NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-5 कांग्रेस प्रणाली - चुनौतियां और पुनर्स्थापन

NCERT  Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-5  कांग्रेस प्रणाली - चुनौतियां और पुनर्स्थापन

NCERT Solutions Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 12 वीं कक्षा से Chapter-5 कांग्रेस प्रणाली - चुनौतियां और पुनर्स्थापन के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी स्वतंत्र भारत में राजनीति के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-5  कांग्रेस प्रणाली - चुनौतियां और पुनर्स्थापन


CBSE Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 

NCERT Solutions

CHAPTER-5 कांग्रेस प्रणाली - चुनौतियां और पुनर्स्थापन

प्रश्नावली ( उत्तर सहित)

1. 1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं:

(क) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।

(ख) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।

(ग) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई।

(घ) कांग्रेस केंद्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।

उत्तर (घ) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई।

2. निम्नलिखित का मेल करें:

(क) सिंडिकेट                    (i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से

                                          जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे वल में चला जाए।

(ख) दल-बदल                 (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।

(ग) नारा                          (iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग

                                             विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

(घ) गैर-कांग्रेसवाद           (iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह।

उत्तर (क) सिडिकेट    (i) कोई निर्वाचित जन प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो उस पार्टी को छोड़कर                                          अगर दूसरे दल में चला जाए।

(ख): दल-बदल       (ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा।

(ग) नारा                  (iii)(कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का    एक समूह।

(घ) गैर-कांग्रेसवाद     (iv) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग

                                   विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना।

3. निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का संबंध है:

(क) जय जवान, जय किसान (ख) इंदिरा हटाओ! (ग) गरीबी हटाओ!

उत्तर (क) लाल बहादुर शास्त्री। (ख) विरोधी दला (ग) इंदिरा गाँधी।

4. 1971 के 'ग्रैंड अलायंस' के बारे में कौन-सा कथन ठीक है?

(क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

(ख) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।

(ग) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।

उत्तर (क) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर-कांग्रेसी दलों ने किया था।

5. किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।

(क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।

(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।

(ग) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।

(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।

उत्तर (क) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।

फायदा- पार्टी में अनुशासन बढ़ेगा।

घाटा- पार्टी में अध्यक्ष या बड़े नेताओं की दादागिरी बढ़ेगी और पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र कमजोर होगा।

(ख) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करनाः

फायदा- इससे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा। छोटे कार्यकर्ताओं में अधिक प्रसन्नता होगी।

घाटा- पार्टी में गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। प्रायः प्रत्येक मामले में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक खेमा सामने आएगा।

(ग) हरेक मामले में गुप्त मतदान करानाः

फायदा- यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक और निष्पक्ष है।

घाटा राजनैतिक पार्टियों के अध्यक्ष के व्हिप जारी करने के बावजूद उम्मीद के अनुरूप कई बार परिणाम नहीं

मिलते।

(घ) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करनाः

फायदा- कम उम्न के नेताओं को अनुभवी एवं परिपक्व लोगों की सलाह या मार्गदर्शन मिलेगा। नई पीढ़ी को इसका

लाभ मिलेगा।

घाटा- पार्टी में सिर्फ वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं की मनमानी चलेगी।

6. निम्नलिखित में से किसे/किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए:

(क) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।

(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर दूट।

(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।

(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।

(ङ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद।

उत्तर (क) कांग्रेस पार्टी में करिशमाई नेता का अभाव- इसे कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि कांग्रेस में अनेक वरिष्ठ और अनुभवी करिश्माई नेता थे।

(ख) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट- यह कांग्रेस की पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था क्योंकि कांग्रेस अब दो गुटों में बँटती जा रही थी। सिंडिकेट का कांग्रेस के संगठन पर अधिकार था तो इंडिकेट या इंदिरा समर्थकों में व्यक्तिगत वफादारी और कुछ कर दिखाने की चाहत के कारण मतभेद बढ़ते जा रहे थे। एक गुट पूँजीवाद, उदारवाद, व्यक्तिवाद को ज्यादा चाहता था तो दूसरा गुट रूसी ढंग के समाजवाद, राष्ट्रीयकरण, देशी राजाओं विरोधी नीतियों की खुले आम आलोचना करता था।

