NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-2 एक दल की प्रधानता का युग
CBSE Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति
NCERT Solutions
CHAPTER-2 एक दल की प्रधानता का युग
प्रश्नावली (उत्तर सहित)
1. सही विकल्प को चुनकर खाली जगह को भरें:
(क) 1952 के पहले आम चुनाव में लोकसभा के साथ-साथ.......के लिए भी चुनाव कराए
गए थे। (भारत के राष्ट्रपति पद/राज्य विधानसभा/राज्यसभा/प्रधानमंत्री)
(ख).........लोकसभा के पहले आम चुनाव में 16 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही। (प्रजा
सोशलिस्ट पार्टी/भारतीय जनसंघ/भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी/भारतीय जनता पार्टी)
(ग).......स्वतंत्र पार्टी का एक निर्देशक सिद्धांत था। (कामगार तबके का हित/रियासतों
का बचाव/राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था/संघ के भीतर राज्यों की स्वायत्तता)
उत्तर (क) राज्य विधान सभा
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ग) राज्य के नियंत्रण से मुक्त अर्थव्यवस्था
2. यहाँ दो सूचियाँ दी गई हैं। पहले में नेताओं के नाम दर्ज हैं और दूसरे में दलों के। दोनों सूचियों में मेल बैठाएं:
(क) एस.ए. डांगे (i) भारतीय जनसंघ
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी (ii) स्वतंत्र पार्टी
(ग) मीनू मसानी (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
(घ) अशोक मेहता (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
उत्तर (क) एस.ए, डांगे (iv) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी (i) भारतीय जनसंघ
(ग) मीनू मसानी (iv) स्वतंत्र पार्टी
(घ)अशोक मेहता (iii) प्रजा सोशलिस्ट पार्टी
3, एकल पार्टी के प्रभुत्व के बारे में यहाँ चार बयान लिखे गए हैं। प्रत्येक के आगे सही या गलत का चिह्न लगाएँ:
(क) विकल्प के रूप में किसी मजबूत राजनीतिक दल का अभाव एकल पार्टी-प्रभुत्व का कारण था।
(ख) जनमत की कमजोरी के कारण एक पार्टी का प्रभुत्व कायम हुआ।
(ग) एकल पार्टी-प्रभुत्व का संबंध राष्ट्र के औपनिवेशिक अतीत से है।
(घ) एकल पार्टी-प्रभुत्व से वेश में लोकतांत्रिक आदर्शों के अभाव की झलक मिलती है।
उत्तर (क) ( ) (ख) (x)
(ग) ( ) (घ) (x)
4. अगर पहले आम चुनाव के बाद भारतीय जनसंघ अथवा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार बनी होती तो किन मामलों में इस सरकार ने अलग नीति अपनाई होती? इन दोनों दलों द्वारा अपनाई गई नीतियों के बीच तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर भारतीय जनसंघ की विचारधारा और कार्यक्रम बाकी दलों से भिन्न थे। जनसंघ ने शुरू से ही 'एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र' के विचार पर बल दिया। इस पार्टी का विश्वास था कि देश को भारतीय संस्कृति तथा परंपरा के आधार पर आधुनिक प्रगतिशील और ताकतवर बनाया जा सकता है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की समस्याओं का समाधान साम्यवाद द्वारा करने की पैरवी करते थे। अत: यह पार्टी सरकार बनाने के बाद उसी नीति के अनुरूप कार्य करती। भारतीय जनसंघ और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की नीतियों के बीच तीन अंतर इस प्रकार से हैं-
(i) भारतीय जनसंघ सारे भारत में एक देश, एक भाषा, एक राष्ट्र, एक संस्कृति के विचार का समर्थक था। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी देश की समस्याओं का समाधान साम्यवाद द्वारा करना चाहती थी। यह दल रूस के बोल्शेविक क्रांति से प्रेरित था। यह दल मार्क्सवाद पर आधारित समाजवाद का समर्थक था।
