम्पत्ति खरीदने और देश में कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतन्त्र थे। काले लोगों को ऐसे अधिकार नहीं थे। काले और गोरे लोगों के लिए पृथक मोहल्ले और कालोनियाँ बसाई गई थीं। काले लोगों को अपने पड़ोस की गोरे लोगों की बस्ती में काम करने के लिए ‘पास लेने पड़ते थे। उन्हें गोरों के इलाके में अपने परिवार रखने की अनुमति नहीं थी। अलग-अलग
रंग के लोगों के लिए विद्यालय भी अलग-अलग थे।
(i) क्या अश्वेत लोगों की दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण और समान सदस्यता मिली हुई थी? कारण सहित बताइए।
(ii) ऊपर दिया गया ब्योरा हमें दक्षिण अफ्रीका में भिन्न समूहों के अन्तर्सम्बन्धों के बारे में क्या बताता है?
उत्तर-
(i) नहीं, अश्वेत लोगों को दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण समान सदस्यता प्राप्त नहीं थी। वहाँ रंगभेद नीति इसका प्रमुख कारण था।
(ii) दक्षिण अफ्रीका में भिन्न समूह (गोर-काले) के अन्तर्सम्बन्ध ठीक नहीं थे। दोनों में आपस में गहरे मतभेद थे।
प्रश्न 14.
नागरिक के लक्षणों की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर-
नागरिक के निम्नलिखित लक्षण या विशेषताएँ होती हैं
1. वह राज्य का सदस्य हो।
2. वह राज्य की सीमा के अन्दर रहता हो, चाहे वह नगर-निवासी हो अथवा ग्रामवासी।
3. उसे सभी सामाजिक तथा राजनीतिक अधिकार प्राप्त हों।
4. वह राज्य की सम्प्रभुता को स्वीकार करता हो और राज्य में पूर्ण निष्ठा एवं भक्ति रखता हो।
5. उसे मताधिकार प्राप्त हो।
6. उसमें कर्तव्यपरायणता की भावना निहित हो।
7. वह राष्ट्र तथा समाज के प्रति पूर्ण निष्ठा तथा भक्ति की भावना से ओतप्रोत हो।
प्रश्न 15.
विश्व नागरिकता की संक्षेप में विवेचना कीजिए।
उत्तर-
विश्व नागरिकता की अवधारणा आधुनिक विचारकों की देन है। जिस प्रकार विश्व-राज्य व विश्व-बन्धुत्व की कल्पना की गई है, उसी प्रकार विश्व-नागरिकता का विचार भी विकसित हुआ है। विश्व-बन्धुत्व की कल्पना को साकार बनाकर विश्व नागरिकता के विचार को व्यावहारिक रूप प्रदान किया जा सकता है, परन्तु यह काल्पनिक अवधारणा यथार्थ के धरातल पर असम्भव ही प्रतीत होती है। विश्व नागरिकता का आशय ऐसी नागरिकता से है, जो सभी राष्ट्रों द्वारा मान्य हो। संयुक्त राष्ट्र संघ जैसी अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाएँ विश्व नागरिकता की अवधारणा को व्यावहारिक रूप दे सकती हैं। राजनीतिक सम्बन्ध, शान्ति की इच्छा, आवागमन के साधनों का विकास, सांस्कृतिक एकता, विश्व-बन्धुत्व की भावना व मानवाधिकार, अन्तर्राष्ट्रीय कानून और अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के माध्यम से विश्व नागरिकता के आदर्श को प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। नेहरू जी विश्व नागरिकता के प्रबल समर्थक थे।
प्रश्न 16.
आदर्श नागरिकता के महत्व को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
किसी भी देश की प्रगति का आधार वहाँ के नागरिक होते हैं। जिस देश के नागरिक आदर्श नागरिकता के गुणों से परिपूर्ण होते हैं, वह देश शीघ्र ही उन्नति के शिखर पर पहुँच जाता है। अरस्तू का कथन है, “श्रेष्ठ नागरिक ही श्रेष्ठ राज्य का निर्माण कर सकते हैं; अतः राज्य के नागरिक आदर्श होने चाहिए।” वास्तव में आदर्श नागरिकता ही राज्य के विकास का आधार बन सकती है। डॉ० आशीर्वादी के अनुसार, “नागरिकता का सम्बन्ध केवल राजनीतिक जीवन से ही नहीं है, वरन् । सामाजिक और नैतिक जीवन से भी है।”
एक आदर्श नागरिक के गुणों को व्यक्त करते हुए लॉर्ड ब्राइस ने लिखा है, “एक लोकतन्त्रीय नागरिक में बुद्धि, आत्म-संयम तथा उत्तरदायित्व की भावना होनी चाहिए।
इसी प्रकार डॉ० ह्वाइट ने लिखा है, “आदर्श नागरिक में तीन गुण; व्यावहारिक बुद्धि, ज्ञान और भक्ति; आवश्यक हैं।”
प्रश्न 17.
आदर्श नागरिकता की किन्हीं चार बाधाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
आदर्श नागरिकता के मार्ग की चार मुख्य बाधाएँ निम्नलिखित हैं
1. आदर्श नागरिकता के मार्ग में सबसे बड़ी बाधा अशिक्षा तथा निरक्षरता है।
2. संकीर्ण धार्मिक भावनाएँ तथा साम्प्रदायिकता की मनोदशा आदर्श नागरिकता के मार्ग को अवरुद्ध कर देती हैं।
3. संकीर्ण मनोवृत्तियों पर आधारित दलीय राजनीति भी आदर्श नागरिकता को कुंठित कर देती है।
4. पूँजीवाद के अनियन्त्रित विकास ने भी समाज को निर्धन तथा अमीर दो वर्गों में विभाजित कर दिया है। अतः निर्धनता भी आदर्श नागरिकता के लिए अभिशाप है।
दीर्घ लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरिकता का समानता और अधिकार से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर-
नागरिकता केवल एक कानूनी अवधारणा नहीं है। इसका समानता और अधिकारों के व्यापक उद्देश्यों से भी घनिष्ठ सम्बन्ध है। इस सम्बन्ध का सर्वसम्मत सूत्रीकरण अंग्रेज समाजशास्त्री टी० एच० मार्शल (1893-1981) ने किया है। अपनी पुस्तक ‘नागरिकता और सामाजिक वर्ग में मार्शल ने नागरिकता को किसी समुदाय के पूर्ण सदस्यों को प्रदत्त प्रतिष्ठा के रूप में परिभाषित किया है। इस प्रतिष्ठा को ग्रहण करने वाले सभी लोग प्रतिष्ठा में अन्तर्भूत अधिकारों और कर्तव्यों के मामले में समान होते हैं।
नागरिकता की मार्शल द्वारा प्रदत्त कुँजी धारणा में मूल संकल्पना ‘समानता’ की है। इसमें दो बातें अन्तर्निहित हैं। पहली यह कि प्रदत्त अधिकार और कर्तव्यों की गुणवत्ता बढ़े। दूसरी यह कि उन लोगों की संख्या बढ़े जिन्हें वे दिए गए हैं।
मार्शल नागरिकता में तीन प्रकार के अधिकारों को शामिल मानते हैं–नागरिक, राजनीतिक और सामाजिक अधिकार।
नागरिक अधिकार व्यक्ति के जीवन, स्वतन्त्रता और सम्पत्ति की रक्षा करते हैं। राजनीतिक अधिकार व्यक्ति को शासन प्रक्रिया में सहभागी बनने की शक्ति प्रदान करते हैं। सामाजिक अधिकार व्यक्ति के लिए शिक्षा और रोजगार को सुलभ बनाते हैं। कुल मिलाकर ये अधिकार नागरिक के लिए सम्मान के साथ जीवन-बसर करना सम्भव बनाते हैं।
मार्शल ने सामाजिक वर्ग को ‘असमानता की व्यवस्था के रूप में चिह्नित किया। नागरिकता वर्ग पदानुक्रम के विभाजक परिणामों का प्रतिकार कर समानता सुनिश्चित करती है। इस प्रकार यह बेहतर सुबद्ध और समरस समाज रचना को सुसाध्य बनाता है।
प्रश्न 2.