(ग) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों को लामबंदी को बढ़ाना- 1967 में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी.एम. के. जैसे दलों के उदय से अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक लामबंदी को बढ़ावा मिलने के कारण कांग्रेस को भारी धक्का लगा। वह केन्द्र में स्पष्ट बहुमत न प्राप्त कर सकी और कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।

(घ) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता- गैर कांग्रेसी दलों के बीच पूर्ण रूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रांतों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर कांग्रेसी दलों को लाभ मिला।

(ङ) कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद- कांग्रेस पार्टी के अंदर मतभेद के कारण बहुत जल्दी ही आंतरिक फूट कालांतर में सभी के सामने आ गई और लोग यह मानने लगे कि 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह कारण भी एक महत्त्वपूर्ण था।

7. 1970 के दशक में इंदिरा गाँधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?

उत्तर (i) 1970 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार कई कारणों से लोकप्रिय हुई थी। इंदिरा गाँधी की सरकार ने अनेक साहसी फैसले लिए। उनकी सरकार ने अधिक प्रगतिशील कार्यक्रम जैसे बीस सूत्री कार्यक्रम, गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का वायदा और कल्याणकारी सामाजिक-आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की। इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुई।

(ii) इंदिरा गाँधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी.वी. bगिरि जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध चुनाव जिता कर लाना। इन सबने इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार को लोकप्रिय बनाया। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में इंदिरा गाँधी की कूटनीति ने बांग्लादेश का निर्माण कराया और पाकिस्तान को शिकस्त दिलवाई। इससे इंदिरा गांधी की लोकप्रियता काफी बढ़ी।

8. 1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में 'सिंडिकेट' का क्या अर्थ है? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई?

उत्तर कांग्रेस पार्टी में सिंडिकेट- 1960 के दशक में कांग्रेस पार्टी के संगठनात्मक ढाँचे में कुछ प्रमुख नेताओं का एक समूह उभरकर आया था और कांग्रेस के सभी निर्णयों तथा गतिविधियों पर उस समूह की छाप पड़ने लगी थी। वह एक प्रकार से किंग मेकर के समान था। इसी समूह को अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट कहा जाता था। कांग्रेस पार्टी के संविधान में इसकी कोई व्यवस्था नहीं थी और सभी निर्णय पार्टी संविधान के अनुसार लोकतांत्रिक तरीके से होने चाहिए थे इस समूह के प्रमुख नेता थे के. कामराज (मद्रास), बम्बई के एस.के. पाटिल, मैसूर के एस. निजलिंगप्पा, पश्चिमी बंगाल के अतुल्य घोष, आंध्र प्रदेश के.एन. संजीवा रेड्डी। 

धीरे-धीरे इस समूह का दबदबा बढ़ता गया। नेहरू की मृत्यु के बाद लाल बहादुर शास्त्री को और उनकी मृत्यु के बाद इंदिरा गाँधी को प्रधानमंत्री बनवाने में इसने ही अहम भूमिका निभाई थी। सिंडिकेट इतना प्रभावी होने लगा था कि प्रधानमंत्री का स्वतंत्रतापूर्वक काम करना कठिन था और सिंडिकेट चाहता था कि प्रधानमंत्री उससे सलाह लेकर मंत्रिपरिषद का गठन करे और शासन को नीतियाँ अपनाए। 1969 में राष्ट्रपति के चुनाव में इस इस समूह ने इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद संजीवा रेड्डी को राष्ट्रपति पद के लिए कांग्रेस उम्मीदवार नामांकित करवा दिया। इंदिरा गांधी ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कांग्रेस के उम्मीदवार के विरुद्ध वी.वी. गिरी को स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में खड़ा करवा दिया तथा इसे निर्वाचित करवा दिया। सिंडिकेट । ने अनुशासन हीनता का आरोप लगाकर इंदिरा गाँधी को दल से निकाल दिया, जिस पर कांग्रेस का विभाजन हुआ। 1971 के चुनाव में इसको एक और झटका लगा जब कि इसे कुल 16 स्थान मिले। सिंडिकेट कांग्रेस के विभाजन का कारण बनी और उसकी अपनी भी समाप्ति हुई।

9. कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई?

