NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-7 जन-आंदोलनों का उद
स्वतंत्र भारत में राजनीति
NCERT Solutions
CHAPTER-7 जन-आंदोलनों का उद
प्रश्नावली (उत्तर सहित)
1. चिपको आंदोलन के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से कथन गलत हैं:
(क) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आंदोलन था।
(ख) इस आंदोलन ने पारिस्थितिकी और आर्थिक शोषण के मामले उठाए।
(ग) यह महिलाओं द्वारा शुरू किया गया शराब-विरोधी आंदोलन था।
(घ) इस आंदोलन की मांग थी कि स्थानीय निवासियों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण होना चाहिए।
उत्तर (क) सहो, (ख) सही, (ग) गलत, (घ) सही।
2. नीचे लिखे कुछ कथन गलत हैं। इनकी पहचान करें और जरूरी सुधार के साथ उन्हें दुरुस्त करके दोबारा लिखें:
क) सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि पहुंचा रहे हैं।
(ख) सामाजिक आंदोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका जनाधार है।
(ग) भारत के राजनीतिक दलों ने कई मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ।
उत्तर (क) यह कथन गलत है क्योंकि सामाजिक आंदोलन भारत के लोकतंत्र को हानि नहीं पहुंचा रहे।
(ख) यह कथन ठीक है क्योंकिः सामाजिक आंदोलनों की मुख्य ताकत विभिन्न सामाजिक वर्गों के बीच व्याप्त उनका
जनाधार है।
(म) यह कथन सही है क्योंकिः भारत के राजनीतिक दलों ने कई सामजिक-आर्थिक मुद्दों को नहीं उठाया। इसी कारण सामाजिक आंदोलनों का उदय हुआ।
3. उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में (अब उत्तराखंड) 1970 के दशक में किन कारणों से चिपको आंदोलन का जन्म हुआ?
इस आंदोलन का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर चिपको आंदोलन: 'चिपको आंदोलन' बड़ा अजीब सा नाम लगता है। साधारणत: चिपके रहने शब्द का प्रयोग कुर्सी से चिपके रहने वाले नेताओं के लिए किया जाता है। परंतु यह आंदोलन पेड़ों से चिपके रहने का आह्वान किए जाने के लिए किया गया bथा। इसका आरंभ उत्तर प्रदेश के एक-दो गाँवों (अब ये गाँव उत्तराखंड में हैं) से आरंभ हुआ था और शीघ्र ही यह सारे देश में प्रसिद्ध हो गया और जंगलों की अंधाधुंध कटाई का विरोध करने वाला आंदोलन कहलाया। इस आंदोलन के अंतर्गत गाँवों के लोगों ने जंगलों की व्यावसायिक कटाई का सामूहिक विरोध किया था।
ऐसे हुआ कि गाँव के लोगों ने अपनी खेती-बाड़ी में प्रयोग किए जाने वाले हथियारों को बनाने के लिए वन विभाग से Ash tree काटने की इजाजत माँगी। परंतु वन विभाग ने उन्हें इसकी स्वीकृति नहीं दी। इसी दौरान वन विभाग ने खेल का सामान बनाने वाली एक कंपनी को भूमि का वही टुकड़ा पेड़ काटने और खेल का सामान बनाने के लिए अर्थात् व्यावसायिक रूप में प्रयोग करने के लिए दे दिया। उस कंपनी ने जब पेड़ काटने आरंभ किए तो गाँव वालों को इस की जानकारी मिली और उनमें सरकार के विरुद्ध रोप पैदा हुआ तथा उन्होंने पेड़ों की कटाई का सामूहिक रूप से विरोध किया। विरोध का यह तरीका अपनाया गया कि गाँव का प्रत्येक निवासी, स्त्री या पुरुष पेड़ से चिपक जाएँ और इसे कटने न दें। शीघ्र ही यह विरोध सारे राज्य के पहाड़ी इलाकों में फैल गया और इसका प्रभाव दूसरे राज्यों पर भी पड़ा। इस आंदोलन का नाम चिपको आंदोलन पड़ा। समय के साथ आंदोलन ने कई और मुद्दों को भी साथ ले लिया। क्षेत्र के पारिस्थितिकी की और आर्थिक मुद्दे भी इससे जुड़े। इस आंदोलन के अंतर्गत ग्रामीण जनता ने कई माँगें रखी जो निम्नलिखित हैं-
(i) स्थानीय लोगों का वहाँ के प्राकृतिक संसाधनों जैसे कि जंगल, जल, भूमि, खनिज पदार्थों पर अधिक अधिकार है और इन पर उनका नियंत्रण होना चाहिए।
(ii) पेड़ों की कटाई का ठेका बाहरी लोगों को नहीं दिया जाना चाहिए, केवल स्थानीय लोगों को ही इस ठेके को प्राप्त करने का अधिकार होना चाहिए।