भारतीय नागरिकता किन आधारों पर लुप्त हो सकती है? कोई दो प्रकार बताइए।
उत्तर-
भारतीय नागरिक अधिनियम, 1955 नागरिकता के लोप के विषय में भी व्यवस्था करता है, चाहे वह भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के अन्तर्गत प्राप्त की गई हो या संविधान के उपबन्धों के अनुसार प्राप्त की गई हो। इस अधिनियम के अनुसार नागरिकता का लोप निम्न प्रकार से हो सकता है
1. नागरिकता का परित्याग- कोई भी वयस्क भारतीय नागरिक जो किसी दूसरे देश का भी ‘ नागरिक है, भारतीय नागरिकता को त्याग सकता है। इसके लिए उसे एक घोषणा करनी होगी और उस घोषणा का पंजीकरण हो जाने पर उसकी भारतीय नागरिकता लुप्त हो जाएगी, किन्तु यदि ऐसी घोषणा किसी ऐसे युद्धकाल में की जाती है, जिसमें भारत एक पक्षकार हो, तो पंजीकरण को तब तक रोका जा सकता है, जब तक भारत सरकार उचित समझे। यह उल्लेखनीय है कि जब कोई पुरुष भारतीय नागरिकता का त्याग करता है, तो उसके साथ-साथ उसके अवयस्क बच्चे भी भारतीय नागरिकता खो देते हैं।
2. अन्य देशों की नागरिकता स्वीकार करने पर- यदि कोई भारतीय नागरिक अपनी इच्छा से किसी दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार कर लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता लुप्त हो जाती है। यह नियम उन नागरिकों के सम्बन्ध में लागू नहीं होता है, जो किसी ऐसे युद्धकाल में, जिसमें भारत एक पक्षकार हो, स्वेच्छा से दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार कर लेते हैं।
प्रश्न 3.
नागरिक और विदेशी में अन्तर लिखिए।
उत्तर-
नागरिक और विदेशी में अन्तर
प्रश्न 4.
नागरिक और राष्ट्र के सम्बन्ध की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
राष्ट्र राज्य की अवधारणा आधुनिक काल में विकसित हुई। राष्ट्र राज्य की सम्प्रभुता और नागरिकों के लोकतान्त्रिक अधिकारों का दावा सर्वप्रथम 1789 में फ्रांस के क्रान्तिकारियों ने किया था। राष्ट्र राज्यों का दावा है कि उनकी सीमाएँ केवल राज्यक्षेत्र को नहीं बल्कि एक अनोखी संस्कृति और साझा इतिहास को भी परिभाषित करती हैं। राष्ट्रीय पहचान को एक झण्डा, राष्ट्रगान, राष्ट्रभाषा या कुछ विशिष्ट उत्सवों के आयोजन जैसे प्रतीकों से व्यक्त किया जा सकता है।
अधिकतर आधुनिक राज्य स्वयं विभिन्न धर्मों, भाषा और सांस्कृतिक परम्पराओं के लोगों को सम्मिलित करते हैं।
लेकिन एक लोकतान्त्रिक राज्य की राष्ट्रीय पहचान में नागरिकों को ऐसी राजनीतिक पहचान देने की कल्पना होती है, जिसमें राज्य के सभी सदस्य भागीदार हो सकें। लोकतान्त्रिक देश साधारणतया अपनी पहचान इस प्रकार परिभाषित करने प्रयास करते हैं कि वह यथासम्भव समावेशी हो अर्थात् जो सभी नागरिकों को राष्ट्र के अंग के रूप में स्वयं को पहचानने की अनुमति देता हो। लेकिन व्यवहार में अधिकतर देश अपनी पहचान को इस प्रकार परिभाषित करने की ओर अग्रसर हैं, जो कुछ नागरिकों के लिए राष्ट्र के साथ अपनी पहचान व सम्बन्ध बनाए रखना अन्यों की तुलना में आसान बनाता है। यह राजसत्ता के लिए भी अन्यों की तुलना में कुछ लोगों को नागरिकता देना सरल कर देता है। यह अप्रवासियों का देश होने पर गौरवान्वित होने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका के बारे में भी वैसे ही सच है जैसे कि किसी अन्य देश के बारे में।
प्रश्न 5.
नागरिक अधिकार आन्दोलन के लिए मार्टिन लूथर किंग जूनियर की भूमिका की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
1950 का दशक संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक दक्षिणी राज्यों में काली और गोरी जनसंख्या के बीच व्याप्त विषमताओं के विरुद्ध नागरिक अधिकार आन्दोलन के उत्थान का साक्षी रहा है। इस प्रकार की विषमताएँ इन राज्यों द्वारा पृथक्करण कानून के नाम से विख्यात ऐसे कानूनों द्वारा पोषित होती थीं, जिनसे काले लोगों को अनेक नागरिक और राजनीतिक अधिकारों से वंचित किया जाता था। उन कानूनों ने विभिन्न नागरिक सुविधाओं; जैसे-रेल, बस, रंगशाला, आवास, होटल, रेस्टोरेण्ट आदि में गोरे और काले लोगों के लिए अलग-अलग स्थान निर्धारित कर रखे थे। इन कानूनों के कारण काले और गोरे बच्चों के स्कूल भी अलग-अलग थे।
इन कानूनों के विरुद्ध हुए आन्दोलन में मार्टिन लूथर किंग जूनियर अग्रणी काले नेता थे। उन्होंने इनके विरुद्ध अनेक अकाट्य तर्क प्रस्तुत किए। पहला, आत्म गौरव व आत्म-सम्मान के मामले में विश्व की प्रत्येक जाति या वर्ण का मनुष्य बराबर है। दूसरा, किंग ने कहा कि पृथक्करण राजनीति के चेहरे पर ‘सामाजिक कोढ़’ की तरह है क्योंकि यह उन लोगों को गहरे मनोवैज्ञानिक घाव देता है, जो ऐसे काननों के शिकार हैं।
किंग के तर्क दिया कि पृथक्करण की प्रथा गोरे समुदाय के जीवन की गुणवत्ता भी कम करती है। किंग इसे उदाहरणों द्वारा स्पष्ट करते हैं। गोरे समुदाय ने अदालत के निर्देशानुसार कुछ सामुदायिक उद्यानों में काले लोगों को प्रवेश की आज्ञा देने के बजाय उन्हें बन्द करने का फैसला किया। इसी प्रकार कुछ बेसबॉल टीमें टूट गईं क्योंकि अधिकारी काले खिलाड़ियों को स्वीकार नहीं करना चाहते थे। तीसरे, पृथक्करण कानून लोगों के बीच कृत्रिम सीमाएँ खींचते हैं और उन्हें देश के व्यापक हित के लिए एक-दूसरे का सहयोग करने से रोकते हैं। इन कारणों से किंग ने बहस छेड़ी कि उन कानूनों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। उन्होंने पृथक्करण कानूनों के विरुद्ध शान्तिपूर्ण और अहिंसक प्रतिरोध का आह्वान किया।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नागरिकता की परिभाषा देते हुए, नागरिक के प्रकार लिखिए।
या नागरिकता से आप क्या समझते हैं? नागरिक कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर-
नागरिकता की परिभाषा