उत्तर कांग्रेस पार्टी निम्न मसलों को लेकर 1969 में टूट की शिकार हुई-

(i) इंदिरा गाँधी की कांग्नेस सिंडिकेट से टक्करः कांग्रेस के कुछ पुराने दिग्गज नेता इंदिरा गाँधी को अनुभवहीन मानते थे और उन्होंने "सिंडिकेट' नाम से अपना अलग समूह बना लिया। ये किंगमेकर की भूमिका निभाने लगे। इंदिरा गाँधी ने इस समूह के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए 'इंडिकेट' खड़ा किया। इस प्रकार पार्टी की टूट की शुरुआत हुई।

(ii) राष्ट्रपति पद का चुनाव: 1969 के राष्ट्रपति के चुनाव में कांग्रेस के अधिकृत उम्मीदवार नीलम संजीव रेड्डी के विरुद्ध इंदिरा गाँधी और उनके समर्थकों द्वारा उपराष्ट्रपति वी.वी. गिरि को कहा गया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें। यह कांग्रेस पार्टी में फूट का प्रमुख कारण था।

(iii) प्रधानमंत्री और उपप्रधानमंत्री के बीच मतभेदः इंदिरा गाँधी ने चौदह अग्रणी बैंकों के राष्ट्रीयकरण और भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी 'प्रिवी पर्स' को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोपणा की। उस ववत मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री और वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों मुद्दों पर प्रधानमंत्री और उनके बीच गहरे मतभेद उभर और इसके परिणामस्वरूप मोरारजी ने सरकार से किनारा कर लिया।

10. निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें: इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस को अत्यंत केंद्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शुरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं-1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।

                                                                                                              -सुदीप्त कविराज

(क) लेखक के अनुसार नेहरू और इंदिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अंतर था?

(ख) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस 'मर गई'?

(ग) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?

उत्तर (क) जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री और तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत ज्यादा केन्द्रीयकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय, लोकतांत्रिक और विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेताओं और यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में जानी जाती थी।

(ख) लेखक ने यह इसलिए कहा है क्योंकि उस समय कांग्रेस की सर्वोच्च नेता अधिनायकवादी व्यवहार कर रही थीं। उन्होंने कांग्रेस की सभी शक्तियाँ अपने या कुछ गिनती के अपने कट्टर समर्थकों तक केन्द्रीकृत की। मनमाने ढंग से मंत्रिमंडल और दल का गठन किया। पार्टी में विचार-विमर्श का दौर खत्म हो गया। व्यावहारिक रूप में विरोधियों को कुचला गया। 1975 में आपातकाल की घोषणा की गई। जबरदस्ती नसबंदी कार्यक्रम चलाए गए। अनेक राष्ट्रीय और लोकप्रिय नेताओं को जेल में डाल दिया गया।

(ग) कांग्रेसी पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में परस्पर एकता बढ़ी। उन्होंने गैर कांग्रेसी और गैर साम्यवादी संगठन बनाए। जय प्रकाश नारायण को संपूर्ण क्रांति को समर्थन दिया। जिन लोगों को जेल में डाल दिया गया था, उनके परिवारों को गुप्त सहायता दी गई। राष्ट्रीय स्वयं की लोकप्रियता बढ़ी। कांग्रेस से अनेक सम्प्रदायों के समूह दूर होते गए और वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के सामने आए। 1977 के चुनाव में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।

                                             खुद करें-खुद सीखें

राजनीतिक दलों द्वारा गढ़े गए नारों की एक सूची बनाएँ।

क्या आपको लगता है कि चीजों के विज्ञापन और राजनीतिक दलों के नारे, घोषणापत्र तथा विज्ञापनों में कोई समानता है?

महंगाई राजनीतिक दलों की नीतियों पर क्या प्रभाव डालती है? इस पर चर्चा कीजिए।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

1. जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु कब हुई?

उत्तर जवाहर लाल नेहरू की मृत्यु मई 1964 में हुई।

2. 1960 के दशक को 'खतरनाक दशक' क्यों कहा जाता है?