(ii) भारतीय जनसंघ ने भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर विकास योजनाओं और अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने पर जोर दिया। दूसरी ओर, कम्युनिस्ट पार्टी पूर्ण रूप से राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था और उत्पादन तथा वितरण पर सरकार के पूर्ण स्वामित्व का समर्थक था।
(iii) भारतीय जनसंघ ने भारत और पाकिस्तान को एक करके 'अखंड भारत' बनाने के विचार रखे। परन्तु भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी दोनों देशों को अलग-अलग राष्ट्र मानती थी।
5. कांग्रेस किन अर्थों में एक विचारधारात्मक गठबंधन थी? कांग्रेस में मौजूद विभिन्न विचारधारात्मक उपस्थितियों का उल्लेख करें।
उत्तर कांग्रेस कई अर्थों में एक विचारात्मक गठबंधन थी। जब भारत को आजादी मिली उस समय तक कांग्रेस एक सतरंगे गठबंधन की शक्ल अपना चुकी थी और इसमें सभी प्रकार की विचारधाराओं का समर्थन करने वाले विचारकों तथा समूहों ने अपने को कांग्रेस के साथ समाहित कर लिया था। 1924 में भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना हुई, सरकार ने इसे प्रतिबंधित कर दिया। यह दल 1942 तक कांग्रेस के एक गुट के रूप में रहकर ही काम करता रहा। 1942 में इस गुट को कांग्रेस से अलग करने के लिए ही सरकार ने इस पर से प्रतिबंध हटाया। कांग्रेस में शांतिवादी, क्रांतिकारी, रुढिवादी और प्रगतिवादी, गरमपंथी और नरमपंथी, दक्षिणपंथी और वामपंथी सभी विचारधारा के मध्यमार्गियों का स्थान प्राप्त था। कांग्रेस ने समाजवादी समाज की स्थापना को अपना लक्ष्य निश्चित किया था और यही कारण था कि स्वतंत्रता के बाद कई समाजवादी पार्टियाँ बर्नी परन्तु विचारधारा के आधार पर वे अपनी अलग पहचान नहीं बना सर्की और कांग्रेस के प्रभुत्व को नहीं ललकार सकीं। यदि देखा जाए तो कांग्रेस एक ऐसा मंच था जिस पर अनेकों समूह, हित और राजनीतिक दल तक आ जुटते थे। कांग्रेस में बहुत से ऐसे गुट थे जिनके अपने अलग संविधान तक थे और संगठनात्मक ढाँचा भी अलग था जैसे कि कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी। फिर भी उन्हें कांग्रेस के एक गुट में बनाए रखा गया।
आज ते विभिन्न दलों के गठबंधन बनते हैं और सत्ता की प्राप्ति के प्रयत्न करते हैं, परन्तु आजादी के समय कांग्रेस ही एक प्रकार से एक विचारधारात्मक गठबंधन था, इस दल में ही कई समूह तथा गुट सम्मिलित थे।
6. क्या एकल पार्टी प्रभुत्व की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर हुआ?
उत्तर नहीं, एकल पार्टी की प्रणाली का भारतीय राजनीति के लोकतांत्रिक चरित्र पर खराब असर नहीं हुआ। वैसे तो कई बार एकल दलीय प्रभुत्व प्रणाली का राजनीतिक लोकतांत्रिक प्रकृति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और प्रभुत्व प्राप्त दल विपक्षी दलों की आलोचना की परवाह न करके मनमाने ढंग से शासन चलाने लगता है तथा लोकतंत्र को तानाशाही में बदलने की सम्भावना विकसित होती है, परन्तु भारत में ऐसा नहीं हुआ। पहले तीन चुनावों में कांग्रेस के प्रभुत्व के भारतीय राजनीति पर बुरे प्रभाव नहीं पड़े बल्कि कई बातों के आधार पर यह अच्छा हो हुआ और इसने भारतीय लोकतंत्र और लोकतांत्रिक राजनीति तथा लोकतांत्रिक संस्थाओं को दृद्ध बनाने में भूमिका निभाई। एक प्रभुत्व दलीय व्यवस्था के अच्छे परिणामों की पुष्टि निम्नलिखित तथ्यों से होती है-
(i) कांग्रेस ही उस समय जनता का जाना माना दल था जिसमें जनता का विश्वास और जनता की आशाएँ उस से जुड़ी थीं। अत: मतदाता द्वारा आँख बंद करके उसे मत देना स्वाभाविक था। इसने कांग्रेस में भी मनोबल की वृद्धि की और वह राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान किए गए वायदों को व्यावहारिक रूप देने में सफल रहा।