नागरिकता उस स्थिति का नाम है, जिसके अन्तर्गत राज्य द्वारा व्यक्ति को नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्रदान किए जाते हैं और व्यक्ति राज्य के प्रति विशेष निष्ठा रखता है। नागरिकता को निम्नलिखित शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है
लॉस्की के अनुसार, “अपनी प्रशिक्षित बुद्धि को लोकहित के लिए प्रयोग करना ही नागरिकता है।”
गैटिल के अनुसार, “नागरिकता व्यक्ति की वह स्थिति है, जिसके कारण वह कुछ सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करता है।
विलियम बॉयड के अनुसार, “भक्ति-भावना का उचित क्रम-निर्धारण ही नागरिकता है।’ नागरिकता की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट होता है कि नागरिकता जीवन की वह स्थिति है, जिसमें व्यक्ति किसी राज्य का सदस्य होने के नाते सभी प्रकार के सामाजिक और राजनीतिक अधिकारों का उपभोग करता है तथा राज्य के प्रति उसके अपने कुछ कर्तव्य भी सुनिश्चित होते हैं। इस प्रकार नागरिक होने की दशा का नाम ही नागरिकता है।
नागरिक के प्रकार
प्रत्येक राज्य में दो प्रकार के व्यक्ति निवास करते हैं
1. नागरिक (Citizen) और
2. विदेशी (Alien)
1. नागरिक
किसी राज्य में चार प्रकार के नागरिक होते हैं-
* अल्पवयस्क नागरिक- ये एक निश्चित आयु से कम के व्यक्ति होते हैं और इन्हें मताधिकार प्राप्त नहीं होता है। भारत में 18 वर्ष की आयु से कम के व्यक्ति इस श्रेणी में आते हैं।
* वयस्क नागरिक- ये एक निश्चित आयु प्राप्त व्यक्ति होते हैं। भारत में यह आयु 18 वर्ष निर्धारित की गई है तथा इन्हें मताधिकार प्राप्त होता है।
* नागरिकता-प्राप्त विदेशी- ये विदेशी होते हैं, परन्तु उन्हें कुछ शर्ते पूरी करने के पश्चात् नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
* मताधिकार-रहित वयस्क नागरिक- इस वर्ग के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति सम्मिलित किए जाते हैं, जिनकी आयु नागरिकता प्राप्त करने की निश्चित आयु अधिक होती है, परन्तु किन्हीं विशेष कारणों से इन्हें मतदान का अधिकार प्राप्त नहीं होता है।
2. विदेशी
विदेशी वे होते हैं, जो किसी अन्य देश के मूल निवासी होते हैं और कुछ विशेष कारणों से कुछ समय के लिए दूसरे राज्य में निवास करते हैं। विदेशी निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं
* स्थायी विदेशी- ऐसे विदेशी, जो अपना देश छोड़कर अन्य देशों में जाकर बस जाते हैं और उसी देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं, ‘स्थायी विदेशी’ कहलाते हैं।
* अस्थायी विदेशी अथवा विदेशी पर्यटक- ऐसे विदेशी, जो किसी विशेष कार्य के लिए कुछ समय के लिए दूसरे देश में जाते हैं और अपना कार्य पूरा करके स्वदेश लौट आते हैं, ‘अस्थायी विदेशी’ अथवा ‘विदेशी पर्यटक’ कहलाते हैं।
* राजदूत एवं राजनयिक- ये विदेशी होते हैं, तथापि इन्हें अन्य विदेशियों की अपेक्षा अधिक | सुविधाएँ प्राप्त होती हैं। किसी अन्य देश में ये अपने देश का कूटनीतिक एवं राजनयिक प्रतिनिधित्व करते हैं।
सम्बन्धों के आधार पर विदेशी निम्नलिखित दो प्रकार के होते हैं-
* विदेशी शत्रु- शत्रु देशों में चोरी-छिपे घुसपैठ करने वाले विदेशी, विदेशी शत्रु’ कहलाते हैं। प्रायः शत्रु देशों से आने वाले विदेशियों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखी जाती है और उन पर अनेक प्रतिबन्ध भी लगा दिए जाते हैं।
* विदेशी मित्र- मित्र राष्ट्रों से आने वाले विदेशी, विदेशी मित्र’ कहलाते हैं। ये विदेशी अतिथि के रूप में आते हैं।]
प्रश्न 2.
नागरिकता को परिभाषित कीजिए। नागरिकता कैसे प्राप्त होती है तथा इसका किस प्रकार विलोपन होता है?
या नागरिकता की परिभाषा दीजिए और भारत में नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ बताइए।
या नागरिकता समाप्त होने की किन्हीं चार परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर-
नागरिकता का तात्पर्य किसी राज्य में व्यक्ति का नागरिक होने की स्थिति से है। यह उस वैधानिक या कानूनी सम्बन्ध का नाम है जो व्यक्ति को उस राज्य के साथ, जिसका वह सदस्य है, सम्बद्ध करता है।
1. लॉस्की के शब्दों में, “अपनी प्रशिक्षित बुद्धि का लोकहित में प्रयोग ही नागरिकता है।”
2. गैटिल के अनुसार, “नागरिकता व्यक्ति की उस अवस्था को कहते हैं जिसके कारण वह अपने राज्य में राष्ट्रीय और राजनीतिक अधिकारों का उपयोग कर सकता है और अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए तैयार रहता है।
इस प्रकार किसी राज्य और उसके नागरिकों के उन आपसी सम्बन्धों को ही ‘नागरिकता’ कहा जाता है जिससे नागरिकों को राज्य की ओर से सामाजिक और राजनीतिक अधिकार मिलते हैं। तथा वे राज्य के प्रति कुछ कर्तव्यों का पालन करते हैं।
नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ
नागरिकता प्राप्त करने की विधियों को निम्नलिखित दो भागों में विभक्त किया जा सकता है
1. जन्मजात नागरिकता की प्राप्ति तथा
2. राज्यकृत नागरिकता की प्राप्ति।
1. जन्मजात नागरिकता की प्राप्ति
जन्मजात नागरिकता निम्नलिखित तरीकों से प्राप्त होती है-
* रक्त अथवा वंश सम्बन्धी सिद्धान्त- जन्मजात नागरिकता प्राप्त करने की प्रथम विधि रक्त सम्बन्ध है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को जन्म किसी भी स्थान पर क्यों न हो, उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। फ्रांस, इटली एवं स्विट्जरलैण्ड में इस सिद्धान्त को अपनाया गया है। यह सिद्धान्त न्यायसंगत और विवेकयुक्त है।
* जन्म-स्थान सिद्धान्त- इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे की नागरिकता का निर्णय उसके जन्म-स्थान के आधार पर किया जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार बच्चे को उसी देश की नागरिकता प्राप्त होती है, जिस देश की भूमि पर उसका जन्म होता है। अर्जेण्टाइना, इंग्लैण्ड तथा अमेरिका में नागरिकता का यह सिद्धान्त लागू है। यह सिद्धान्त नागरिकता का निर्णय करने में तो बहुत सरल है, किन्तु तर्कसंगत नहीं है।