उत्तर 1960 के दशक में गरीबो, गैर बराबरी, सांप्रदायिक और क्षेत्रीय विभाजन आदि प्रश्न का हल खोजना था। इसलिए इस दशक को खतरनाक दशक कहा जाता है।

3. नेहरू की मृत्यु के बाद भारत का प्रधानमंत्री कौन बना?

उत्तर लालबहादुर शास्त्री।

4. नेहरू की मृत्यु के समय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष कौन थे?

उत्तर के. कामराजा

5. लालबहादुर शास्त्री ने कौन सा नारा दिया था?

उत्तर जय जवान-जय किसान।

6. लालबहादुर शास्त्री की मृत्यु कब हुई?

उत्तर लालवहादुर शास्त्री को मृत्यु 10 जनवरी, 1966 को हुई।

7. शास्त्री के मंत्रिमंडल में इंदिरा गाँधी को किस मंत्रालय का प्रभार दिया गया था?

उत्तर सूचना मंत्रालय।

8. इंदिरा गाँधी कब से कब तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं?

उत्तर इंदिरा गाँधी 1966 से 1977 तक और फिर 1980 से 1984 तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं।

9. इंदिरा गाँधी की सरकार के आरम्भिक फैसलों में से एक प्रमुख फैसला क्या था?

उत्तर रुपये का अवमूल्यन करना।

10. 1967 के चौथे आम चुनाव में किन राज्यों में कांग्रेस की सत्ता हाथ से निकल गई?

उत्तर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा, मद्रास और केरला

11. इंदिरा गांधी को चुनौती देने वाला 'सिंडिकेट' क्या था?

उत्तर सिंडिकेट कांग्रेस के अंदर शक्तिशाली और प्रभावशाली नेताओं का एक गुट था।

12. इंदिरा गाँधी किस नारे के भरोसे अपने लिए देशव्यापी राजनीतिक समर्थन की नींव रखना चाहती थी?

उत्तर इंदिरा गांधी ने -'गरीबी हटाओ' के नारे के भरोसे अपने लिए देशव्यापी राजनीतिक समर्थन की नींव तैयार करना चाहती थी।

13. नई कांग्रेस और पुरानी कांग्रेस में क्या अंतर था?

उत्तर नई कांग्रेस और पुरानी कांग्रेस में निम्नलिखित अंतर था-

(i) पुरानी कांग्रेस अपने सिद्धांतों, नीतियों तथा कार्यक्रमों लोकप्रियता पर आधारित थी, अपने असूलों पर आधारित थी। परंतु नई कांग्रेस केवल अपने नेता की लोकप्रियता पर आधारित थी।

(ii)पुरानी कांग्रेस का संगठनात्मक ढाँचा मजबूत था, सुसंगठित था और नियमों पर आधारित था। परंतु नई कांग्रेस का गठनात्मक ढाँचा कमजोर था और वह नियमों पर आधारित न होकर दल के नेता की इच्छा पर आधारित था।

(iii) पुरानी कांग्रेस में कई गुट थे और वह इन सभी गुटों को साथ लेकर चलने वाली पार्टी थी। उसमें विभिन्न गुटों को दबाया नहीं जाता था बल्कि प्रत्येक गुट के विचार और दृष्टिकोण को महत्व दिया जाता था और उसे अपनाने का प्रयास किया जाता था। परंतु नई कांग्रेस में आंतरिक गुटों के लिए कोई स्थान नहीं था। इसमें विभिन्न गुट नहीं थे। जो दल के नेता के विचारों से सहमत नहीं था उसे पार्टी में नहीं रहने दिया जाता था। नई कांग्रेस विभिन्न मतों और हितों को एक साथ लेकर चलने वाली पार्टी नहीं थी।

(iv) पुरानी कांग्रेस ने एक कांग्रेस प्रणाली का विकास किया था जिसकी विशेषता यह थी कि उसके अंदर हर तनाव, हर संघर्ष तथा विपरीत विचारधारा को पचा लेने की क्षमता थी। वह सर्वसहमति में विश्वास रखती थी। परंतु नई कांग्रेस में यह विशेषता नहीं थी। इसमें विरोध या आलोचना करने वालों को दबाया जाता था, पार्टी से निष्कासित किया जाता था। 