(ii) उस समय भारत का मतदाता राजनीतिक विचारधाराओं के संबंध में पूर्णतः सूचित नहीं था और उसका 18% भाग ही पढ़ा-लिखा था। उसे कांग्रेस में ही आस्था थी और आम आदमी यह समझता था कि इस दल से ही कल्याण की आशा की जा सकती है।
(iii) उस समय भारत का लोकतंत्र और संसदीय शासन प्रणाली भी अपने शैशवकाल में थी। यदि उस समय कांग्रेस का बहुमत तथा प्रभुत्व न होता और सत्ता की प्राप्ति के लिए खींचातानी होती जैसे कि आजकल होती है, गठबंधन बनते हैं, टूटते हैं और एक वर्ष में ही नए चुनाव भी हुए हैं और संसद तथा विधानसभाओं में नारेबाजी, खींचातानी तथा छीयकशी होती तो आम आदमी का विश्वास लोकतंत्र तथा संसदीय प्रणाली से ही उठ जाता और लोग कहने लगते कि इससे तो अंग्रेजी राज ही अच्छा था।
(iv) प्रभुत्व की प्राप्ति के बिना कांग्रेस के लिए प्रगतिशील कदम तथा विकास योजनाओं के कदम उठाना संभव नहीं होता और भारत में भी सैनिक शासन के लिए वातावरण विकसित होता।
(v) प्रभुत्व की स्थिति प्राप्त होने के कारण राजनीति में स्थायित्व आया। विपक्षी दलों द्वारा सरकार की आलोचना भी होती रही और सरकार अपना काम भी करती रही। इसने भारतीय लोकतंत्र, संसदीय शासन प्रणाली और भारतीय राजनीति की लोकतांत्रिक प्रकृति को मजबूत बनाने में योगदान किया।
7. समाजवादी दलों और कम्युनिस्ट पार्टी के बीच के तीन अंतर बताएं। इसी तरह भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच के तीन अंतरों का उल्लेख करें।
उत्तर समाजवादी दलों तथा कम्युनिस्ट पार्टी के बीच तीन अंतर निम्नलिखित थे-
समाजवादी दल लोकतांत्रिक समाजवाद में विश्वास रखते थे जबकि कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवाद पर आधारित समाजवाद का समर्थक थी।
(i) सोशलिस्ट पार्टियाँ संवैधानिक तरीके से समाजवाद को लागू करना चाहती थीं जबकि कम्युनिस्ट पार्टी सामाजिक क्रांति और आंदोलन तथा हिंसात्मक साधनों में विश्वास रखती थी।
(ii) सोशलिस्ट पार्टियां पूर्ण रूप से राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था की समर्थक नहीं थीं, वे समाजवादी कार्यक्रमों तथा जनता का कल्याण करने वाली योजनाओं को लागू करना चाहती थीं। जबकि कम्युनिस्ट पार्टी पूर्ण रूप से राज्य द्वारा नियंत्रित अर्थव्यवस्था और उत्पादन तथा वितरण पर सरकार के पूर्ण स्वामित्व का समर्थक थी।
भारतीय जनसंघ और स्वतंत्र पार्टी के बीच तीन अंतर निम्नलिखित हैं-
(i) भारतीय जनसंघ संपूर्ण भारत में एक देश, एक भाषा, एक राष्ट्र, एक संस्कृति के विचार का समर्थक था। यह भारतीय संस्कृति और परम्पराओं के आधार पर ही आधुनिक प्रगतिशील और ताकतवर भारत बनाने का पक्षधर था। यह कश्मीर को विशष दर्जा और अल्पसंख्यकों को विशेष रियायतें देने का विरोध करते हुए विदेश नीति के क्षेत्र में राष्ट्र हितों की पोषक थी। दूसरी ओर, स्वतन्त्र पार्टी ने एक देश, एक भाषा, एक संस्कृति की बात नहीं कही। यह पार्टी कमजोर वर्ग के हित को रखकर किए जा रहे कराधान के खिलाफ थी।
(ii) भारतीय जनसंघ ने भारतीय संस्कृति और परंपरा के आधार पर विकास योजनाओं और अर्थव्यवस्था को अपनाए जाने पर जोर दिया। जबकि, स्वतंत्र पार्टी ने स्वतंत्र व्यापार, खुली प्रतियोगिता, आर्थिक क्षेत्र में सरकार द्वारा हस्तक्षेप न किए जाने का समर्थन किया।
(iii) भारतीय जनसंघ ने अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में व्यावहारिक रूप से लागू करने की माँग की, जबकि तंत्र पार्टी अंग्रेजी को अपदस्थ करने का विरोध करती थीं।
8. भारत मैक्सिको दोनों ही देशों में एक खास समय तक एक पार्टी का प्रभुत्व रहा। बताएँ मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व कैसे भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था?
उत्तर मैक्सिको में स्थापित एक पार्टी का प्रभुत्व भारत के एक पार्टी के प्रभुत्व से अलग था। भारत में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतांत्रिक स्थितियों में कायम हुआ। दूसरी ओर, मैक्सिको में एक पार्टी का प्रभुत्व लोकतंत्र की कीमत पर कायम हुआ। भारत में कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ शुरू से ही अनेक पार्टियाँ चुनाव में राष्ट्रीय स्तर और क्षेत्रीय स्तर के रूप में भाग लेती रहीं, परन्तु मैक्सिको में ऐसा नहीं हुआ। मैक्सिको में सिर्फ एक पार्टी पी.आर.आई. का लगभग 60 वर्षों तक वर्चस्व रहा। कांग्रेस पार्टी को पहले तीन चुनावों में भारी बहुमत मिला क्योंकि उसने देश के संघर्ष के लिए 1885 से 1947 तक भूमिका निभाई। उसके सामने दूसरा कोई राजनैतिक दल पूर्ण आर्थिक, सामाजिक, राजनैतिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम लेकर उपस्थित नहीं हुआ। भारतीय साम्यवादी दल भी अपनी कुछ आर्थिक नीतियों के कारण देश के 565 देशी रियासतों के शासकों, हजारों जमींदारों, जागीरदारों, पूँजीपतियों और यहाँ तक कि मिल्कियत लिए हुए धार्मिक नेताओं एवं बड़े किसानों की लोकप्रिय पार्टी नहीं बन सकी। अनेक राजनैतिक स्वतंत्रता प्रेमियों, प्रैस और मीडिया को पूर्ण स्वतंत्रता के पक्षधर पूँजीवादी या मिश्रित अर्थव्यवस्था जैसी प्रणालियों के समर्थकों का भी हृदय जीतने में वह असफल रही। 'इंस्टीट्यूशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी (स्पेनिश में इसे पी.आर.आई. कहा जाता है) का मैक्सिको में लगभग साठ वर्षों तक शासन रहा। इस पार्टी की स्थापना 1929 में हुई थी। तब इसे नेशनल रिवोल्यूशनरी पार्टी कहा जाता था। इसे मैक्सिकन क्रांति की विरासत हासिल थी। मूल रूप से पी.आर.आई. में राजनेता और सैनिक-नेता, मजदूर और किसान संगठन तथा अनेक राजनीतिक दलों समेत कई किस्म के हितों का संगठन था। समय बीतने के साथ पी.आर.आई. के संस्थापक प्लूटार्को इलियास कैलस ने इसके संगठन पर कब्जा जमा लिया और इसके बाद नियमित रूप से होने वाले चुनावों में हर बार पी.आर.आई. ही विजयी होती रही। बाकी पार्टियाँ बस नाम की थी ताकि शासक दल को वैधता मिलती रहे।' चुनाव के नियम इस तरह तय किए गए, कि पी.आर.आई. की जीत हर बार पक्की हो सके। शासक दल ने अक्सर चुनावों में हेर-फेर और धांधली की। पी.आर.आई. के शासन को 'परिपूर्ण तानाशाही' कहा जाता है। आखिरकार सन् 2000 में हुए राष्ट्र पद के चुनाव में यह पार्टी हारी। मैक्सिको अब एक पार्टी के दबदबे वाला देश नहीं रहा। बहरहाल, अपने दबदबे के दौर में पी. आरआई. ने जो दांव-पेंच अपनाए थे उनका लोकतंत्र की सेहत पर बड़ा खराब असर पड़ा है। मुक्त और निष्पक्ष चुनाव की बात - पर अब भी नागरिकों का पूरा विश्वास नहीं जम पाया है।
9. भारत का एक राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएं विखाई गई हों) और उसमें निम्नलिखित को चिह्नित कीजिए:
(क) ऐसे दो राज्य जहाँ 1952-67 के दौरान कांग्रेस सत्ता में नहीं थी।
(ख) दो ऐसे राज्य जहाँ इस पूरी अवधि में कांग्रेस सत्ता में रही।
छात्र स्वयं करे
10. निम्नलिखित अवतरण को पढ़कर इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए: काग्रेस के संगठनकर्ता पटेल कांग्रेस को दूसरे राजनीतिक समूह से निसंग रखकर उसे एक सर्वांगसम तथा अनुशासित राजनीतिक पार्टी बनाना चाहते थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस सबको समेटकर चलने वाला स्वभाव छोड़े और अनुशासित कॉडर से युक्त एक सगुंफित पार्टी के रूप में उभरे। 'यथार्थवादी होने के कारण पटेल व्यापकता की जगह अनुशासन को ज्यादा तरजीह देते थे। अगर "आंदोलन को चलाते चले जाने" के बारे में गाँधी के ख्याल हद से ज्यादा रोमानी थे तो कांग्रेस को किसी एक विचारधारा पर चलने बाली अनुशासित तथा धुरंधर राजनीतिक पार्टी के रूप में बदलने की पटेल की धारणा भी उसी तरह कांग्रेस की उस समन्वयवावी भूमिका को पकड़ पाने में चूक गई जिसे कांग्रेस को आने वाले दशकों में निभाना था।
-रजनी कोठारी
(क) लेखक क्यों सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम तथा अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए?
(ख) शुरुआती सालों में कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण दीजिए।
उत्तर (क) लेखक ऐसा इसलिए सोच रहा है कि कांग्रेस को एक सर्वांगसम और अनुशासित पार्टी नहीं होना चाहिए क्योंकि वे उसे यथार्थवादी और अनुशासित पार्टी बनाए जाने के पक्ष में नहीं है। वह इसे गांधीवादी विचारधारा के साथ-साथ भूमि सुधार, समाज सुधार, दलित उद्धार, समन्वयवादी भूमिका में लाना चाहता है।
(ख) प्रारम्भिक वर्षों में कांग्रेस में शांतिप्रिय, अहिंसावादी, उदारवादी, उग्रराष्ट्रवादी, हिन्दू महासभा के अनेक नेताओं, व्यक्तिवाद के समर्थकों, सिक्ख और मुस्लिम जैसे अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार दिए जाने वाले समर्थकों, हिंदी का विरोध करने वाले नेतागणों, आदिवासी हितैषियों, अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जातियों के समर्थकों, समाज सुधारकों, समाजवादियों, रूस और अमेरिका दोनों के समर्थकों, जमींदारी प्रथा के उन्मूलनकर्ताओं और देशी राजाओं के परिवार से जुड़े लोगों को साथ लेकर चलने वाले निर्णय, कार्यक्रम आदि कांग्रेस द्वारा निभाई गई समन्वयवादी भूमिका के कुछ उदाहरण हैं।
खुद करें-खुद समझें
1952 के बाद से अब तक आपके राज्य में जितने चुनाव हुए और सरकारें बनी हैं, उनका एक चार्ट तैयार करें। इस चार्ट में निम्नलिखित शीर्षक रखे जा सकते हैं। चुनाव का वर्ष, जीतने वाले दल का नाम, शासक दल/दलों के नाम, मुख्यमंत्री का नाम...
अतिरिक्त प्रश्नोत्तर
1. राजनीति की दो सबसे ज्यादा जाहिर चीजें क्या हैं?
उत्तर सत्ता और प्रतिस्पर्धा राजनीति की सबसे ज्यादा जाहिर चीजें हैं।
2. राजनीतिक गतिविधि का उद्देश्य क्या होता है?
उत्तर राजनीतिक गतिविधि का उद्देश्य जनहित का फैसला करना तथा उस पर अमल करना होता है।
3. भारत के संविधान को कब लागू किया गया था?
उत्तर 26 जनवरी, 1950
4. ईवीएम का पूरा नाम लिखिए?
उत्तर ईवीएम-इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन।
5. स्वतंत्र भारत में बने पहले मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री कौन थे?
उत्तर मौलाना अबुल कलाम आजाद।
6. पहले आम चुनाव में दूसरे स्थान पर कौन-सी पार्टी रही थी?
उत्तर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी।
7. हमारे देश को चुनाव प्रणाली में किसे विजेता माना जाता है?
उत्तर हमारे देश की चुनाव-प्रणाली में सर्वाधिक वोट पाने वाले को विजेता माना जाता है।
8. आचार्य नरेन्द्र देव किस पार्टी से संबंध रखते थे?
उत्तर सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी।
9. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना किसने की थी?
उत्तर बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर।
10. पीआरआई ने किस देश में लगभग साठ वर्षों तक शासन किया?
उत्तर मैक्सिको में।
11. भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष कौन थे?
उत्तर श्यामा प्रसाद मुखर्जी।
12. भारतीय जनसंघ ने किस विचार पर बल दिया?
उत्तर भारतीय जनसंघ ने शुरू से ही 'एक देश, एक संस्कृति तथा एक राष्ट्र' के विचार पर बल दिया।
13. स्वतंत्र पार्टी के चार नेताओं के नाम लिखिए।
उत्तर सो. राजगोपालाचारी, के.एम. मुंशी, एन.जी. रंगा और मीनू मसानी।
14. स्वतंत्र भारत के प्रथम संचार मंत्री कौन थे?
उत्तर रफी अहमद किदवई।
15. भारत के प्रथम दो आम चुनावों में प्रयोग किए गए मतदान के तरीके का उल्लेख कीजिए।
उत्तर (I) 15 अगस्त 1947 में भारत को आजादी मिली। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरांत प्रथम आम चुनाव में फैसला किया गया था कि हर एक मतदान केंद्र में प्रत्येक उम्मीदवार के लिए एक मतपेटी रखी जाएगी और मतपेटी पर उम्मीदवार का चुनाव-चिन्ह अकित होगा। प्रत्येक मतदाता को एक खाली मतपत्र दिया जाएगा जिसे वह अपने पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डालेगा। इस काम के लिए तकरीबन 20 लाख स्टील के बक्सों का इस्तेमाल हुआ।
(ii) पंजाब के एक पीठासीन पदाधिकारी ने मतपेटियों की तैयारी का ब्यौरा कुछ इस तरह बयान किया है: "हर एक मतपेटी के भीतर और बाहर संबद्ध उम्मीदवार का चुनाव चिन्ह अंकित करना था और मतपेटी के बाहर किसी एक तरफ उम्मीदवार का नाम उर्दू, हिन्दी और पंजाबी में लिखना था। इसके साथ-साथ चुनाव क्षेत्र, चुनाव केन्द्र और मतदान केंद्र की संख्या भी यही दर्ज करनी थी।
उम्मीदवार के आंकिक ब्यौरे वाला एक कागज मुहरबंद पीठासीन पदाधिकारी के दस्तखत के साथ मतपेटी में लगाना था। मतपेटी के ढक्कन को तार के सहारे बाँधना था और इसी जगह पर मुहरबंद लगाना था। यह सारा काम चुनाव को नियत तारीख से ठीक एक दिन पहले करना था। चुनाव-चिह्न और बाकी ब्यौरों को दर्ज करने के लिए मतपेटी को पहले सरेस कागज या ईट के टुकड़े से रगड़ना पड़ता था। कुल छह लोगों ने पाँच घंटे लगातार काम किया तब कहीं जाकर यह काम पूरा हुआ।"
शुरुआती दो चुनावों के बाद यह तरीका बदल दिया गया।
16. एक प्रभुत्वशाली दल व्यवस्था के लाभ और हानियों को बतलाइए।
उत्तर एक प्रभुत्वशाली दल व्यवस्था के निम्नलिखित लाभ हैं-
(I) इससे शासन में स्थायित्व रहता है और राष्ट्रीय नीति में निरंतरता बनी रहती है।
(ii) इससे सत्तारूढ़ दल की स्थिति मजबूत होती है और वह दृढ़तापूर्वक शासन चला सकता है।
(iii) इससे समाज में कानून और व्यवस्था की स्थिति मजबूत रहती है और शासन का संचालन सामाजिक, आर्थिक विकास के लिए आसानी से किया जा सकता है।
(iv) यह व्यवस्था युद्ध तथा संकटकाल का मुकाबला आसानी से और दृढ़तापूर्वक कर सकती है।
एक प्रभुत्वशाली दल व्यवस्था की हानियाँ निम्नलिखित हैं-
(i) यह व्यवस्था एक प्रकार से एक दलीय व्यवस्था है, जो लोकतंत्र की सफलता तथा विकास के लिए लाभदायक नहीं है।
(ii) प्रभुत्वशाली दल शासन का संचालन मनमाने ढंग से करने लगता है। और शक्ति का दुरुपयोग होने लगता है।
(iii) इस व्यवस्था में लोगों के अधिकार और स्वतंत्रताएँ अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रहती।
(iv) ऐसी व्यवस्था में शीघ्र ही तानाशाही में बदलने की संभावना रहती है।
(v) इस व्यवस्था में विपक्षी दली कमजोर होते हैं और सरकार की आलोचना प्रभावकारी ढंग से नहीं हो पाती।
17. पहले आम चुनाव में मतपत्र तथा मतदान का क्या तरीका अपनाया गया था? बाद में उसमें क्या परिवर्तन किए गए?
उत्तर प्रथम आम चुनाव में मतपत्र तथा मतदान का तरीका-भारतीय संविधान में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, विधान परिषदों, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनावों को संपन्न करवाने का उत्तरादायित्व एक स्वतंत्र चुनाव आयोग को सौंपा गया और संविधान में उसकी व्यवस्था की गई। संविधान के लागू होते ही चुनाव आयोग को नियुक्ति की गई। पहला आम चुनाव करवाना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती थी। 17 करोड़ मतदाताओं के द्वारा मतदान किया जाना था, लोकसभा और राज्यों की विधान सभाओं के चुनाव साथ-साथ करवाने थे। मतदाता सूचियों का तैयार करवाना बड़ा भारी काम सूचियों का पहला प्रारूप तैयार हुआ तो पता चला कि 40 लाख महिलाओं के नाम मतदाता सूचियों में नहीं हैं। इतना ही नहीं 17 करोड़ मतदाताओं में से 85 प्रतिशत मतदाता अनपद थे। उनके लिए मतपत्र कैसा हो और मतदान का तरीका कैसा हो यह तय करना आसान नहीं था। आज के युग में जबकि भारत की साक्षरता दर 65 प्रतिशत से ऊपर है कोई यह सोचता भी नहीं कि पहले आम चुनाव में मतपत्र पर मतदाताओं के नाम तथा चुनाव चिह्न नहीं थे। क्योंकि 85 प्रतिशत मतदाता अनपढ़ थे। अतः प्रत्येक उम्मीदवार के लिए अलग मतपेटी की व्यवस्था की गई थी। प्रथम आम चुनाव के समय मतपत्र तथा मतदान
के तरीके की व्यवस्था इस प्रकार थी-
(i) प्रत्येक चुनाव बूथ पर चुनाव क्षेत्र से जितने उम्मीदवार खड़े थे उतनी ही मतपेटियों को रखा गया।
(ii) लोकसभा तथा विधान सभा के चुनावों के लिए अलग-अलग मतपेटियाँ थीं।
(iii) प्रत्येक मतपेटी पर उम्मीदवार का नाम तथा चुनाव चिह्न बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा हुआ था। मतपेटी पर चुनाव क्षेत्र का संख्या नंबर तथा चुनाव बूथ का नंबर भी लिखा था। मतपेटी के अंदर भी यह सूची अंकित थी।
(iv) मतपत्र पर चुनाव (लोकसभा या विधान सभा), चुनाव क्षेत्र का नंबर अंकित था, परंतु किसी उम्मीदवार का नाम नहीं था।
(v) मतदाता को वह मतपत्र दिया जाता था, जिसे वह अपनी पसंद के उम्मीदवार की मतपेटी में डाल देता था।
(vi) मतपेटी पर उम्मीदवार का नाम अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, पंजाबी अथवा क्षेत्रीय भाषा में भी लिखा जाता था।
(vii) मतदान के बाद मतपेटी को सील कर दिया जाता था और उम्मीदवारों के एजेंटों के हस्ताक्षर करवा लिए जाते थे।
(viii) मतगणना के समय अलग-अलग पेटियों के वोट गिन लिए जाते थे।
मतपत्र और मतदान के तरीकों में परिवर्तन-पहले दो आम चुनावों में ऊपर दिया गया तरीका अपनाया गया। दस वर्ष में साक्षरता दर में वृद्धि हुई और भारत के मतदाता भी चुनाव तथा मतदान से काफी परिचित और सचेत हो गए। अत: तीसरे आम चुनाव ।
के तरीके में परिवर्तन किया गया। नया तरीका इस प्रकार था।
(i)मत पत्र पर उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिह्न अंकित किए गए और मतदाता को अपनी पसंद के उम्मीदवार के नाम या चुनाव चिह्न पर मोहर लगाने को कहा गया।
(ii)मतपेटी एक ही रखी गई। सभी मतदाता मतपत्र पर अपनी पसंद के आगे मोहर लगाकर एक ही मतपेटी में डाल देते थे।
गिनती के समय अलग-अलग उम्मीदवारों के मत पत्र अलग-अलग करके गिन लिए जाते थे।
(iii) लोकसभा तथा विधान सभा के मतपत्र अलग-अलग थे और उनकी गत पेटियाँ भी अलग-अलग थीं।
मशीन द्वारा मतदान या इलैक्ट्रोनिक वोटिंग मशीन-तीसरे आम चुनाव में जो तरीका अपनाया गया था वह अगले 40 वर्ष तक चला। 1990 में मशीन द्वारा मतदान का तरीका अपनाया गया। इसमें उम्मीदवारों के नाम के आगे उनके चुनाव चिह्न अकित होते हैं और मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार के आगे वाला बटन दबाता है और मतदान हो जाता है तथा वह बोट उस उम्मीदवार के खाते में जमा हो जाता है। मतदान समाप्त होने पर मशीन स्वयं ही सब उम्मीदवारों के वोटों का ध्यौरा दे देती है। इसमें समय की काफी बचत होती है।
1990 में मशीन द्वारा मतदान सारे देश में नहीं हुआ था। यह धीरे-धीरे बढ़ाया गया। सन् 2004 का लोकसभा का सारा चुनाव मशीनी मतदान द्वारा हुआ था।
बहुविकल्पीय प्रश्न
सही उत्तर पर (√)का चिह्न लगाइए:-
1. भारत के चुनाव आयोग का गठन कब हुआ था?
(क) जनवरी 1950
(ख) मार्च 1950
(ग) अगस्त 1950
(घ) नवम्बर 1950
2. पहले आम चुनाव के समय भारत की कुल आबादी कितनी थी?
(क) 15 करोड़
(ख) 16 करोड़
(ग) 17 करोड़
(घ) 18 करोड़
3. पहले आम चुनाव में कौन-सा वल दूसरे स्थान पर था?
(क) कांग्रेस
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ग) भारतीय जनसंघ
(घ) जनता दल
4. निम्नलिखित में कौन प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे।
(क) नेहरू
(ख) महात्मा गाँधी
(ग) रफी अहमद किदवई.
(घ) आचार्य नरेन्द्र देव
5. इंडिपेंडेंट लेबर पार्टी की स्थापना किसने की थी?
(क) महात्मा गाँधी
(ख) अम्बेडकर
(ग) नेहरू
(घ) अबुल कलाम आजाद
6. भारतीय जनसंघ के संस्थापक अध्यक्ष कौन थे?
(क) भीम राव अंवेड़कर
(ख) श्यामा प्रसाद मुखर्जी
(ग) दीनदयाल उपाध्याय
(घ) आचार्य नरेन्द्र देव
7. दीन दयाल उपाध्याय किस संस्था से जुड़े थे?
(क) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ
(ख) भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
(ग) भारतीय लेबर पार्टी
(घ) स्वतंत्र पार्टी
8. निम्नलिखित में कौन स्वतंत्र पार्टी के नेता नहीं थे?
(क) मीनू मसानी
(ख) एन.जी. रंगा
(ग) के.एम. मुंशी
(घ) भीमराव अम्बेडकर
9. भारत रल से सम्मानित प्रथम भारतीय कौन थे?
(क) लाल बहादुर शास्त्री
(ख) सी. राजगोपालाचारी
(ग) मोरारजी देसाई
(घ) दीन दयाल उपाध्याय
10. ए.के. गोपालन किस पार्टी के नेता थे?
(क) कांग्रेस
(ख) भारतीय जनसंघ
(ग) स्वतंत्र पार्टी
(घ) कम्युनिस्ट पार्टी
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