* दोहरा नियम- कई देशों में दोनों सिद्धान्तों को अपनाया गया है। इंग्लैण्ड, फ्रांस एवं अमेरिका में रक्त-सम्बन्धी सिद्धान्त तथा जन्म-स्थान सिद्धान्त दोनों प्रचलित हैं। दोहरे नियम के सिद्धान्त के अनुसार जो बच्चा अंग्रेज दम्पती से उत्पन्न हुआ हो, चाहे बच्चे का जन्म भारत में हो, अंग्रेज कहलाता है। उसे अपने पिता की नागरिकता प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त यदि किसी विदेशी की इंग्लैण्ड में सन्तान पैदा होती है, तो उसे इंग्लैण्ड की भी नागरिकता प्राप्त होगी।
इस सिद्धान्त में यह दोष है कि एक बच्चा एक समय में दो देशों का नागरिक बन सकता है, किन्तु वयस्क होने पर वह यह निर्णय कर सकता है कि वह किस देश की नागरिकता को अपनाये और किसका परित्याग करे।
2. राज्यकृत नागरिकता की प्राप्ति
राज्यकृत नागरिकता नियमानुसार विदेशियों को प्रदान की जाती है। ऐसे व्यक्ति जिन्हें नागरिकता जन्मजात सिद्धान्त से प्राप्त नहीं होती, वरन् उस राज्य की ओर से प्राप्त होती है, जिसके कि वे मूल नागरिक नहीं हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने देश को छोड़कर किसी दूसरे देश में बस जाती है और कुछ समय पश्चात् उस देश की नागरिकताको प्राप्त कर लेता है तो उस व्यक्ति को राज्यकृत नागरिकं कहीं जाता है। नागरिकता देना अथवा न देना राज्य पर निर्भर करती है।
इस सिद्धान्त के अनुसार नागरिकता की प्राप्ति निम्नलिखित रूपों में की जाती है
* निश्चित समय के लिए- यदि कोई व्यक्ति किसी दूसरे देश में जाकर एक निश्चित अवधि तक निवास करे तो वह प्रार्थना-पत्र देकर वहाँ की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। इंग्लैण्डे और अमेरिका में निवास की अवधि 5 वर्ष है, जब कि फ्रांस में 10 वर्ष। भारत में निवास की अवधि 4 वर्ष है।
* विवाह- यदि कोई स्त्री किसी दूसरे देश के नागरिक से विवाह कर लेती है तो उसे अपने पति के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। भारत का नागरिक पुरुष यदि इंग्लैण्ड की नागरिक महिला के साथ विवाह कर लेता है तो उस महिला को भारत की नागरिकता प्राप्त हो जाती है। जापान में इसके विपरीत नियम है। यदि कोई विदेशी व्यक्ति जापान की नागरिक महिला से विवाह कर लेता है तो उस व्यक्ति को जापान की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
* सम्पत्ति खरीदना- सम्पत्ति खरीदने से भी नागरिकता प्राप्त हो जाती है। ब्राजील, पीरू और
मैक्सिको में यह नियम प्रचलित है। यदि कोई विदेशी पीरू में सम्पत्ति खरीद लेता है तो उसे वहाँ की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
* गोद लेना- जब एक देश का नागरिक व्यक्ति किसी दूसरे देश के नागरिक बच्चे को गोद ले | लेता है तो गोद लिये जाने वाले बच्चे को अपने पिता के देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
* सरकारी नौकरी- कई देशों में यह नियम है कि यदि कोई विदेशी वहाँ सरकारी नौकरी कर ले तो उसे वहाँ की नागरिकता मिल जाती है। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई भारतीय इंग्लैण्ड में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसे इंग्लैण्ड की नागरिकता प्राप्त हो जाती है।
* विद्वत्ता द्वारा- कई देशों में विदेशी विद्वानों को नागरिक बनने के लिए विशेष सुविधाएँ दी | जाती हैं। विदेशी विद्वानों के निवास की अवधि दूसरे विदेशियों के निवास की अवधि से कम | होती है। फ्रांस में वैज्ञानिकों व विशेषज्ञों के लिए वहाँ की नागरिकता प्राप्त करने के लिए एक वर्ष का निवास हीं पर्याप्त है।
* दोबारा नागरिकता की प्राप्ति- यदि कोई नागरिक अपने देश की नागरिकता छोड़कर दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है तो उसे दूसरे देश का नागरिक माना जाता है, परन्तु यदि वह चाहे तो कुछ शर्ते पूरी करके पुन: अपने देश की नागरिकता भी प्राप्त कर सकता है।
भारतीय नागरिकता प्राप्त करने की विधियाँ
निम्नलिखित विधियों में से किसी एक आधार पर भारतीय नागरिकता प्राप्त की जा सकती है
1. जन्म या वंश के आधार पर- 1992 ई० में संसद ने सर्वसम्मति से एक विधेयक पारित कर ‘भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955′ को संशोधित किया है। 1992 ई० के पूर्व भारत के बाहर जन्मे किसी व्यक्ति को रक्त-सम्बन्ध या वंश के आधार पर भारत की नागरिकता तभी प्राप्त होती थी, जब कि उसका पिता भारत का नागरिक हो। अब व्यवस्था यह की गयी है कि भारत से बाहर जन्मे ऐसे किसी भी व्यक्ति को भारत की नागरिकता प्राप्त होगी; जिसका पिता या माता, उसके जन्म के समय भारत के नागरिक हों। इस प्रकार अब नागरिकता के प्रसंग में बच्चे की माता को पिता के ‘समकक्ष स्थिति प्रदान कर दी गयी है।
2. पंजीकरण द्वारा- निम्नलिखित श्रेणी के व्यक्ति पंजीकरण के आधार पर नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं-
* जो व्यक्ति पंजीकरण के माध्यम से भारतीय नागरिकता प्राप्त करना चाहते हैं, उन्हें अब भारत में कम-से-कम 5 वर्ष निवास करना होगा। पहले यह अवधि 6 माह थी।
* ऐसे भारतीय जो विदेशों में जाकर बस गये हैं, भारतीय दूतावासों में आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे।
* विदेशी स्त्रियाँ, जिन्होंने भारतीय नागरिक से विवाह कर लिया हो, आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगी।
* राष्ट्रमण्डलीय देशों के नागरिक, यदि वे भारत में ही रहते हों या भारत सरकार की नौकरी , कर रहे हों, आवेदन-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
3. देशीयकरण द्वारा- देशीयकरण द्वारा नागरिकता तभी प्रदान की जाती है, जब कि सम्बन्धित व्यक्ति कम-से-कम 10 वर्ष तक भारत में रह चुका हो। पहले यह अवधि 5 वर्ष थी। ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986′ जम्मू-कश्मीर तथा असम सहित भारत के सभी राज्यों पर लागू होता है।
4. भूमि विस्तार द्वारा- यदि किसी नवीन क्षेत्र को भारत में शामिल किया जाए तो वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी। जैसे 1961 ई० में गोआ तथा 1975 ई० में सिक्किम को भारत में सम्मिलित किये जाने पर वहाँ की जनता को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो गयी।
नागरिकता का लोप
जिस तरह नागरिकता को प्राप्त किया जा सकता है, उसी तरह कुछ स्थितियों में नागरिकता को खोया भी जा सकता है। निम्नलिखित स्थितियों में प्रायः नागरिकता का लोप हो जाता है
1. लम्बे समय तक अनुपस्थिति- कई देशों में यह नियम है कि यदि वहाँ का नागरिक लम्बे समय तक देश से बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है। उदाहरणस्वरूप, यदि कोई फ्रांसीसी नागरिक लगातार 10 वर्ष की अवधि से अधिक फ्रांस से बाहर रहे तो उसकी नागरिकता समाप्त कर दी जाती है।
2. विवाह- महिलाएँ विदेशी नागरिकों से विवाह करके अपने देश की नागरिकता खो देती हैं।
3. विदेश में सरकारी नौकरी- यदि एक देश का नागरिक अपने देश की सरकार की आज्ञा प्राप्त | किये बिना किसी दूसरे देश में सरकारी नौकरी कर लेता है तो उसे अपने देश की नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
4. स्वेच्छा से नागरिकता का त्याग- कई देशों की सरकारें अपने नागरिकों को उनकी इच्छा के अनुसार किसी देश का नागरिक बनने की आज्ञा प्रदान कर देती हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अपनी जन्मजात नागरिकता त्यागकर अन्य देश की नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं।
5. सेना से भाग जाने पर- यदि कोई नागरिक सेना से भागकर दूसरे देश में चला जाता है तो | उसकी नागरिकता समाप्त हो जाती है।
6. दोहरी नागरिकता प्राप्त हो जाने पर- जब किसी व्यक्ति को दो राज्यों की नागरिकता प्राप्त हो जाती है तब उसे एक राज्य की नागरिकता छोड़नी पड़ती है।
7. देश-द्रोह- जब कोई व्यक्ति राज्य के विरुद्ध विद्रोह अथवा क्रान्ति करता है तो उसकी नागरिकता छीन ली जाती है, परन्तु देश-द्रोह के आधार पर उन्हीं नागरिकों की नागरिकता को छीना जा सकता है जो राज्यकृत नागरिक हों।
8. गोद लेना- यदि कोई बच्चा किसी विदेशी द्वारा गोद ले लिया जाए तो बच्चे की अपने देश की नागरिकता समाप्त हो जाती है और वह अपने नये माता-पिता के देश की नागरिकता प्राप्त कर लेता है।
9. विदेशी सरकार से सम्मान प्राप्त करना- यदि कोई नागरिक अपने देश की आज्ञा के बिना किसी विदेशी सरकार द्वारा दिये गये सम्मान को स्वीकार कर लेता है तो उसे उसकी मूल नागरिकता से वंचित कर दिया जाता है।
10. पागल, दिवालिया अथवा साधु- संन्यासी होने पर- यदि कोई व्यक्ति पागल, दिवालिया अथवा साधु-संन्यासी हो जाता है तो उसका नागरिकता का अधिकार समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 3.
‘विश्व नागरिकता की अवधारणा क्या है? इसके समर्थन में क्या तर्क प्रस्तुत किए जाते है?
उत्तर-
हम आज एक ऐसे विश्व में रहते हैं जो आपस में जुड़ा हुआ है। संचार के इण्टरनेट, टेलीविजन, सेलफोन और सैटेलाइट फोन जैसे नए साधनों ने उन तरीकों में भारी बदलाव कर दिया है, . जिनसे हम अपने विश्व को समझते हैं। पहले विश्व के एक हिस्से की गतिविधियों की खबर अन्य हिस्सों तक पहुँचने में महीनों लग जाते थे। लेकिन संचार के नये तरीकों ने विश्व के विभिन्न भागों में घट रही घटनाओं को हमारे तत्काल सम्पर्क की सीमाओं में ला दिया है। हम अपने टेलीविजन के पर्दे पर विनाश और युद्धों को होते देख सकते हैं, इससे विश्व के विभिन्न देशों के लोगों में साझे सरोकार और सहानुभूति विकसित होने में सहायता मिली है।
विश्व नागरिकता के समर्थक तर्क प्रस्तुत करते हैं कि चाहे विश्व-कुटुम्ब और वैश्विक समाज अभी विद्यमान नहीं है, लेकिन राष्ट्रीय सीमाओं के आर-पार लोग आज एक-दूसरे से जुड़ाव अनुभव करते हैं। उदाहरणार्थ-एशिया की सुनामी या अन्य बड़ी दैवी आपदाओं के पीड़ितों की सहायता के लिए विश्व के सभी हिस्सों से उमड़ा भावोद्गार विश्व-समाज की ओर उभार का संकेत है। हमें इस भावना को मजबूत करना चाहिए और एक विश्व नागरिकता की अवधारणा की दिशा में सक्रिय होना चाहिए। राष्ट्रीय नागरिकता की अवधारणा यह मानती है कि हमारी राज्यसत्ता हमें वह सुरक्षा और अधिकार दे सकती है जिनकी हमें आज विश्व में गरिमा के साथ जीने के लिए आवश्यकता है। लेकिन राजसत्ताओं के समक्ष आज अनेक ऐसी समस्याएँ हैं, जिनका मुकाबला वे अपने बल पर नहीं कर सकतीं।
विश्व नागरिकता की अवधारणा के आकर्षणों में से एक यह है कि इससे राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का समाधान करना आसान हो सकता है जिसमें कई देशों की सरकारों और लोगों की संयुक्त कार्यवाही आवश्यक होती है। उदाहरण के लिए, इससे प्रवासी और राज्यहीन लोगों की समस्या का सर्वमान्य समाधान पाना आसान हो सकता है या कम-से-कम उनके बुनियादी अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है चाहे वे जिस किसी देश में रहते हों।
हम अध्ययन कर चुके हैं कि एक देश के भीतर की समान नागरिकता को सामाजिक-आर्थिक असमानता या अन्य समस्याओं से खतरा हो सकता है। इन समस्याओं का समाधान अन्ततः सम्बन्धित समाज की सरकार और जनता ही कर सकती है। इसलिए लोगों के लिए आज एक राज्य की पूर्ण और समान सदस्यता महत्त्वपूर्ण है। लेकिन विश्व नागरिकता की अवधारणा हमें याद दिलाती है कि राष्ट्रीय नागरिकता को समझदारी से जोड़ने की आवश्यकता है कि हम आज अन्तर्समबद्ध विश्व में रहते हैं। और हमारे लिए यह भी आवश्यक है कि हम विश्व के विभिन्न हिस्सों के लोगों के साथ अपने सम्बन्ध सुदृढ़ करें और राष्ट्रीय सीमाओं के पार के लोगों और सरकारों के साथ काम करने के लिए तैयार हों।
प्रश्न 4.
आदर्श नागरिक के गुणों की विवेचना कीजिए।
उत्तर-
आदर्श नागरिक के गुण
महान् दार्शनिक अरस्तू का मत है कि “श्रेष्ठ नागरिक ही श्रेष्ठ राज्य का निर्माण कर सकते हैं, इसलिए राज्य के नागरिक आदर्श होने चाहिए।” आज का युग प्रजातन्त्र का युग है, जिसमें शासन का दायित्व वहाँ के नागरिकों पर होता है। अत: आदर्श नागरिकता ही राज्य के विकास का आधार है। एक आदर्श नागरिक में अग्रलिखित गुणों का होना आवश्यक है-
1. उत्तम स्वास्थ्य- आदर्श नागरिक में उत्तम स्वास्थ्य का होना अनिवार्य है। अस्वस्थ व्यक्ति समाज पर भार स्वरूप होता है। वह न तो अपने व्यक्तिगत कर्तव्यों और न ही समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का पालन कर सकता है।
2. सच्चरित्रता- मनुष्य के व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में सच्चरित्रता का बहुत अधिक महत्त्व है। चरित्रवान् व्यक्ति ही आदर्श नागरिक बन सकता है, क्योंकि चरित्र द्वारा ही व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का सर्वोत्तम विकास कर सकता है।
3. शिक्षा- शिक्षा आदर्श नागरिक जीवन की नींव है। गांधी जी ने कहा था कि “शिक्षा, जो आत्मा का भोजन है, स्वस्थ नागरिकता की प्रथम शर्त है। शिक्षा ही अज्ञान के अन्धकार का विनाश कर ज्ञान का प्रकाश करती है। अशिक्षित नागरिक कभी भी आदर्श नागरिक नहीं बन सकता।
4. विवेक और आत्म-संयम- लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, “विवेक आदर्श नागरिक का पहला गुण है।’ विवेक के आधार पर नागरिक अच्छे-बुरे का ज्ञान प्राप्त करता है तथा अपने कर्तव्यों और अधिकारों को भली प्रकारे समझ सकता है। आदर्श नागरिक का दूसरा गुण आत्म-संयम है, अर्थात् नागरिक में अपने हितों का परित्याग कर देने की स्थिति में आत्म-संयम की भावना होनी चाहिए।
5. परिश्रमशीलता- परिश्रमशीलता वैयक्तिक विकास और सामाजिक प्रगति की आधारशिला है। इससे व्यक्ति में स्वावलम्बन की भावना उत्पन्न होती है। परिश्रमी व्यक्ति ही आदर्श नागरिक बनकर अपना, समाज का और देश का कल्याण कर सकता है।
6. कर्तव्यपरायणता- श्रेष्ठ सामाजिक जीवन के लिए कर्तव्यपरायणता की भावना बहुत महत्त्वपूर्ण है। कर्तव्यपरायणता आदर्श नागरिक जीवन की कुंजी है।
7. परोपकारिता- आदर्श नागरिक में परोपकार की भावना होनी आवश्यक है। समाज के असहाय, दीन-दुःखियों तथा अपाहिजों पर उपकार करना प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक कर्तव्य है।
8. सहानुभूति और दया- सहानुभूति और दया की भावना भी आदर्श नागरिक के अनिवार्य गुण | हैं। ये ही व्यक्ति को दूसरों की सहायता करने के लिए प्रेरित करते हैं।
9. मितव्ययिता- आवश्यक व्यय करना आदर्श नागरिक का एक महान् गुण होता है। जो व्यक्ति फिजूलखर्जी करता है, उसे अपने जीवन में अनेक प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अनावश्यक खर्च करने वाला व्यक्ति स्वयं तो कष्ट उठाता ही है, साथ ही परिवार, समाज व राष्ट्र को भी हानि पहुँचाता है; अतः आदर्श नागरिक में मितव्ययिता का गुण होना आवश्यक है।
10. आज्ञापालन तथा अनुशासन- एक आदर्श नागरिक में आज्ञापालन और अनुशासन की भावना | होनी अनिवार्य है, तभी वह राज्य द्वारा बनाये गये कानूनों का निष्ठापूर्वक पालन कर सकेगा। और दूसरों को भी ऐसा करने की प्रेरणा दे सकेगा।
11. जागरूकता- आदर्श नागरिक के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने अधिकारों के कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहे। आदर्श नागरिक को अपने परिवार, ग्राम, प्रान्त तथा राष्ट्र के हितों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और उनके प्रति अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
12. प्रगतिशीलता- आधुनिक युग लोकतन्त्र का युग है; अत: यह आवश्यक है कि आदर्श नागरिक रूढ़ियों एवं कुरीतियों की उपेक्षा कर प्रगतिशील विचारों के अनुकूल आचरण करे।
13. नि:स्वार्थता- आदर्श नागरिक को स्वार्थपरता से दूर रहना चाहिए तथा उसका अन्त:करण जन-कल्याण के उच्च आदर्शों से प्रेरित होना चाहिए।
14. मताधिकार का उचित प्रयोग- आधुनिक प्रजातान्त्रिक युग में सभी वयस्क स्त्री-पुरुषों को मताधिकार प्राप्त है। इस अधिकार का उचित प्रयोग निष्पक्षता के साथ करना प्रत्येक आदर्श नागरिक का प्रथम कर्तव्य है। इस अधिकार के अनुचित प्रयोग से शासन में भ्रष्टाचार फैल सकता है और शासन-सत्ता अयोग्य व्यक्तियों के हाथ में पहुँच सकती है।
15. देशभक्ति- आदर्श नागरिक का सर्वोच्च गुण देशभक्ति है। प्रत्येक आदर्श नागरिक में देशभक्ति की भावना कूट-कूटकर भरी होनी चाहिए। संकट के समय देशभक्ति की भावना से प्रेरित होकर नागरिक अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तत्पर हो जाता है।
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि आदर्श नागरिक में उपर्युक्त गुणों का होना आवश्यक है, क्योंकि आदर्श नागरिक ही समाज और देश को उन्नति के चरम शिखर पर पहुंचा सकते हैं।
प्रश्न 5.
भारतीय नागरिकता पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
या भारतीय नागरिकता अधिनियम के प्रमुख प्रावधानों का वर्णन कीजिए।
उत्तर-
भारतीय नागरिकता
स्वाधीनता प्राप्ति से पूर्व भारत के नागरिक ब्रिटिश साम्राज्य के नागरिक कहलाते थे। लेकिन उन्हें वे सब अधिकार प्राप्त नहीं थे, जो उस समय एक अंग्रेज को प्राप्त थे। ब्रिटिश सरकार की अधीनता में भारतीयों को अनेक कठिनाइयों तथा असुविधाओं का सामना करना पड़ता था। अंग्रेज अधिकारी भारतीयों के साथ बड़ा अमानुषिक व्यवहार करते थे। भारतीयों की भाषण एवं प्रेस की स्वतन्त्रता पर भी अनेक प्रतिबन्ध लगे हुए थे। लेकिन 15 अगस्त, 1947 ई० के बाद भारतीयों को नागरिकता सम्बन्धी वे सभी अधिकार मिल गए जिनके माध्यम से वे देश के शासन प्रबन्ध में निर्णायक भूमिका निभाने लगे।
इकहरी नागरिकता
विश्व के सभी संघीय संविधानों में नागरिकों को दोहरी नागरिकता प्राप्त होती है-एक संघ सरकार की नागरिकता और दूसरी उस इकाई या राज्य (प्रान्त) की नागरिकता, जिसमें वह निवास करता है। लेकिन स्वतन्त्र भारत का संविधान संघात्मक होते हुए भी भारतीयों को इकहरी नागरिकता प्रदान करता है। इसका आशय यह है कि प्रत्येक भारतीय केवल भारत संघ का नागरिक, उस राज्य का नहीं जिसमें वह निवास करता है। भारतीय संविधान ने देश की अखण्डता को कायम रखने के लिए इकहरी नागरिकता की व्यवस्था को अपनाया है।
भारत का नागरिक होने का हकदार
भारतीय संविधान-निर्माताओं ने यह निश्चित नहीं किया था कि भविष्य में भारतीय नागरिकता किस प्रकार प्राप्त की जा सकती है तथा उसका लोप किस प्रकार सम्भव है। भारतीय संविधान में केवल यह वर्णित है कि 27 जनवरी, 1950 ई० को भारत के नागरिक कौन हैं। नागरिकता की प्राप्ति तथा उसके निर्णय और लुप्त होने के सम्बन्ध में संविधान ने भारतीय संसद को पूर्ण अधिकार प्रदान कर दिए हैं। इस प्रकार संविधान ने नागरिकता सम्बन्धी नियमों के निर्माण का एकाधिकार भारतीय संसद को सौंप दिया है।
भारतीय संविधान के लागू होने के समय नागरिकता सम्बन्धी सिद्धान्त निम्नवत् निर्धारित किए गए थे
1. जन्म- भारत राज्य क्षेत्र में जन्म लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को भारत संघ की नागरिकता प्राप्त होगी।
2. वंश- वे सभी व्यक्ति भारत संघ के नागरिक माने जाएँगे, जिनके माता-पिता में से किसी एक ने भारत राज्य क्षेत्र में जन्म लिया है।
3. निवास- वे सभी व्यक्ति भारत संघ के नागरिक होंगे, जो संविधान लागू होने के पाँच वर्ष पूर्व से भारत राज्य क्षेत्र के सामान्य निवासी थे।
4. शरणार्थी- पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों में से वे व्यक्ति भारत संघ के नागरिक माने जाएँगे-(अ) जो 19 जुलाई, 1948 ई० से पूर्व भारत चले आए थे और जिनके माता या पिता का जन्म अविभाजित भारत में हुआ था। (ब) जो 19 जुलाई, 1948 ई० के बाद भारत आए हों और तत्कालीन भारत सरकार द्वारा पंजीकृत कर लिए गए हों।
5. भारतीय विदेशी- भारत के संविधान में ऐसे भारतीयों को भी नागरिकों की श्रेणी में पंजीकृत करने का उल्लेख है जो भारत राज्य क्षेत्र के बाहर किसी अन्य देश में निवास करते हों। उनके लिए निम्नलिखित दो शर्ते हैं-(अ) वे या उनके माता-पिता अथवा पितामह-पितामही में से कोई एक अविभाजित भारत में जन्में हों। (ब) उन्होंने अमुक देश में रहने वाले भारतीय राजदूत के पास भारत संघ का नागरिक बनने के लिए आवेदन-पत्र दे दिया हो और उन्हें भारतीय नागरिक पंजीकृत कर दिया गया हो।
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955
भारतीय संसद ने सन् 1955 में भारतीय नागरिकता अधिनियम पारित किया। इस अधिनियम में भारतीय नागरिकता की प्राप्ति और उसके विलोपन के प्रकार को बताया गया है। इस अधिनियम के प्रावधान निम्नलिखित हैं–
भारतीय नागरिकता की प्राप्ति
1. जन्म- उने सभी व्यक्तियों को भारत संघ की नागरिकता प्राप्त होगी, जिनका जन्म 26 जनवरी, 1950 ई० के बाद भारत राज्य क्षेत्र के किसी भी भाग में हुआ हो।
2. पाकिस्तान से आगमन या प्रव्रजन- उन सभी व्यक्तियों को, जो 26 जुलाई, 1949 ई० के बाद भारते आए हों, भारत संघ की नागरिकता प्राप्त हो जाएगी, बशर्ते वे भारतीय नागरिकों के रजिस्टर में अपना नाम दर्ज करा लें और कम-से-कम एक वर्ष से भारत में अवश्य निवास | करते हों।
3. पंजीकरण- विदेशों में निवास करने वाले भारतीय भारत सरकार के दूतावास में अपना नाम |पंजीकृत कराकर भारतीय संघ की नागरिकता प्राप्त कर सकते हैं।
4. विवाह- उन सभी विदेशी स्त्रियों को, जिन्होंने भारतीयों से विवाह किया है, भारत संघ की नागरिकता प्राप्त हो जाएगी।
5. आवेदन-पत्र- कोई भी विदेशी व्यक्ति आवेदन-पत्र देकर भारत संघ का नागरिक बन सकता है, लेकिन शर्त यह है कि वह अच्छे आचरण का हो, संविधान में वर्णित किसी एक भाषा का ज्ञाता हो, भारत में स्थायी रूप से निवास करने की इच्छा रखता हो और कम-से-कम एक वर्ष | से भारत में लगातार रह रहा हो।
6. निवास अथवा नौकरी- राष्ट्रमण्डल के सदस्य देशों के वे नागरिक जो भारत में रहते हों या भारत में नौकरी करते हों, तो वे प्रार्थना-पत्र देकर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर सकेंगे।
7. भूमि विस्तार- यदि किसी नए प्रदेश को भारत में मिला लिया जाता है, तो वहाँ के निवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त हो जाएगी।
भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 तथा 1992
भारतीय नागरिकता अधिनियम, 1955 के प्रावधानों की सरलता का लाभ उठाकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब और असम जैसे राज्यों में लाखों विदेशियों ने अनधिकृत रूप से भारत में प्रवेश कर भारतीय नागरिकता प्राप्त कर ली। अतः केन्द्र सरकार ने भारतीय नागरिकता संशोधन अधिनियम, 1986 पारित करके नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों को कठोर बना दिया।
सन 1986 के संशोधन अधिनियम के अनुसार कोई भी विदेशी जब तक कम-से-कम 10 वर्ष तक भारत ‘राज्य-क्षेत्र का निवासी नहीं रहा होगा, भारतीय नागरिकता प्राप्त नहीं कर सकेगा। भारतीय नागरिकता सम्बन्धी प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर तथा असम राज्यों पर भी लागू किया गया। इस संशोधन अधिनियम में यह शर्त भी जोड़ दी गई है कि भारत में जन्म लेने वाले व्यक्ति को भारतीय नागरिकता तभी प्राप्त होगी, जबकि उसके माता-पिता में से कोई एक भारतीय नागरिक होगा।
सन् 1992 में भारतीय संसद ने नागरिकता से सम्बन्धित दूसरा संशोधन अधिनियम पारित होगा। इस संशोधन अधिनियम के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि विदेश में निवास कर रहे किसी भारतीय दम्पती के यदि कोई सन्तान उत्पन्न होती है, तो वह भारतीय नागरिक मानी जाएगी, बशर्ते कि दम्पती में से किस एक (पति या पत्नी) ने पहले से ही भारतीय नागरिकता प्राप्त कर रखी हो। इससे पूर्व केवल पति का ही भारतीय नागरिक होना अनिवार्य था।
प्रश्न 6.
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाओं का वर्णन कीजिए तथा उन्हें दूर करने के सुझाव दीजिए।
या
आदर्श नागरिकता प्राप्त करने के मार्ग में कौन-कौन-सी बाधाएँ हैं? विवेचना कीजिए।
या
आदर्श नागरिकता के मार्ग की बाधाओं के निवारण के उपायों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर-
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली बाधाएँ
कोई भी नागरिक जन्म से ही एक आदर्श नागरिक के गुणों को लेकर पैदा नहीं होता, अपितु वह बड़ा होकर अपने जीवन में इन गुणों को विकसित करता है। परिवार, समुदाय, समाज और राज्य उसके लिए उन सुविधाओं को जुटाते हैं जिनसे वह एक आदर्श नागरिक बन सकता है। किन्तु कभी-कभी आदर्श नागरिक बनने के मार्ग में अनेक बाधाएँ उपस्थित हो जाती हैं, जिसके फलस्वरूप वह आदर्श नागरिक के गुणों से वंचित रह जाता है। ये बाधाएँ अग्रलिखित हैं
1. अशिक्षा और अज्ञानता- अशिक्षा ही अज्ञानता की जड़ है। अज्ञानी व्यक्ति में उचित और अनुचित का अन्तर कर पाने का विवेक नहीं होता। अशिक्षित व्यक्ति न तो अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है और न ही राष्ट्र की सेवा। अतः अशिक्षा व अज्ञानता व्यक्ति के आदर्श नागरिक बनने के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं।
2. व्यक्तिगत स्वार्थ- यह आदर्श नागरिक के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा है। स्वार्थी व्यक्ति अपने | स्वार्थ को सर्वोपरि मानता है और अपने स्वार्थ की पूर्ति के लिए समाज तथा राष्ट्र के हितों का भी बलिदान कर देता है। वह केवल अपने विषय में सोचता, कार्य करता और जीवित रहता है तथा किसी भी तरह अपने स्वार्थों की पूर्ति कर लेना ही सब कुछ मान लेता है; उदाहरणार्थ-व्यापारी के रूप में कालाबाजारी, सरकारी अधिकारी के रूप में रिश्वतखोरी
आदि। निजी स्वार्थों की प्रबलता ही कुछ मुद्राओं के लिए राष्ट्रीय हितों का सौदा कर लेती है।
3. निर्धनता अथवा आर्थिक विषमता- आदर्श नागरिकता के मार्ग में आर्थिक बाधाएँ प्रबल होती हैं। आर्थिक बाधाओं में दरिद्रता, बेरोजगारी तथा आर्थिक विषमता मुख्य हैं। भूखे व्यक्ति की नैतिकता और ईमान केवल रोटी बन जाती है। गम्भीर आर्थिक विषमताएँ उनमें वर्ग-संघर्ष की भावना उत्पन्न करती हैं, जिससे व्यक्ति अपने वर्ग के हित के लिए समाज के हित को अनदेखा कर देता है।
4. अकर्मण्यता- अकर्मण्यता अथवा आलस्य व्यक्ति को कार्य करने के प्रति उदासीन बना देता है। ऐसा व्यक्ति किसी प्रकार के कार्य करने में रुचि नहीं लेता और अपने कर्तव्य-पालन से दूर रहना चाहता है। इस प्रकारे अकर्मण्यता आदर्श नागरिकता की उपलब्धि में महान् दुर्गुण है।
5. साम्प्रदायिकता एवं जातीयता- अनेक बार व्यक्ति अपने सम्प्रदाय अथवा जातिगत स्वार्थों के वशीभूत होकर समाज और राज्य के हितों की भी अवहेलना करने लगता है। इसी भावना के कारण देश के अनेक भागों में भीषण रक्तपात तथा आत्मदाह जैसी घटनाएँ घटित हुई हैं। इस प्रकार की संकुचित भावनाएँ मनुष्य को आदर्श नागरिक नहीं बनने देतीं।
6. अनुचित दलबन्दी- आधुनिक प्रजातन्त्र का आधार दलीय व्यवस्था है। स्वस्थ दलीय परम्परा प्रजातन्त्रीय शासन की सफलता में सहायक होती है तथा जनसाधारण में राजनीतिक चेतना उत्पन्न करती है; किन्तु अनुचित दलबन्दी सारे वातावरण को विषाक्त कर देती है। यहाँ तक कि विभिन्न राजनीतिक दल अपने लाभ के लिए जातीय और साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काकर दंगे भी कराते हैं। ऐसे दूषित वातावरण में आदर्श नागरिकता की कल्पना भी असम्भव है।
7. सामाजिक कुप्रथाएँ और रूढ़िवादिता- कुछ सामाजिक कुप्रथाएँ भी आदर्श नागरिकता के मार्ग | में बाधा बन जाती हैं। भारतीय समाज में छुआछूत, जाति-पाँति का भेद, बाल-विवाह, दहेज-प्रथा, सती- प्रथा, विधवा-विवाह आदि ऐसी ही सामाजिक कुप्रथाएँ हैं।
8. उग्र-राष्ट्रीयता और साम्राज्यवाद- उग्र-राष्ट्रीयता के कारण नागरिक अपने राष्ट्र को ऊँचा समझते हैं तथा दूसरे राष्ट्रों से घृणा करते हैं। वे अपने राष्ट्र के क्षुद्र स्वार्थ के लिए पड़ोसी राष्ट्रों में साम्प्रदायिक वैमनस्य और आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं। इसके अतिरिक्त साम्राज्यवादी प्रवृत्ति भी आदर्श नागरिक जीवन की प्रबल शत्रु है। साम्राज्यवादी देश छोटे राज्यों को पराधीन कर लेते । हैं, जिसके कारण युद्ध होते हैं; उदाहरणार्थ-इराक की साम्राज्यवादी कार्यवाही के कारण इराक व बहुराष्ट्रीय सेनाओं में हुआ भीषण युद्ध।
आदर्श नागरिकता की बाधाओं को दूर करने के उपाय
आदर्श नागरिकता के मार्ग में आने वाली प्रमुख बाधाओं को निम्नलिखित उपायों द्वारा समाप्त किया जा सकता है
1. उचित शिक्षा को प्रसार- शिक्षा के प्रसार से व्यक्ति की बौद्धिक और सांस्कृतिक उन्नति होती है, अज्ञानता समाप्त होती है और उसमें विवेक जाग्रत होता है। शिक्षित व्यक्ति अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहता है। इसलिए शिक्षा के अधिकाधिक विकास से अज्ञानता को ।
दूर करके व्यक्ति को आदर्श नागरिक बनने में सहायता की जा सकती है।
2. निर्धनता का विनाश- ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए जिससे सभी व्यक्ति अपने भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकें। ऐसा होने पर ही | वे अपने सार्वजनिक कर्तव्यों का सम्पादन कर सकते हैं। अतः आर्थिक विषमताओं का अन्त । | करके अधिकाधिके रूप में आर्थिक समानता स्थापित की जानी चाहिए।
3. नैतिकता का उत्थान- नागरिकों को उत्तम चरित्र ही राष्ट्र की अमूल्य निधि है। जिस देश के नागरिकों में नैतिक मूल्यों का समावेश होगा, उस देश का सर्वांगीण विकास होगा। व्यक्ति को निजी स्वार्थों का त्याग करके जनहित को सर्वोपरि मानना चाहिए।
4. समाज- सुधार और रूढ़िवादिता का अन्त-समाज में प्रचलित कुप्रथाओं को सरकार द्वारा . समाज-सुधारकों की सहायता से समाप्त किया जाना चाहिए। ऐसा करने पर ही आदर्श नागरिकता का विकास सम्भव है।
5. स्वतन्त्र और शक्तिशाली प्रेस- आदर्श नागरिकता के विकास के लिए स्वतन्त्र और शक्तिशाली प्रेस का होना बहुत आवश्यक है। विभिन्न घटनाओं और गतिविधियों की सही जानकारी नागरिकों को स्वतन्त्र रूप से विचार करने के लिए प्रेरित करती है, किन्तु ऐसा तभी सम्भव है जब प्रेस सरकारी नियन्त्रण से मुक्त हो।
6. स्वस्थ राजनीतिक दलों की स्थापना- देश में राजनीतिक दलों को संगठन विशुद्ध राजनीतिक व आर्थिक आधार पर किया जाना चाहिए। ऐसा होने पर राजनीतिक दल समाज व राष्ट्र के हितों को दृष्टि में रखकर काम करेंगे। ऐसे राजनीतिक दल ही नागरिकों को प्रत्येक विषय पर सार्वजनिक हित की दृष्टि से सोचने की दिशा में अग्रसर करेंगे।
7. विश्व-बन्धुत्व की भावना उग्र- राष्ट्रीयता तथा साम्राज्यवाद के दोषों से बचने के लिए विश्व बन्धुत्व की भावना को अपनाना अत्यन्त आवश्यक है। ‘जीओ और जीने दो’ तथा ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ आदर्श नागरिकता के महान् सन्देश हैं, जो परस्पर सहयोग और सह-अस्तित्व की धारणा पर अवलम्बित हैं। इस भावना को अपनाकर एक आदर्श नागरिक अपने देश के विकास के लिए इस प्रकार कार्य करता है कि वह अन्य देशों की प्रगति में बाधक न हो।