(v) पुरानी कांग्रेस को जनता का आधार प्राप्त था, समाज के सभी वर्गो, सभी हितों तथा सभी गुटों का समर्थन प्राप्त था, परंतु नई कांग्रेस समाज के कुछ वर्गों जैसे कि गरीबों, दलितों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं के समर्थन पर निर्भर थी। इसे समस्त समाज का समर्थन प्राप्त कांग्रेस नहीं कहा जा सकता था।

14. दल-बदल कानून (1985) की व्यवस्था की चर्चा कीजिए।

उत्तर 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार ने दल-बदल विरोधी अधिनियम (Anti-Defection Act, 1985) पास करवाया। इस ऐक्ट के अन्तर्गत यह व्यवस्था की गई थी कि दल बदलने पर सदस्यता समाप्त हो जाती है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित व्यवस्था है-

(i) यदि कोई सांसद या विधायक किसी दल के टिकट पर चुने जाने के बाद अपनी इच्छा से उस दल को छोड़ दे या अपने दल के विरुद्ध मतदान करे या मतदान के समय अनुपस्थित रहे तो सदस्य सदन की सदस्यता के अयोग्य समझा जाएगा और उसका स्थान रिक्त समझा जाएगा।

(ii) यदि कोई सांसद या विधायक सरकार द्वारा मनोनीत किया जाए तो वह 6 महीने के अन्दर किसी दल का सदस्य बन सकता हैं, परन्तु 6 महीने बीतने के बाद यदि वह किसी दल में सम्मिलित होता है तो वह सदस्यता के अयोग्य होगा और उसका स्थान रिक्त कर दिया जाएगा।

(iii) यदि कोई निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में सम्मिलित हो जाए तो उसका पद खाली समझा जाएगा।

(iv) यदि किसी सदन के विधायक दल में विभाजन हो जाए और उसके कम-से-कम 113 सदस्य उस दल अपना अलग दल बना लें तो यह दल-बदल नहीं समझा जाएगा।

(v) यदि किसी दल के 213 सदस्य किसी अन्य दल में सम्मिलित हो जाएँ तो यह दल-बदल नहीं माना जाएगा।

(vi) सदन के सभापति द्वारा अपना पद ग्रहण करने पर अपने दल से संबंध-विच्छेद करने और सभापति पद छोड़ने के बाद अपने दल में सम्मिलित होने के कार्य को दल-बदल नहीं समझा जाएगा।

इस कानून के पास होने से दल-बदल तो काफी कम हो गया है, परन्तु यह बुराई पूरी तरह समाप्त नहीं हुई। अवसरवादी प्रतिनिधि अपने स्वार्थों तथा निजी हितों की पूर्ति के लिए फिर बड़े पैमाने पर दल-बदल, दल-विभाजन तथा जोड़-तोड़ होते रहे।

15. भारत में गठबन्धन सरकार के उदय का वर्णन कीजिए।

उत्तर भारत में गठबंधन सरकार का उदय:

(i) 1989 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी की हार हुई थी। कांग्रेस अब भी लोकसभा में सबसे बड़ी पार्टी थी लेकिन बहुमत में न होने के कारण उसने विपक्ष में बैठने का फैसला किया। राष्ट्रीय मोर्चा को (यह मोर्चा जनता दल और कुछ अन्य क्षेत्रीय दलों को मिलाकर बनाया) राजनीतिक समूहों-भाजपा और वाम मोर्चे ने समर्थन दिया।

(ii) कांग्रेस की हार के साथ भारत की दलीय व्यवस्था से उसका बोलबाला समाप्त हो गया। इस दौर में कांग्रेस के बोलबाले की समाप्ति के साथ बहुदलीय शासन प्रणाली का युग शुरू हुआ। 1989 के बाद लोकसभा के चुनावों में कभी भी किसी एक पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस बदलाव के साथ केंद्र में गठबंधन सरकारों का दौर शुरू हुआ और क्षेत्रीय पार्टियों ने गठबंधन सरकार बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