(iii) यह भी माँग रखी गई कि ग्रामीण जीवन के विकास और आर्थिक समृद्धि के लिए गाँवों में लघु उद्योगों को बढ़ावा दिया जाए और इसके लिए ग्रामीण लोगों को रियायती दरों पर सामग्री तथा औजार दिए जाएँ।
(iv) पहाड़ी क्षेत्रों की सुंदरता पेड़ों से ही है और पेड़ों की कटाई इस सुंदरता को हानि पहुंचाती है तथा पर्यावरण के संतुलन को नष्ट करती है। इसलिए इस परिस्थिति के संतुलन को हानि पहुँचाए बिना ही विकास गतिविधियों को संचालित किया जाए।
(v) इस आंदोलन में भूमिहीन वन कर्मचारियों के कम वेतन तथा उनकी कमजोर आर्थिक स्थिति का मुद्दा भी जोड़ लिया गया और वह माँग की गई कि वन कर्मचारियों तथा मजदूरों के न्यूनतम वेतन की वैधानिक व्यवस्था की जाए।
(vi) आंदोलन में भागीदारी करने वाली महिलाएं पुरुषों की शराब पीने की आदत से भी परेशान थीं और चिपको आंदोलन में उनकी अधिक भागीदारी थी। अतः शराब बंदी का मुद्दा भी इसके अंतर्गत उठाया गया और क्षेत्र में शराबबंदी की मांग की गई।
प्रभावः चिपको आंदोलन 1973 में दो गांवों से आरम्भ होकर सारे राज्य में विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में फैल गया और इसमें पेड़ों की कटाई पर रोक लगाए जाने के साथ और भी कई सामाजिक मुद्दे शामिल हो गए। अंततः इसमें लोगों को सफलता मिली-
(i) सरकार ने अगले 15 वर्षों के लिए पहाड़ी क्षेत्रों में पेड़ों की कटाई पर रोक लगा दी।
(ii) इस आंदोलन ने पहाड़ी क्षेत्र के लोगों, विशेषकर महिलाओं में अपने अधिकारों के प्रति चेतना जागृत की।
(iii) चिपको आंदोलन ने देश के अन्य राज्यों में भी जन आंदोलन के आरंभ करने में भूमिका निभाई क्योंकि अन्य क्षेत्रों को महसूस हुआ कि वे किसी राजनीतिक दल का सहारा लिए बिना, अपने स्वयं के प्रयासों से अपनी कठिनाइयों की अभिव्यक्ति कर सकते हैं और सामूहिक प्रयास से उनका समाधान करवा सकते हैं।
(iv) इस क्षेत्र में शराबबंदी के बारे में भी जन चेतना उत्पन्न हुई।
4. भरतीय किसान यूनियन किसानों की दुर्दशा की तरफ ध्यान आकर्षित करने वाला अग्रणी संगठन है। नब्बे के दशक में इसने किन मुद्दों को उठाया और इसे कहाँ तक सफलता मिली?
उत्तर भारतीय किसान यूनियन द्वारा उठाए गए मुद्दे निम्नलिखित है-
(i) बिजली की दरों में बढ़ोतरी का विरोध करना।
(ii) 1980 के दशक के उत्तरार्ध से भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के प्रयास हुए और इस क्रम में नगदी फसलों के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा। भारतीय किसान यूनियन ने गन्ने और गेहूँ की सरकारी खरीद मूल्य में बढ़ोत्तरी करने, कृषि उत्पादों की अंतर्राज्यीय आवाजाही पर लगी पाबंदियाँ हटाने, समुचित दर पर गारंटीशुदा बिजली आपूर्ति करने तथा किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान करने की मांग की।
सफलताः भारतीय किसान यूनियन द्वारा उठाए गए मुद्दों में निम्नलिखित सफलताएँ मिलीं-
(i)भारतीय किसान यूनियन के कार्यकर्ता और नेता जिला समाहर्ता के दफ्तर के बाहर तीन हफ्तों तक डेरा डाले रहे। इसके बाद इनकी माँग मान ली गई। किसानों का यह बड़ा अनुशासित धरना था और जिन दिनों वे धरने पर बैठे थे उन दिनों आस-पास के गांवों से उन्हें निरंतर राशन-पानी मिलता रहा। मेरठ के इस धरने को ग्रामीण शक्ति का या कहा जाए कि काश्तकारों की शक्ति का एक बड़ा प्रर्दशन माना गया।
(ii) 1990 के दशक के आरम्भिक वर्षों तक भारतीय किसान यूनियन ने अपने को सभी राजनीतिक दलों से दूर रखा था। यह अपने सदस्यों की संख्या बल के दम पर राजनीति में एक दबाव समूह की तरह सक्रिय था। इस संगठन ने राज्यों में मौजूद अन्य किसान संगठनों का साथ लेकर अपनी कुछ अन्य मांगे मनवाने में भी सफलता पाई। इस अर्थ में किसान-आंदोलन अस्सी के दशक में सबसे ज्यादा सफल सामाजिक आंदोलन था।
5.आंध्र प्रदेश में चले शराब-विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान कुछ गंभीर मुद्दों की तरफ खींचा। ये मुद्दे क्या थे?
उत्तर आंध्र प्रदेश में चले शराब-विरोधी आंदोलन ने देश का ध्यान निम्नलिखित गंभीर मुद्दों की ओर खींचा-
(i) शराब पीने के कारण पुरुप शारीरिक और मानसिक रूप से काफी कमजोर होते जा रहे थे और इसीलिए वे खेतीबाड़ी के काम में अधिक भागीदारी नहीं करते थे जिससे कृषि उत्पाद पर बुरा प्रभाव पड़ता था।
(ii) शराब पीने के कारण परिवारों की आर्थिक दशा बुरी तरह प्रभावित थी। लोग उधार लेकर भी शराब पीते थे और कर्ज के बोझ से दबे हुए थे।
(iii) शराब ठेकेदार उधार देकर भी शराब पीने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करते थे और कई बार खेती की भूमि भी कर्ज उतारने में चली जाती थी।
(iv) पुरुष शराब में धुत रहने के कारण भी खेती नहीं जा पाते थे और घरेलू कामों के साथ खेती-बाड़ी का काम भी महिलाओं के सिर पर बढ़ता जा रहा था।
(v) अधिक शराब पीने से पुरुष घर में मारपीट भी करते थे और महिलाओं को पीटे जाने तथा बच्चों पर भी मारपीट करने की घटनाएँ दैनिक रूप से घटने लगीं।
(vi) शराबखोरी और मारपीट से पारिवारिक अर्थव्यवस्था चरमराने लगी। इतना ही नहीं घरों में तनाव का वातावरण भी फैलने लगा और लगभग सारे गांव की महिलाएं इससे तनावग्रस्त तथा परेशान रहने लगी थीं।
6.क्या आप शराब-विरोधी आंदोलन को महिला-आंदोलन का वर्ज़ा देंगे? कारण बताएँ।
उत्तर शराब-विरोधी आंदोलन को निश्चय ही महिला आंदोलन का दर्जा दिया जा सकता है क्योंकि यह आंदोलन वास्तव में महिलाओं की स्थिति में सुधार करवाने के लिए किया गया था। पुरुष जब शराब की आदत के कारण काम नहीं करते, नशे में धुत रहते हैं, परिवार की आय कम होने लगती है और घर में मारपीट भी होने लगती है इन सब बातों का सबसे बुरा प्रभाव महिलाओं की स्थिति पर पड़ता है। उन्हें अधिक काम करना पड़ता है, कम आमदनी में घर का खर्च चलाना पड़ता है, खुद भूखे रहकर बच्चों तथा पुरुषों को खाना देना होता है (भारतीय संस्कृति के अनुसार) और पुरुष के हाथों मार भी खानी पड़ती है, गाली तथा. अपशब्द भी सुनने पड़ते हैं, कभी-कभी पुरुष स्त्री को घर से बाहर निकालने की धमकी भी देता है। इन सब बातों को देखते हुए शराबबंदी की माँग करना महिला आंदोलन का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष या मुद्दा है।
7. नर्मदा बचाओ आंदोलन ने नर्मदा घाटी की बाँध परियोजनाओं का विरोध क्यों किया?
उत्तर नर्मदा बचाओ आंदोलन ने कई कारणों के आधार पर नर्मदा पर बनाए जाने वाले इस विशाल बाँध का विरोध किया है-
• (i) बाँध के निर्माण से संबंधित राज्यों के 245 से अधिक गांवों को जलसमाधि मिलती थी। इन गांवों के लोगों के पुनर्वास का प्रश्न सबसे पहला मुद्दा था जिस पर गांववालों ने विरोध आरंभ किया था। इन प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या 2.5 लाख से अधिक थी।
(ii) नर्मदा बचाओ आंदोलन के अंतर्गत यह भी सवाल उठाया गया कि विकास का जो प्रारूप अपनाया जा रहा है, वह उचित है या नहीं, इस पर भी पूरी तरह से विचार किया जाए। बाँधों और डैमों के निर्माण पर होने वाले खर्चा, उनसे समाज के विभिन्न वर्गों, गांवों तथा परिवारों द्वारा भुगते जाने वाले परिणामों का भी पूरी तरह से मूल्यांकन किए बिना बाँध बनाने का निर्णय करना उचित नहीं। विकास की सामाजिक कीमत का सही-सही मूल्यांकन किया जाए तो स्पष्ट हो जाता है कि बाँध समाज को विकसित करने की बजाए नष्ट करने की भूमिका निभाते हैं क्योंकि इनसे बहुत बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होते हैं, उनकी आजीविका पर प्रभाव पड़ता है और विस्थापित लोगों का सांस्कृतिक शोषण भी होता है क्योंकि पुनर्वास के बाद लोग न तो आजीविका की दृष्टि से दूसरी जगह आसानी से जम पाते हैं और न ही सांस्कृतिक दृष्टि से। उनका सांस्कृतिक विकास प्रभावित होता है।
(ii) पर्यावरण के प्रति सतर्क संगठनों का यह कहना है कि बाँधों के निर्माण से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है, पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है और जलवायु में भी परिवर्तन आता है।
8. क्या आंदोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है? अपने उत्तर की पुष्टि में उदाहरण दीजिए।
उत्तर हाँ, आंदोलन और विरोध की कार्रवाइयों से देश का लोकतंत्र मजबूत होता है। उदाहरण-
(i) चिपको आंदोलन अहिंसक, शांतिपूर्ण चलाया गया एक व्यापक जन-आंदोलन था। इसमें पेड़ों की कटाई, वनों का उजड़ना रुका। पशु-पक्षियों, गिरिजनो को जल, जगल, जमीन और स्वास्थ्यवर्धक पर्यावरण मिला। सरकार लोकतांत्रिक माँगों के सामने झुकी।
(ii) शराव विरोधी आंदोलन ने नशाबंदी और मद्यनिषेध के मुद्दे पर वातावरण तैयार किया। महिलाओं से संबंधित अनेक समस्याएँ जैसे-उत्पीड़न, दहेज प्रथा, घरेलू समस्या और महिलाओं को विधायिकाओं में आरक्षण दिए जाने की मांग उठी। संविधान में कुछ संशोधन हुए और कानून बनाए गए।
(iii) दलित पँथर्स के नेताओं द्वारा चलाए गए आंदोलनों, सरकार विरोधी साहित्यकारों की कविताओं और रचनाओं ने, आदिवासी, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और पिछड़ी जातियों में चेतना पैदा की। दलित पैंथर्स जैसे राजनीतिक दल और संगटन बने। जाति भेद-भाव और छुआछुत को धक्का लगा। समाज में समानता, स्वतंत्रता, सामाजिक त्याग, आर्थिक न्याय, राजनैतिक न्याय को सुदृढ़ता मिली।
(iv) वामपंथियों द्वारा शांतिपूर्ण चलाए गए किसान और मजदूर आदोलन द्वारा जन-साधारण में जागृति, राष्ट्रीय कार्यों में भागीदारी और सर्वहारा वर्ग को उचित मांगों के लिए सरकार को जगाने में सफलता मिली।
9. दलित-पैंथर्स ने कौन-से मुद्दे उठाए?
उत्तर बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक के शुरुआती सालों से शिक्षित दलितों की पहली पीढ़ी ने अनेक मंचों से अपने हक की आवाज उठायी। इनमें ज्यादातर शहर की झुग्गी-वस्तियों में पलकर बड़े हुए दलित थे। दलित हितों को दावेदारी के इसी क्रम में महाराष्ट्र में दलित युवाओं का एक संगठन 'दलित पैंथर्स' 1972 में बना।
दलित पँथर्स द्वारा उठाए गए मुद्दे निम्नलिखित हैं-
(i)आजादी के बाद के सालों में दलित समूह मुख्यतया जाति आधारित असमानता और भौतिक साधनों के मामले में अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ रहे थे। वे इस बात को लेकर सचेत थे कि संविधान में जाति आधारित किसी भी तरह के भेदभाव के विरुद्ध गारंटी दी गई है।
(ii) आरक्षण के कानून तथा सामाजिक न्याय की ऐसी ही नीतियों का कारगर क्रियान्वयन इनकी प्रमुख माँग थी।
(iii) भारतीय संविधान में छुआछुत की प्रथा को समाप्त कर दिया गया है। सरकार ने इसके अंतर्गत साठ और सत्तर के दशक में कानून बनाए। इसके बावजूद पुराने जमाने में जिन जातियों को अछूत माना गया था, उनके साथ इस नए दौर में भी सामाजिक भेदभाव तथा हिंसा का बर्ताव कई रूपों में जारी रहा।
(iv) दलितों की बस्तियाँ मुख्य गांव से अब भी दूर होती थीं। दलित महिलाओं के साथ यौन-अत्याचार होते थे। जातिगत प्रतिष्ठा की छोटी-मोटी बात को लेकर दलितों पर सामूहिक जुल्म ढाये जाते थे। दलितों के सामाजिक और आर्थिक उत्पीड़न को रोक पाने में कानून की व्यवस्था नाकाफी साबित हो रही थी।
10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें:
...लगभग सभी नए सामाजिक आंदोलन नयी समस्याओं जैसे-पर्यावरण का विनाश, महिलाओं की बदहाली,
आदिवासी संस्कृति का नाश और मानवाधिकारों का उल्लंघन... के समाधान को रेखांकित करते हुए उभरे। इनमें से कोई भी अपनेआप में समाजव्यवस्था के मूलगामी बदलाव के सवाल से नहीं जुड़ा था। इस अर्थ में ये आंदोलन अतीत कीक्रांतिकारी विचारधाराओं से एकदम अलग हैं। लेकिन, ये आंदोलन बड़ी बुरी तरह बिखरे हुए हैं और यही इनकी कमजोरी है... सामाजिक आंदोलनों का एक बड़ा दायरा ऐसी चीजों की चपेट में है कि वह एक ठोस तथा एकजुट जन आंदोलन का रूप नहीं ले पाता और न ही वंचितों और गरीबों के लिए प्रासंगिक हो पाता है। ये आंदोलन बिखरे-बिखरे हैं, प्रतिक्रिया के तत्त्वों से भरे हैं, अनियत हैं और बुनियादी सामाजिक बदलाव के लिए इनके पास कोई फ्रेमवर्क नहीं है। इस' या 'उस' के विरोध (पश्चिम विरोधी, पूँजीवाद विरोधी, 'विकास'-विरोधी, आदि) में चलने के कारण इनमें कोई संगति आती हो अथवा दबे-कुचले लोगों और हाशिए के समुदायों के लिए ये प्रासंगिक हो पाते हों-ऐसी बात नहीं।
-रजनी कोठारी
(क) नए सामाजिक आंदोलन और क्रांतिकारी विचारधाराओं में क्या अंतर है?
(ख) लेखक के अनुसार सामाजिक आंदोलनों की सीमाएँ क्या-क्या हैं?
(ग) यदि सामाजिक आंदोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो आप उन्हें 'बिखरा' हुआ कहेंगे या मानेंगे कि वे अपने मुद्दे
पर कहीं ज्यादा केंद्रित है। अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
उत्तर (क) सामाजिक आंदोलन समाज से जुड़े हुए मामलों अथवा समस्याओं को उठाते हैं जैसे जाति भेदभाव, रंग भेदभाव, लिंग भेदभाव के विरोध में चलाए जाने वाले सामाजिक आंदोलन। इसी प्रकार ताड़ी विरोधी आंदोलन और अन्य नशीले पदार्थ पर रोक nलगाए जाने के पक्ष में आंदोलन।
(ख) सामाजिक आंदोलनों की सीमाएँ है। ये हैं कि जब यह अतीत की बात करते हैं तो प्राय: नवीन विचारधाराओं से वे दूर रहते हैं और जब वे नई समस्याएँ उठाते हैं तो परंपराओं से उन्हें या तो समझौता करना पड़ता है या उन्हें रूढ़िवादियों का शिकार बनना पड़ता है। उनका एक बड़ा दायरा ऐसी बड़ी चपेट में होता है जो ठोस और एकजुटता का आंदोलन ग्रहण नहीं कर पाता।
(ग) यदि सामाजिक आंदोलन विशिष्ट मुद्दों को उठाते हैं तो हम उन्हें बिखरा हुआ कहेंगे अथवा हम यह मानेंगे कि वे अपने मुद्दे पर कहीं अधिक केंद्रित हैं।
हम अपने उत्तर की पुष्टि उनके द्वारा किए जा रहे आंदोलन की प्रवृत्ति या स्वरूप को देखकर ही तय कर पाएंगे। जैसे वे समाज में सांप्रदायिक सद्भाव के विरुद्ध आंदोलन चलाते हैं तो जो लोग धर्मनिरपेक्षता में विश्वास करते हैं या जो लोग धर्म को केवल व्यक्तिगत मामला मानते हैं, वह गुट और कट्टरपंथियों का गुट अलग-अलग हो जाएगा। समाज बिखरा हुआ लगेगा।
खुद करें-खुद सीखें
एक हफ्ते के अखबार की खबरों पर नजर दौड़ाएँ और ऐसी तीन रिपोर्टों को चुनें जिन्हें आप जन आंदोलन से जुड़ी खबर मानते हों। इन आंदोलनों की मुख्य मांगों का पता करें। पता लगाएँ कि अपनी मांगों को स्वीकृति के लिए इन आंदोलनों ने क्या तरीका अपनाया है और राजनीतिक दलों की इस पर क्या प्रतिक्रिया है?
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
1. चिपको आंदोलन की शुरुआत कहाँ हुई थी?
उत्तर चिपको आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के दो-तीन गाँवों से हुई थी।
2. चिपको आंदोलन क्या है?
उत्तर चिपको आंदोलन पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आंदोलन है जिसमें लोग पेड़ों को अपनी बाँहों में घेरकर उससे चिपक जाते हैं ताकि पेड़ों को कटने से बचाया जा सके।
3. बीसवीं शताब्दी के शुरुआती दशकों में अस्तित्व में आए कुछ सामाजिक आंदोलनों का नाम लिखिए।
उत्तर जाति प्रथा विरोधी आंदोलन, किसान सभा आंदोलन और मजदूर संगठनों के आंदोलन।
4. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आंध्र प्रवेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के कुछ भागों में हुए किसान तथा खेतिहर मजदूरों का आंदोलन किस प्रकार का आंदोलन था?
उत्तर आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल तथा बिहार के कुछ भागों में मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में हुए किसान तथा खेतिहर मजदूरों का आंदोलन मुख्य रूप से आर्थिक अन्याय तथा असमानता के मुद्दे को लेकर था।
5. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हमारे देश में किस प्रकार के विकास का मॉडल अपनाया गया था?
उत्तर नियोजित विकास का मॉडल।
6. आजादी के बाद नियोजित विकास का मॉडल अपनाने के पीछे क्या लक्ष्य था?
उत्तर नियोजित विकास के मॉडल को अपनाने के पीछे दो लक्ष्य थे-आर्थिक संवृद्धि और आय का समतापूर्ण विभाजन।
7. स्वयंसेवी संगठनों को 'स्वतंत्र राजनीतिक संगठन' क्यों कहा जाता है?
उत्तर स्वयंसेवी संगठनों ने राजनीतिक भागीदारी के लिए राजनीतिक दलों को नहीं चुना इसलिए इन्हें 'स्वतंत्र राजनीतिक संगठन' कहा जाता है।
8. दलित पैंथर्स क्या था?
उत्तर महाराष्ट्र में 1972 में अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने के लिए दलित युवाओं का एक संगठन बना जिसका नाम दलित पैंथर्स था।
9. दलितों द्वारा समर्थन प्राप्त किसी एक राजनीतिक दल का नाम लिखिए।
उत्तर रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया।
10. दलित पैंथर्स के पतन के बाद किस संगठन ने इसका स्थान ले लिया?
उत्तर वैकवर्ड एंड माइनॉरिटी एम्पलाईज फेडरेशन (बामसेफ) ने।
11. 1980 के दशक के उत्तरार्ध में किन कारणों से नकदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा?उत्तर 1980 के दशक के उत्तरार्ध में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के प्रयास के कारण नकदी फसल के बाजार को संकट का सामना करना पड़ा।
12. ताड़ी-विरोधी आंदोलन कब और कहाँ शुरू हुआ?
उत्तर ताड़ी-विरोधी आंदोलन 1990 के शुरूआती दौर में आंध्र प्रदेश के नेल्लौर जिले में शुरू हुआ।
13. दलितों के उद्धार के लिए दी जाने वाली सुविधाओं को लिखिए।
उत्तर दलितों अथवा अनुसूचित जातियों के उद्धार, उत्थान और विकास के लिए सरकार के द्वारा निम्नलिखित सुविधाओं की व्यवस्था है ताकि ये वर्ग भी समाज के अन्य उन्नत वर्गों के समान स्तर पर आ जाएँ।
(i) अनुसूचित जातियों के लिए संसद, राज्य विधानमंडल. नगरपालिकाओं व पंचायतों में 15 प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं।
(ii) सरकारी सेवाओं (केंद्रीय सरकार तथा राज्य) में उनके लिए 15 प्रतिशत स्थानों का आरक्षण है।
(iii) शिक्षा संस्थाओं में प्रवेश हेतु उनके लिए 15 प्रतिशत स्थान आरक्षित हैं और उन स्थानों में भर्ती के लिए योग्यतास्तर में भी ढील दी जाती है।
(iv) इन जातियों में विद्यार्थियों के लिए शिक्षा संस्थाओं में निःशुल्क शिक्षा, छात्र-वृत्ति, पुस्तकों के लिए ऋण तथा चुक-बैंक, छात्रावासों आदि की व्यवस्था है। सरकार ने अनुसूचित जातियों के विद्यार्थियों के लिए अलग-अलग छात्रावास भी खोले हुए हैं।
(v) सरकार ने दलितों के लिए आवास क्षेत्र बनाए हैं और बेघरों को निःशुल्क स्थान तथा सस्ते दामों पर मकान आवंटित किए हैं।
(vi) व्यवसायों तथा उद्योग-धंधों के लिए इन जातियों के लोगों को विदेश-शिक्षा ट्रेनिंग तथा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।
14. आंध्र प्रदेश में शराब-विरोधी अभियान का क्या प्रभाव हुआ? संक्षेप में समझाइए।
उत्तर शराब-विरोधी आंदोलन पूरे आंध्र प्रदेश में फैला। इस आंदोलन के बड़े दूरगामी प्रभाव पड़े। ये प्रभाव निम्नलिखित हैं-
(i) ताड़ी विरोधी मुद्दा महिला आंदोलन के विभिन्न मुद्दों के साथ जुड़ गया और महिला आंदोलन का एक अंग बन गया। घरेलू bहिंसा, दहेज, कार्यस्थलों पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न, बलात्कार आदि के साथ ताड़ी का विरोध भी एक प्रमुख मुद्दा बन गया क्योंकि इससे परिवार पर बुरा प्रभाव पड़ता था।
(ii) ताड़ी विरोधी आंदोलन ने ग्रामीण महिलाओं में चेतना का विकास किया और उनमें अपने साथ किए जाने वाले जुल्म तथा शोषण के विरुद्ध एकजुट होकर आवाज उठाने को भावना तथा चेतना को विकसित किया।
(iii) आगे चलकर महिलाओं ने पुरुष के साथ समानता, लिंग के आधार पर भेदभाव का विरोध, संपत्ति में पुत्रों के समान पुत्रियों को समान भागीदारी अथवा समान उत्तराधिकार आदि को मांगें रखीं।
(iv) ताड़ी-विरोधी आंदोलन ने महिलाओं में यह जागृति भी पैदा की कि उन्हें सेना, पुलिस, सुरक्षा आदि के संवेदनशील कार्यों में भी पुरुषों के साथ समान भागीदारी का अधिकार होना चाहिए।
(v)1992-93 के 74वें संविधान संशोधन द्वारा स्थानीय स्वशासन संस्थाओं में स्त्रियों के लिए एक-तिहाई स्थानों के आरक्षण की व्यवस्था की गई।
15. महिला सशक्तिकरण के साधन के रूप में संसद और राज्य विधान सभाओं में सीटें आरक्षित करने की माँग का परीक्षण कीजिए।
उत्तर किसी भी देश के संपूर्ण विकास के लिए सभी क्षेत्रों में स्त्रियों और पुरुषों की अधिकतम भागीदारी होनी चाहिए। पुरुष और महिलाएँ दोनों ही कंधे से कंधा मिलाकर एक सुखी और सुव्यवस्थित निजी पारिवारिक और सामाजिक जीवन व्यतीत करें। हमारे देश में जनसंख्या के लगभग आधे हिस्से की क्षमता का कम उपयोग सामाजिक और आर्थिक विकास के लिए एक गंभीर बाधा है। 1922 से 1999 तक संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत ही कम रहा है।
महिला आंदोलन चुनावी संस्थाओं में महिलाओं के आरक्षण के लिए संघर्ष करता रहा है। 73वें और 74वें संविधान संशोधन के द्वारा महिलाओं को पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं एवं नगर निगमों में 33 प्रतिशत आरक्षण प्राप्त हुआ है। इस आंदोलन को केवल आंशिक सफलता मिली है। संसद और राज्य विधान सभाओं में ऐसे ही आरक्षण के लिए संघर्ष जारी है लेकिन जहाँ लगभग सभी राजनीतिक दल खुले तौर पर इस माँग का समर्थन करते हैं वहीं जब यह विधेयक संसद के समक्ष पेश होता है तो किसी न किसी प्रकार इसे पारित नहीं होने दिया जाता है।
16. लोकतांत्रिक राजनीति में जन आंदोलनों की भूमिका तथा प्रभाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर (ii) लोकतांत्रिक राजनीति में जन आंदोलनों की भूमिका तथा प्रभाव- जन आंदोलन लोकतांत्रिक राजनीति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और लोकतांत्रिक प्रक्रिया तथा लोकतांत्रिक प्रणाली को सफल तथा मजबूत बनाते हैं। निम्नलिखित तथ्य इस बात की पुष्टि करते जन आंदोलनों को राजनीति की प्रयोगशाला कहा जा सकता है क्योंकि इनके माध्यम से नए-नए मुद्दे तथा विचार, नई-नई माँगे तथा उनके समाधान राजनीति के पटल पर उभरते रहते हैं। उनमें जो सफल होते हैं,जो जनता को अपनी ओर खींचते और उनके जो समाधान निकाले जाते हैं, वे राजनीति में अपना लिए जाते हैं। विभिन्न राजनीतिक दल उनको अपने एजेंडा में, अपनी नीतियों में स्थान देते हैं और इस प्रकार राजनीतिक क्षेत्र फैलता रहता है।
(ii) जन आंदोलन राजनीति के व्यावहारिक पहलू को उजागर करते हैं। केन्द्रीय सरकार तथा राज्य सरकारें जनहित तथा जन-कल्याण को सामने रखकर नोति या तथा कानून बनाते हैं। जन आंदोलन उनके व्यावहारिक पक्ष को स्पष्ट करते हैं और बताते हैं कि कोई नीति कानून व्यावहारिक रूप से सफल है या नहीं। अधिकतर जन आंदोलन सरकार की नीतियों और कार्यों तथा कानूनों के व्यावहारिक परिणामों को लेकर उभरते और फैलते हैं।
(iii) जन-आंदोलन सरकार की कमियों की ओर इशारा करते हैं और उसे अपनी कमियों, अपनी ज्यादतियों या अपने ढीलेपन को दूर करने का अवसर देते हैं।
(iv) जन आंदोलन जनता और सरकार के बीच कड़ी का काम करते हैं, संचार माध्यम की भूमिका निभाते हैं और इस बात की सूचना सरकार को देते हैं कि लोग वास्तव में क्या चाहते हैं, उनकी क्या आकांक्षाएँ हैं और उन्हें कैसे पूरा किया जाना चाहिए।
(v) जन आंदोलन सामाजिक परिवर्तन के कारण समाज में उभरे नए वर्गों तथा नए हितों की सामाजिक-आर्थिक समस्याओं की अभिव्यक्ति करते हैं, जो चुनावी राजनीति के द्वारा अपनी बात नहीं कह पाए हैं या उनकी बात सरकार तक नहीं पहुंची है, या उन्हें सरकार में समुचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाया है।
(vi) जन आंदोलन दलीय राजनीति की कमियों को भी पोल खोलते हैं। जन आंदोलन उसी समय उभर कर आते हैं जब जन साधारण यह सोचने लगता है कि राजनीतिक दलों के माध्यम से वे अपनी बात सरकार तक नहीं पहुँचा सकते या राजनीतिक दल उनकी मांगों, समस्याओं तथा दृष्टिकोण को कोई महत्त्व नहीं देते।
(vi) जन आंदोलन सरकार के विरुद्ध, समाज में विकसित, तनाव और गुस्से को एक सार्थक दिशा देते हैं और लोगों को सरकार के विरुद्ध सामूहिक प्रदर्शन करने तथा अपनी बात अनुशासित तरीके से कहने का अवसर देते हैं और इस प्रकार से समाज में व्यक्तिगत अपराधों पर रोक लगाते हैं, कानून और व्यवस्था में सहायक होते हैं तथा लोकतंत्र को मजबूत बनाने में भूमिका निभाते हैं।
बहुविकल्पीय प्रश्न
सही उत्तर पर (✓)का चिन्ह लगाइए-
1. निम्न में से कौन-सा कथन चिपको आंदोलन से सम्बन्धित नहीं है?
(क) इस आंदोलन की शुरुआत उत्तराखंड के गांवों से हुई थी।
(ख) यह पेड़ों की कटाई को रोकने के लिए चला एक पर्यावरण आंदोलन है।
(ग) यह दलितों द्वारा अपने अधिकारों के लिए शुरू किया गया आंदोलन था।
(घ)इसमें लोग पेड़ को अपनी बाँहों में घेरकर चिपककर खड़े हो कर पेड़ को कटने से बचाते थे।
2. आर्थिक अन्याय और असमानता के मुद्दे को लेकर किसानों और खेतिहर मजदूरों द्वारा मार्क्सवादी-लेनिनवादी कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं के नेतृत्व में किन राज्यों में आंदोलन शुरू किया गया?
(क) बिहार
(ख) पश्चिम बंगाल
(ग) आंध्र प्रदेश
(घ) उपरोक्त सभी
3. आजादी के बाद भारत में नियोजित विकास का मॉडल अपनाने के पीछे क्या लक्ष्य था?
(क) आर्थिक संवृद्धि
(ख) आय का समतापूर्ण विभाजन
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) उपरोक्त में कोई नहीं
4. दलित समुदाय का मुक्तिदाता निम्न में से किसे कहा जाता है?
(क) डॉ. अम्बेडकर
(ख) जवाहरलाल नेहरू
(ग) राजेन्द्र प्रसाद
(घ) सुभाषचन्द्र बोस
5. दलित पैंथर्स संगठन निम्न में से किस राज्य में बना?
(क) महाराष्ट्र
(ख) गुजरात
(ग) विहार
(घ) केरल
6. दलित पँथर्स संगठन कब बना?
(क) 1960
(ख) 1972
(1) 1970
(घ) 1980
7. दलित पैथर्स का वृहत्तर विचारधारात्मक एजेंडा निम्न में से क्या था?
(क) जाति प्रथा को समाप्त करना
(ख) भूमिहीन गरीब किसानों का संगठन बनाना
(ग) दलितों पर हो रहे अत्याचार का विरोध करना
(घ)उपरोक्त सभी
8. हरित क्रांति से 1960 के दशक के अंतिम वर्षों से किस राज्य के किसानों को लाभ मिलने लगा?
(क) हरियाणा
(ख) पश्चिमी उत्तर प्रदेश
(ग) पंजाब
(घ) उपरोका सभी
9. हरित क्रांति के कारण हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के राज्यों के किसानों का निम्न में से कौन मुख्य नकदी फसल थी?
(क) गेहूँ
(ख) गन्ना
(ग) (क) और (ख) दोनों
(घ) उपरोक्त में कोई नहीं
10. 1990 के शुरुआती दौर में भारत के किस राज्य में ताड़ी-विरोधी आंदोलन शुरू हुआ?
(क) आंध्र प्रदेश
(ख) उत्तर प्रदेश
(ग) महाराष्ट्र
(घ) गुजरात
उत्तर 1.(ग) 2.(घ) 3.(ग) 4.(क) 5.(क) 6.(ख) 7.(घ) 8.(घ) 9.(ग) 10.(क)