(iii) नव्वे का दशक ताकतवर पार्टियों और आंदोलन के उभार का साक्षी रहा। इन पार्टियों और आंदोलनों ने दलित तथा पिछड़ा वर्ग (अन्य पिछड़ा वर्ग या ओबीसी) की नुमाइंदगी की। इन दलों में से अनेक ने क्षेत्रीय आकांक्षाओं को भी दमदार दावेदारी की। 1966 में बनी संयुक्त मोर्चा की सरकार में इन पार्टियों ने अहम किरदार निभाया।

(iv) जो भी हो, इन्हें ज्यादा दिनों तक सफलता नहीं मिली और भाजपा ने 1991 तथा 1996, चुनावों में अपनी स्थिति लगातार मजबूत की। 1996 के चुनावों में यह सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आई। इस नाते भाजपा को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला लेकिन अधिकांश दल भाजपा की कुछ नीतियों एवं कार्यक्रम के खिलाफ थे और इस तरह भाजपा की सरकार लोकसभा में बहुमत प्राप्त नहीं कर सकी। आखिरकार भाजपा एक गठबंधन (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन-राजग) के अगुआ के रूप में सत्ता में आई और 1998 के मई से 1999 के जून तक सत्ता में रही। फिर, 1999 में इस गठबंधन ने दोबारा सत्ता हासिल की। राजग की इन दोनों सरकारों में अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बने। 1999 की राजग सरकार ने अपना निर्धारित कार्यकाल पूरा किया।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर के सामने ( ) का चिन्ह लगाइए:

1. भारत के प्रधानमंत्री के रूप में लालबहादुर शास्त्री ने कब से कब तक शासन किया?

(क) 1964 से 1966 तक

(ख) 1947 से 1964 तक

(ग) 1966 से 1977 तक

(घ) 1980 से 1984 तक

2. लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु कहाँ हुई?

(क) भारत

(ख) ताशकंद

(ग) चीन

(घ) रूस

3. जय जवान-जय किसान का नारा किसने दिया?

(क) जवाहर लाल नेहरू

(ख) महात्मा गांधी

(ग) लाल बहादर शास्त्री

(घ) सुभाष चंद्र बोस

4. शास्त्री की मृत्यु के बाद किन नेताओं के बीच प्रधानमंत्री पद की दावेदारी के लिए कड़ी टक्कर थी?

(क) इंदिरा गाँधी और मोरारजी देसाई

(ग) मोरारजी देसाई और संजीव रेड्डी

(ख) इंदिरा गाँधी और राममनोहर लोहिया

(घ) इंदिरा गाँधी और वी.वी. गिरि।

5. निम्न में से किस नेता ने कांग्रेस के शासन को अलोकतांत्रिक और गरीब लोगों के हितों के विरुद्ध बताया?

(क) वी.वी. गिरि

(ख) राम मनोहर लोहिया

(ग) सो. नटराजन अन्नादुरई

(घ) कर्पूरी ठाकुर

6. चौथा आम चुनाव कब हुआ?

(क) फरवरी 1967

(ख) मई 1967

(ग) फरवरी 1971

(घ) जून 1971

7. 1967 के आम चुनाव में कांग्रेस की सत्ता कितने राज्यों में हाथ से निकल गई?

(क) 10

(ख) 12

(ग)9

(घ)5

8. कांग्रेस ने दस-सूत्री कार्यक्रम कब अपनाया?

(क) मई 1967

(ख) फरवरी 1967

(ग) फरवरी, 1971

(घ) मार्च 1970

9. इंदिरा गाँधी के शासनकाल में लोकसभा अध्यक्ष कौन थे?

(क) के. कामराज

(ख) एन. संजीव रेड्डी

(ग) एस. निजलिंगप्पा

(घ) वी.वी. गिरि

10. सिंडिकेट के नेता निम्न में से कौन थे?

(क) एस.के. पाटिल

(ख) एन. संजीव रेड्डी

(ग)अतुल्य घोष

(घ) उपरोक्त सभी

उत्तर 1.(क) 2.(ख) 3.(ग) 4.(क) 5.(ख)  6.(क)  7.(ग)  8.(क)  9.(ख)   10.(घ) 


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति - II