NCERT Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-1 राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

NCERT  Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-1  राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

NCERT Solutions Class 12  स्वतंत्र भारत में राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter-1  राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी स्वतंत्र भारत में राजनीति के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति Chapter-1  राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

CBSE Class 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति 

NCERT Solutions

CHAPTER- 1. राष्ट्र निर्माण की चुनौतियाँ

प्रश्नावली ( उत्तर सहित)

1.भारत-विभाजन के बारे में निम्नलिखित कौन-सा कथन गलत है?

(क) भारत-विभाजन “द्वि-राष्ट्र सिद्धांत" का परिणाम था।

(ख) धर्म के आधार पर दो प्रांतों-पंजाब और बंगाल-का बँटवारा हुआ।

(ग) पूर्वी पाकिस्तान और पश्चिमी पाकिस्तान में संगति नहीं थी।

(घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

उत्तर (घ) विभाजन की योजना में यह बात भी शामिल थी कि दोनों देशों के बीच आबादी की अदला-बदली होगी।

2. निम्नलिखित सिद्धांतों के साथ उचित उदाहरणों का मेल करें:

(क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण                      1. पाकिस्तान और बांग्लादेश

(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण     2. भारत और पाकिस्तान

(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन          3. झारखंड और छत्तीसगढ़

(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार पर    4. हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड

क्षेत्रों का सीमांकन

उत्तर (क) धर्म के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण                भारत और पाकिस्तान

(ख) विभिन्न भाषाओं के आधार पर देश की सीमा का निर्धारण       पाकिस्तान और बांग्लादेश

(ग) भौगोलिक आधार पर किसी देश के क्षेत्रों का सीमांकन            हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड

(घ) किसी देश के भीतर प्रशासनिक और राजनीतिक आधार          झारखंड और छत्तीसगढ़

पर क्षेत्रों का सीमांकन

3. भारत का कोई समकालीन राजनीतिक नक्शा लीजिए (जिसमें राज्यों की सीमाएँ दिखाई गई हों) और नीचे लिखी

रियासतों के स्थान चिह्नित कीजिए-

(क) जूनागढ़                 (ख) मणिपुर

(ग) मैसूर                      (घ) ग्वालियर

उत्तर शिक्षक की सहायता से स्वयं करें।

4. नीचे दो तरह की राय लिखी गई है:

विस्मय : रियासतों को भारतीय संघ में मिलाने से इन रियासतों की प्रजा तक लोकतंत्र का विस्तार हुआ।

इंद्रप्रीत :यह बात मैं दावे के साथ नहीं कह सकता। इसमें बलप्रयोग भी हुआ था जबकि लोकतंत्र में आम सहमति से काम लिया जाता है।

वेशी रियासतों के विलय और ऊपर के मशविरे के आलोक में इस घटनाक्रम पर आपकी क्या राय है?

उत्तर (i) विस्मय की राय से मैं सहमत हुँ। देशी रियासतों का विलय प्रायः लोकतांत्रिक तरीके से हुआ क्योंकि सिर्फ चार-पाँच रजवाड़ों को छोड़कर सभी स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व ही भारतीय संघ में शामिल हो चुके थे। जो रजवाड़े बचे थे इनमें से भी शासक जनमत और जनता की भावनाओं (जिनकी संख्या 90 प्रतिशत से भी ज्यादा थी) की अनदेखी कर रहे थे। सभी रियासतों ने केन्द्रीय सरकार द्वारा भेजे गए सहमति- पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए थे। विलय से पूर्व अधिकतर रजवाड़ों में शासन अलोकतांत्रिक रीति से चलाया जाता था और रजवाड़ों के शासक अपनी प्रजा को लोकतांत्रिक अधिकार देने के लिए तैयार नहीं थे।

(ii) इद्रप्रीत की राय से भी मैं कुछ हद तक सहमत हुँ। यह राय ठीक है कि भारत में रजवाड़ों के विलय को लेकर बल-प्रयोग किया गया। लेकिन यह चंद रजवाड़ों-हैदराबाद और जूनागढ़-के मामले में हुआ। वह भी इसलिए क्योंकि दोनों रजवाड़ों के शासक मुसलमान थे लेकिन वहाँ की जनसंख्या का लगभग 80 से 90 प्रतिशत भाग हिंदू थी। वहाँ की आम जनता भारत में विलय चाहती थी। इन दोनों रजवाड़ों में आम जनता द्वारा आदोलन भी चलाया गया। इसके अतिरिक्त भौगोलिक दृष्टि से दोनों रजवाड़े भारतीय सीमा के अधिक नजदीक थे। कश्मीर पर हमला पाकिस्तान के उकसाने पर कबालियों ने किया था। उनके नव स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर का संरक्षण करना भारत का दायित्व भी था और भारत ने वहाँ के शासक और जनप्रतिनिधियों की मांग पर ही सेना भेजी थी। वहाँ के शासक तथा आम जनता की इच्छानुसार कश्मीर का विलय भारत में हुआ। भारत में विलय के बाद से वहाँ अनेक विधान सभा और लोकसभा चुनाव हो चुके हैं।

5. नीचे 1947 के अगस्त के कुछ बयान दिए गए हैं जो अपनी प्रकृति में अत्यंत भिन्न हैं:

आज आपने अपने सर पर काँटों का ताज पहना है। सत्ता का आसन एक बुरी चीज़ है। इस आसन पर आपको बड़ा सचेत रहना होगा... आपको और ज्यादा विनम्न और धैर्यवान बनना होगा... अब लगातार आपकी परीक्षा ली जाएगी।

                                                                                                                  -मोहनदास करमचंद गाँधी

...भारत आजादी की जिंदगी के लिए जागेगा... हम पुराने से नए की ओर कदम बढ़ाएंगे... आज दुर्भाग्य के एक दौर

का खात्मा होगा और हिंदुस्तान अपने को फिर से पा लेगा... आज हम जो जश्न मना रहे हैं वह एक कदम भर है,

संभावनाओं के द्वार खुल रहे हैं...

                                                                                                                         -जवाहरलाल नेहरू

इन दो बयानों से राष्ट्र-निर्माण का जो एजेंडा ध्वनित होता है उसे लिखिए। आपको कौन-सा एजेंडा जंच रहा है और

क्यों?

उत्तर (1) गाँधी जी का यह कथन बिल्कुल ठीक है कि सत्ता का ताज काँटों से भरा होता है। क्योंकि प्रायः सत्ता पाने के बाद सत्तासीन लोगों में घमंड आ जाता है। वे प्रायः अपने दायित्व का निर्वाह नहीं करते। भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना गाँधीवादो तरीकों से - अहिंसा, प्रेम, सत्य, सहयोग, समानता, भाईचारा, सांप्रदायिक सदभाव आदि के साथ की जाए। सत्ता में आसीन लोगों को चाहिए कि वे ज्यादा विनम्र और धैर्यवान होकर निरंतर अपने दायित्व निर्वाह की परीक्षा देते रहें यानि न सिर्फ लोकतांत्रिक राजनीतिक की स्थापना, बल्कि समाज में सामाजिक और आर्थिक न्याय भी मिले, इसका सदैव प्रयत्न करना चाहिए।

(ii) जवाहरलाल नेहरू द्वारा व्यक्त कथन विकास के उस एजेंडे की ओर इशारा कर रहा है जो भारत आजादी के बाद की जिंदगी जिएगा। यहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता, समानता और किसी सीमा तक न्याय की स्थापना हुई है और हमें पुरानी बातों को छोड़कर नए जोश के साथ आगे बढ़ना है। नि:संदेह 14 अगस्त को मध्य रात्रि को उपनिवेशवाद का अंत हो गया और हमारा देश स्वतंत्र हो गया। परन्तु आजादी मनाने का यह उत्सव क्षणिक था क्योंकि इसके आगे देश के समक्ष बड़ी भारी समस्याएँ थीं। इन समस्याओं में उजड़े हुए लोगों को फिर से बसाना, देश की गरीबी, बेरोजगारी और पिछड़ेपन की समस्याओं को समाप्त करना आदि सम्मिलित हैं। हमें इन समस्याओं को समाप्त करके नई संभावनाओं के द्वार खोलना है जिसमें गरीब-से-गरीव भारतीय भी यह महसूस कर सके कि आजाद हिन्दुस्तान भी उसका मुल्क है। यहाँ लैंगिक आधार पर समानता होनी चाहिए। देश उदारवाद और वैश्वीकरण के साथ-साथ सभी को सामाजिक और आर्थिक न्याय दिलाए। समान नागरिक विधि संहिता लागू हो।

हमें नेहरू जी का एजेंडा ज्यादा जंच रहा है क्योंकि नेहरू जी ने भारत के भविष्य का खाका खींचने की तस्वीर पेश की है। उन्होंने परख लिया था कि आजादी के साथ-साथ अनेक प्रकार की समस्याएँ भी आई हैं। गरीब के आँसू पोछने के साथ-साथ विकास के पहिए की गति को भी तेज करना था।

6. भारत की धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने के लिए नेहरू ने किन तर्को का इस्तेमाल किया। क्या आपको लगता है कि ये केवल भावनात्मक और नैतिक तर्क हैं अथवा इनमें कोई तर्क युक्तिपरक भी है?

उत्तर प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राज्य घोषित किए जाने का समर्थन किया और इसके पक्ष में कई तर्क प्रस्तुत किए जो निम्नलिखित हैं-

(1) नेहरू का कहना था कि विभाजन के सिद्धांत में जनसंख्या की अदला-बदली की कोई व्यवस्था नहीं थी कि पाकिस्तान बनने के बाद भारत के सभी मुसलमानों को भारत से निकाल दिया जाएगा। पंजाब और बंगाल के प्रांतों में ही मुख्य रूप से यह अदला-बदली हुई जो परिस्थितियों का परिणाम थी तथा आकस्मिक थी।

(ii) भारत के दूसरे प्रांतों से जो भी मुसलमान पाकिस्तान गए वे स्वेच्छा से गए, किसी सरकारी आदेश के अंतर्गत नहीं।

(iii) पाकिस्तान बनने और जनसंख्या की अदला बदली के बाद भी भारत में मुसलमानों की संख्या इतनी है जिन्हें भारत से निकाला जाना संभव नहीं। 1951 की जनगणना के अनुसार मुसलमानों की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 12 प्रतिशत था।

(iv) भारत में मुसलमानों के अतिरिक्त और भी अल्पसंख्यक धार्मिक वर्ग हैं जैसे कि सिक्ख, ईसाई, बौद्ध, जैन, पारसी, यहूदी। मुसलमान सबसे बड़ा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदाय था। इसके होते हुए भारत को हिन्दू राष्ट्र और राज्य घोषित किया जाना न उचित है और न ही न्यायसंगत।

(v) यदि भारत को हिन्दू राज्य घोषित किया जाएगा तो यह एक नासूर बन जाएगा और वह सारी सामाजिक व राजनीतिक व्यवस्था को विषैला बनाएगा तथा इसकी बर्बादी का कारण बन सकता है।

(vi) भारतीय संस्कृति सभी धर्मों की विशेषताओं का मिश्रण है। भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने से भारतीय संस्कृति का संयुक्त स्वरूप (Composte Character) भी कुप्रभावित होगा।

(vii) भारत को हिन्दू राज्य घोषित करने से सभी अल्पसंख्यकों में असुरक्षा और अलगाव की भावना विकसित होगी जो राष्ट्रीय स्वतंत्र भारत में राजनीति एकता, राष्ट्रीय एकीकरण तथा राष्ट्र-निर्माण के रास्ते में घातक होगी और भारत एक मजबूत राष्ट्र के रूप में उभर नहीं सकेगा।

(viii) नेहरूजी का यह भी कहना था कि हम अल्पसंख्यकों के साथ वही व्यवहार नहीं करना चाहते और न ही कर सकते जो पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ किया जा रहा है और वहाँ के अल्पसंख्यकों को अपमान और भय के वातावरण में ना पड़ रहा है।

(ix) नेहरू का यह भी तर्क था कि हमने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाना है, धर्मतंत्र को नहीं। अतः हमें सभी नागरिकों को, बहुसंख्यकों की तरह अल्पसंख्यकों को भी, समान समझना है, उन्हें समान अधिकार और जीवन विकास को समान सुविधाएँ तथा अवसर प्रदान करने हैं, अल्पसंख्यकों के हितों की सुरक्षा की व्यवस्था करनी होगी, उनके दिल से भय और अनिश्चय का भाव दूर करना होगा और सभी नागरिकों की प्रशासन में समान भागीदारी की व्यवस्था करनी होगी।

(x)नेहरू का कहना था कि भारतीय संस्कृति भी इस बात की माँग करती है कि हम अपने अल्पसंख्यकों के साथ सभ्यता और शालीनता के साथ व्यवहार करें।

7. आसंदी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर क्या थे-

उत्तर आजादी के समय देश के पूर्वी और पश्चिमी इलाकों में राष्ट्र-निर्माण की चुनौती के लिहाज से दो मुख्य अंतर निम्न थे-

(i) विभाजन से पहले यह तय किया गया कि धार्मिक बहुसंख्या को विभाजन का आधार बनाया जाएगा। इसके मायने यह थे कि जिन इलाकों में मुसलमान बहुसंख्यक थे वे इलाके 'पाकिस्तान' के भू-भाग होंगे और शेष हिस्से 'भारत' कहलाएंगे। यह बात थोड़ी आसान जान पड़ती है परंतु असल में इसमें कई किस्म की दिक्कतें थीं। पहली बात तो यह कि 'ब्रिटिश इंडिया' में कोई एक भी इलाका ऐसा नहीं था. जहाँ मुसलमान बहुसंख्यक थे। ऐसे दो इलाके थे जहाँ मुसलमानों की आबादी अधिक थी। एक इलाका पश्चिम में था तो दूसरा इलाका पूर्व में। ऐसा कोई तरीका नहीं था कि इन दोनों इलाकों को जोड़कर एक जगह कर दिया जाए। इसे देखते हुए फैसला हुआ कि पाकिस्तान में दो इलाके शामिल होंगे यानि पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान तथा इसके बीच में भारतीय भू-भाग का एक बड़ा विस्तार रहेगा।

(ii) एक समस्या और विकट थी। 'ब्रिटिश इंडिया' के मुस्लिम बहुल प्रांत पंजाब और बंगाल में अनेक हिस्से बहुसंख्यक गैर-मुस्लिम आबादी वाले थे। ऐसे में फैसला हुआ कि इन दोनों प्रातों में भी बँटवारा धार्मिक बहुसंख्यकों के आधार पर होगा और इसमें जिले अथवा उससे निचले स्तर के प्रशासनिक हलके को आधार बनाया जाएगा।

14-15 अगस्त 1947 की मध्यरात्रि तक यह फैसला नहीं हो पाया था। इसका मतलब यह हुआ कि आजादी के दिन तक अनेक लोगों को यह पता नहीं था कि वे भारत में हैं या पाकिस्तान में। पंजाब और बंगाल का बँटवारा विभाजन की सबसे बड़ी त्रासदी सावित हुआ।

8. राज्य पुनर्गठन आयोग का काम क्या था? इसकी प्रमुख सिफारिश क्या थी?

उत्तर राज्य पुनर्गठन आयोग का काम राज्यों के सीमांकन के मामले पर गौर करना था। इसकी प्रमुख सिफारिश यह थी कि राज्यों की सीमाओं का निर्धारण वहाँ बोली जाने वाली भाषा के आधार पर होना चाहिए। इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम पास हुआ। इस अधिनियम के आधार पर 14 राज्य और 6 केंद्र-शाषित प्रदेश बनाए गए।

राष्ट्र से अभिप्राय-कहा जाता है कि व्यापक अर्थ में राष्ट्र एक 'कल्पित समुदाय' है। राज्य की तरह इसे महसूस किया जाता है, उसके अस्तित्व को स्वीकार किया जाता है परंतु उसे देखा या छुआ नहीं जा सकता। राष्ट्र का अस्तित्व लोगों की एकता या अपने को एक तथा अन्य व्यक्तियों से अलग समझने की भावना पर टिका है।

ब्राइस (Bryce) का कहना है कि "राष्ट्रीयता वह जनसमुदाय है जो भाषा, साहित्य, विचारधारा, रीति-रिवाजों आदि के आधार पर आपस में ऐसे बंधा हुआ हो कि वह अपने को एक इकाई समझता हो और इसी प्रकार के बंधनों से बँधे अन्य जनसमुदायों से अलग समझता हो। राष्ट्र वह राष्ट्रीयता है जिसने स्वयं को एक स्वतंत्र अथवा स्वतंत्रता की इच्छा रखने वाली राजनीतिक संस्था bके रूप में संगठित कर लिया है।"

राष्ट्र के आवश्यक तत्त्व- राष्ट्र के निर्माण के लिए लोगों में यह भावना आनी आवश्यक है कि वे एक हैं, बाकी संसार से अलग। यह भावना राष्ट्र के प्रति निम्नलिखित तत्त्वों से उत्पन्न होती है-

(i) समान जाति या नस्ल- एक ही जाति या नस्ल के लोग जब साथ-साथ रहते हैं, तो उनमें एक होने की भावना स्वाभाविक रूप से पैदा हो जाती है। एक ही जाति के लोग अपने को एक तथा अन्य जातियों से अलग समझते हैं। वे अन्य जातियों के साथ मिल-जुलकर नहीं रह सकते और अपनी अलग पहचान बनाए रखना चाहते हैं।

(ii) समान भाषा- भाषा लोगों को एक-दूसरे के निकट लाती है। एक ही भाषा बोलने वाले लोग अपने को एक और दूसरों से अलग समझते हैं क्योंकि भाषा द्वारा ही वे एक-दूसरे की अपनी बात कह सकते हैं और समझ सकते हैं। समान भाषा से समान विचार उत्पन्न होते हैं।

(iii) समान धर्म- धर्म का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए एक ही धर्म को मानने वाले, एक ही ध रार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करने वाले लोग अपने को एक मानने लगते हैं, और अन्य धर्मों के लोगों से अपने को अलग समझते हैं। इस प्रकार समान धर्म भी राष्ट्र का निर्माण करने में सहायक होता है। प्रारंभिक काल में धर्म ने लोगों में अनुशासन, आज्ञापालन और एकता की भावना पैदा की। एक धर्म को मानने वाले लोगों में एकता की भावना का आना स्वाभाविक है क्योंकि उनके धार्मिक कार्य तथा रीति-रिवाज एक से होते हैं।

(iv) समान इतिहास- समान इतिहास भी राष्ट्रीयता का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। जिन लोगों का इतिहास एक है, जिनकी ऐतिहासिक स्मृतियाँ एक हैं, जिन्होंने जय और पराजय का स्वाद इकठे रहकर चखा है, जिनके श्रद्धेय वीर एक हैं, उनका अपने आपको भावात्मक एकता में बँधे हुए महसूस करना स्वाभाविक है।

(v) भौगोलिक एकता- एक निश्चित क्षेत्र में जो कि प्राकृतिक रूप । अन्य क्षेत्रों से अलग बना हुआ हो, रहने वाले लोग अपने को स्वाभाविक रूप से एक समझते हैं, चाहे उनमें जाति, धर्म, भाषा की एकता न भी हो। भौगोलिक एकता ने राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

(vi) समान संस्कृति- जिन लोगों का रहन-सहन एक जैसा हो, जिनके रीति-रिवाज एक से हों, जिनका सामाजिक जीवन एक समान हो, वे स्वाभाविक तौर पर अपने को एक समझते हैं। जिनकी कला साहित्य एक हो, जिनकी विचारधारा एक जैसी हो, उनका अपने को अन्य लोगों से अलग समझना स्वाभाविक है।

(vii) समान हित- जिन लोगों के आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक हित एक हों, उनका एक-दूसरे के समीप आना और अपने को एक समझना स्वाभाविक है। समान हित वाले व्यक्ति इकट्ठा मिलकर कार्य करते हैं और इससे उनमे एकता की भावना पैदा होती है जो राष्ट्रीयता का निर्माण करती है।

(viii) समान राजनीतिक आकांक्षाएँ- जिन लोगों की राजनीतिक आकांक्षाएँ समान हों, उनमें धर्म, जाति, भाषा, इतिहास आदि की एकता न हो, तो भी वे अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं की पूर्ति के लिए मिल-जुलकर एवं एक होकर कार्य करते हैं। राजनीतिक आकांक्षा लोगों में राजनीतिक एकता की भावना पैदा करती है जो राष्ट्र के निर्माण के लिए आवश्यक है।

9. कहा जाता है कि राष्ट्र एक व्यापक अर्थ में 'कल्पित समुदाय' होता है और सर्वसामान्य विश्वास, इतिहास, राजनीतिक आकांक्षा और कल्पनाओं से एकसूत्र में बंधा होता है। उन विशेषताओं की पहचान करें जिनके आधार पर भारत एक राष्ट्र है।

छात्र स्वयं करें

10. नीचे लिखे अवतरण को पढ़िए और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-

राष्ट्र-निर्माण के इतिहास के लिहाज से सिर्फ सोवियत संघ में हुए प्रयोगों की तुलना भारत से की जा सकती है। सोवियत संघ में भी विभिन्न और परस्पर अलग-अलग जातीय समूह, धर्म, भाषाई समुदाय और सामाजिक वर्गों के बीच एकता का भाव कायम करना पड़ा। जिस पैमाने पर यह काम हुआ, चाहे भौगोलिक पैमाने के लिहाज से देखें या जनसंख्यागत वैविध्य के लिहाज से, वह अपनेआप में बहुत व्यापक कहा जाएगा। दोनों ही जगह राज्य को जिस कच्ची सामग्री से राष्ट्र-निर्माण की शुरुआत करनी थी वह समान रूप से दुष्कर थी। लोग धर्म के आधार पर बँटे हुए और कर्ज तथा बीमारी से दबे हुए थे।

                                                                                                                                     -रामचंद्र गुहा

(क) यहाँ लेखक ने भारत और सोवियत संघ के बीच जिन समानताओं का उल्लेख किया है, उनकी एक सूची बनाइए। इनमें से प्रत्येक के लिए भारत से एक उदाहरण दीजिए।

(ख) लेखक ने यहां भारत और सोवियत संघ में चली राष्ट्र-निर्माण की प्रक्रियाओं के बीच को असमानता का उल्लेख नहीं किया है। क्या आप दो असमानताएँ बता सकते हैं?

(ग) अगर पीछे मुड़कर देखें तो आप क्या पाते हैं? राष्ट्र-निर्माण इन दो प्रयोगों में किसने बेहतर काम किया और क्यों? 

छात्र अध्यापक की सहायता से करे।

                                                          खुद करें-खुद समझें

किसी भारतीय अथवा पाकिस्तानी/बांग्लादेशी कथाकार की लिखी कोई कहानी या उपन्यास पढ़ें जिसमें बँटवारे का जिक्र आया हो। सीमा के इस तरफ के लोगों और सीमा के उस तरफ के लोगों के अनुभव कैसे एक-दूसरे से मिलते-जुलते हैं? 'खाजूवीन' शीर्षक के अंतर्गत इस अध्याय में सुझाई गई तमाम कथाओं को एकत्र करें। एक वॉलपेपर तैयार करें और इसमें मिलते-जुलते अनुभवों वाले स्थल को रेखांकित करें। साथ ही, किसी अनूठे अनुभव को भी इसमें स्थान दें।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

1. 'ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी' किस प्रसिद्ध नेता के भाषण का संकलन है तथा इसे कब दिया गया था।

उत्तर जवाहरलाल नेहरू का। इसे 14-15 अगस्त 1947 के मध्य रात्रि में दिया गया था।

2 आजादी के समय भारत के समक्ष पहली और तत्कालिक चुनौती क्या थी?

उत्तर पहली और तत्कालिक चुनौती एकता के सूत्र में बंधे एक ऐसे भारत को गढ़ने को थी जिसमें भारतीय समाज की सारी विविध ताओं के लिए जगह हो।

3. 'द्वि - राष्ट्र सिद्धान्त' किस पार्टी का सिद्धान्त था?

उत्तर मुस्लिम लीग का।

4. किस नेता को सीमांत गाँधी के रूप में जाना जाता था?

उत्तर खान अब्दुल गफ्फार खान को।

5. मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रुप से क्यों किया गया था?

उत्तर मुस्लिम लीग का गठन मुख्य रुप से औपनिवेशिक भारत में मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए हुआ था।

6. फैज अहमद फैज को तीन प्रमुख कविता संग्रह के नाम लिखिए।

उत्तर (i) नक्शे फरियादी, (ii) दस्त-ए-सबा, (iii) जिंदानामा।

7. अमृता प्रीतम कौन थी?

उत्तर अमृता प्रीतम पंजाबी भाषा की प्रमुख कवयित्री और कथाकार थी। उन्होंने जीवन के अंतिम समय तक पंजाबी की साहित्यिक पत्रिका 'नागमणि' का संपादन किया।

8. स्वतंत्रता प्राप्ति के समय रजवाड़ों की संख्या कितनी थी?

उत्तर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय रजवाड़ों की संख्या 565 थी।

9. रजवाड़ों के शासकों को भारतीय संघ में शामिल करने में किस नेता की ऐतिहासिक भूमिका थी?

उत्तर सरदार वल्लभ भाई पटेल।

10. "इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' क्या है?

उत्तर 15 अगस्त 1947 से पहले ही अधिकतर रजवाड़ों के शासकों ने भारतीय संघ में अपने विलय के एक सहमति-पत्र पर हस्ताक्षर कर दिये थे। इसी सहमति पत्र को 'इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' कहा जाता है।

11. हैदराबाद के शासक को क्या कहा जाता था?

उत्तर हैदराबाद के शासक को 'निजाम' कहा जाता था।

12. 'रजाकार' क्या था?

उत्तर 'रजाकार' एक अर्द्ध-सैनिक बल को कहा जाता था जो अव्वल दर्जे का सांप्रदायिक और अत्याचारी होता था।

13. हैदराबाद का भारत में विलय किस वर्ष हुआ था?

उत्तर 1948 में।

14. मणिपुर के किस राजा ने भारतीय संघ में अपने रजवाड़े के विलय के लिए हस्ताक्षर किया था?

उत्तर महाराजा बोधचंद्र सिंह।

15. भारत के किस भाग में सबसे पहले सार्वभौम व्यस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर चुनाव करवाया गया?

उत्तर मणिपुर।

16. आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजी शासन ने घोषणा कर दी कि भारत पर ब्रिटिश प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश -अधीनता से आजाद हो जाएंगे। इस घोषणा ने अखंड भारत के अस्तित्व को किस प्रकार खतरे में डाल दिया और इसके क्या परिणाम हुए?

उत्तर आजादी के तुरंत पहले अंग्रेजी-शासन ने घोषणा की कि भारत पर ब्रिटिश-प्रभुत्व के साथ ही रजवाड़े भी ब्रिटिश-अधीनता से आजाद हो जाएंगे। इसका मतलब यह था कि सभी रजवाड़ों जिनकी संख्या 565 थी ब्रिटिश राज की समाप्ति के साथ ही कानूनी तौर पर आजाद हो जाएंगे। रजवाड़ों को यह अधिकार दिया गया था कि वो अपनी मर्जी से भारत या पाकिस्तान में शामिल हो जाएँ। यह समस्या गंभीर थी और इससे अखंड भारत के अस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा था।

इस घोषणा का परिणाम : जल्दी ही इस समस्या ने तेवर दिखाना शुरू कर दिया। सबसे पहले त्रावणकोर के राजा ने अपने राज्य को आजाद रखने की घोषणा की। अगले ही दिन हैदराबाद के निजाम ने ऐसी ही घोषणा की। कुछ शासक मसलन भोपाल के नवाब संविधान सभा में शामिल नहीं होना चाहते थे। रजवाड़ों के शासकों के रवैये से यह बात स्पष्ट हो गई थी कि आजादी के बाद हिन्दुस्तान कई छोटे-छोटे देशों की शक्ल में बँट जाने वाला था। लोकतंत्र का भविष्य अधंकारमय दिखने लगा था। स्थिति को देखते हुए सरकार ने कड़ा रुख अपनाया और रजवाड़ों के शासको को भारतीय संघ में शामिल करने का दृढ़ निश्चय किया।

सरदार पटेल के नेतृत्व में आजादी वाले दिन यानि 15 अगस्त 1947 से पहले ही लगभग सभी रजवाड़े जिनकी सीनाएँ आजाद हिन्दुस्तान की नई सीमाओं से मिलती थीं, भारतीय संघ में शामिल हो गए। जूनागढ़, हैदराबाद, कश्मीर और मणिपुर की रियासतों का बिलय बाद में हुआ।

17. रजवाड़ों के भारतीय संघ में विलय में आने वाली समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर रजवाड़ों के भारतीय संघ में विलय में समस्याएँ -

(i) कोई भी राजा या नवाब अपना राज्य, अपनी शक्ति, अपनी संपदा सहर्ष छोड़ने को तैयार नहीं था और यह बात स्वाभाविक

भी थी। बहुत से राजाओं ने तुरंत ही स्वतंत्र रहने की घोषणा भी कर दी थी।

(ii) रजवाड़ों के राजा या नवाब अपनी इच्छानुसार शासन चलाने के अभ्यस्त हो चले थे और ऐश का जीवन जीते थे। वे अपनी रियासत के लोगों को अपना दास समझते थे और जनता भी उन्हें माई-बाप, जी-हजूर कहकर पुकारती थी। इस जीवन से एकदम वंचित होने को सहमत होना आसान नहीं था।

(iii) रजवाड़े ये चाहते थे कि उनके आंतरिक शासन में उन्हें स्वतंत्र छोड़ दिया जाए और उन पर ब्रिटिश सरकार की बजाए भारत सरकार की छत्र-छाया समझी जाए। परंतु इससे लोकतंत्र के प्रसार की बात समाप्त होती थी।

18. स्वतंत्रता प्रप्ति के समय भारत को जिन सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता की चुनौतियों का सामना करना पड़ा, उनमें से किन्हीं दो को संक्षेप में समझाइए।

उत्तर स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत को कई सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। इनमें से दो चुनौती निम्नप्रकार से है-

(i) सामाजिक एकता की समस्या-जब भारत आजाद हुआ तो इसके समक्ष सामाजिक एकता को बनाए रखने की गंभीर समस्या थी। वैसे तो भारतीय समाज में पूर्व से ही बहुत-सी जातियाँ और उपजातियाँ विद्यमान रही हैं और उनमें भेद-भाव की भावना भी रही है लेकिन अंग्रेजों ने अपनी फूट डालने की नीति के कारण इनमें और भी अधिक दूरी पैदा की। स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भारत में जातीय भेद-भाव बड़ा तीव्र था। लोग अपने को भारतीय कहने से पहले अपनी जाति से संबंद्ध होना अधि क महत्वपूर्ण मानते थे। यह भारत की राष्ट्रीय एकता, अखंडता तथा स्वतंत्रता के लिए बाधक तथा खतरा हो सकती थी।

(ii)र जवाड़ों की समस्या भारत में ब्रिटिश प्रांतो के अतिरिक्त 565 रियासतें थीं जिन्हें अंग्रेजों ने छूट दी थी कि वे चाहे तो किसी भी देश (भारत या पाकिस्तान) के साथ मिल सकते हैं और चाहें तो अपना स्वतंत्र राज्य बनाए रख सकते हैं। यदि सभी रियासतें अपने को स्वतंत्र रखती तो भारत छोटे-छोटे स्वतंत्र राज्यों का समूह दिखाई देता न कि एक विशाल राष्ट्र। इन रजवाड़ों को भारत के साथ मिलाना और राष्ट्र का निर्माण करना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। इन्हें स्वतंत्र छोड़ना भी खतरे से खाली नहीं था। यह भी सत्य है कि अधिकतर राजा अपनी शक्ति और सत्ता को खोना नहीं चाहते थे और स्वतंत्र रुप में राज्य करना चाहते थे। सरदार पटेल ने इन राज्यों को राष्ट्ररुपी माला में पिरोने और उस माला का अभिन्न अंग बनाने का कठिन काम सरलता से किया।

19. कैबिनेट मिशन योजना के तहत आंतरिक सरकार किस प्रकार की थी?

उत्तर कैबिनेट मिशन योजना के तहत आंतरिक सरकार- मिशन योजना में यह व्यवस्था की गई थी जब तक नया संविधान बनकर तैयार नहीं हो जातां भारत का शासन एक अंतरिम सरकार द्वारा चलाया जाएगा और गवर्नर जनरल संवैधानिक अध्यक्ष के रुप में कार्य करेगा। युद्ध विभाग सहित सभी विभाग आंतरिक सरकार को सौंप दिए जाएंगे। इसके परिणामस्वरुप जुलाई 1946 में संविधान सभा हेतु चुनाव कराए गए और 24 अगस्त, 1946 को अंतरिम सरकार बनाई गई। संविधान सभा में चुनावों के आधार पर कांग्रेस को 296 में से 212 सीटें प्राप्त हुई। मुस्लिम लीग को निराशा हुई और उसने इसके विरोध में प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया जिससे समूचे देश में हिन्दू-मुस्लिम उपद्रव भड़क उठे और हजारों लोगों को जान गंवानी पड़ी।

                                                        बहुविकल्पीय प्रश्न

1. 'ट्रिस्ट विद् डेस्टिनी' किस प्रसिद्ध नेता से संबंधित है?

(क) महात्मा गाँधी

(ख) जवाहरलाल नेहरू

(ग) सरदार पटेल

(घ) अमृता प्रीतम

2. "कल हम अंग्रेजी-गज की गुलामी से आजाद हो जाएंगे लेकिन आधी रात को भारत का बंटवारा भी होगा। इसलिए कल का दिन हमारे लिए खुशी का दिन होगा और गम का भी। यह कथन किस महापुरुष का है?

(क) महात्मा गाँधी

(ख) सीमांत गांधी

(ग) जय प्रकाश नारायण

(घ) मोरारजी देसाई।

3. निम्नलिखित में कौन फैज अहमद फैज से संबंधित नहीं है?

(क) दस्त-ए-सबा

(ख) नक्शे फरियादी

(ग) जिंदानामा

(घ) नागमणि।

4. निम्नलिखित में कौन 'नागमणि' पत्रिका के संपादक थे?

(क) फैज अहमद फैज

(ख) अमृता प्रीतम

(ग) महादेवी वर्मा

(घ) इनमे से कोई नहीं।

5. 'द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त' किसकी देन था?

(क) कांग्रेस

(ख) कम्युनिष्ट पार्टी

(ग) मुस्लिम लीग

(घ) समानांतर पार्टी।

6. निम्नलिखित में कौन द्वि-राष्ट्र सिद्धान्त के विरोधी नहीं थे?

(क) जवाहरलाल नेहरु

(ख) सीमांत गांधी

(ग) मुहम्मद अली जिन्ना

(घ) सरदार पटेल।

7. निम्नलिखित में किन्हें सीमांत गाँधी के रूप में जाना गया?

(क) महात्मा गाँधी

(ख) खान अब्दुल गफ्फार खान

(ग) सावरकर

(घ) चंद्रशेखर आजाद।

8. निम्नलिखित में कौन-से नेता थे जिन्होंने आजादी के किसी भी जश्न में भाग नहीं लिया?

(क) सरदार पटेल

(ख) जवाहरलाल नेहरू

(ग) महात्मा गाँधी

(घ) श्यामा प्रसाद मुखर्जी।

9. आजादी प्राप्ति के समय भारत में कितने रजवाड़े थे?

(क) 545

(ख) 555

(ग) 560

(घ) 565

10. रजवाड़ों के शासकों को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए राजी करने में किस नेता की महत्वपूर्ण भूमिका थी?

(क) सरदार पटेल

(ख) चारू मजूमदार

(ग) महात्मा गाँधी

(घ) मोतीलाल नेहरू।

11. निम्नलिखित में किसे भारतीय संघ में शामिल किया गया?

(क) मणिपुर

(ख) पंजाब

(ग) असम

(घ) हैदराबाद।

12. सार्वभौम व्यस्क मताधिकार के सिद्धान्त को अपनाकर चुनाव होने वाला भारत का सबसे पहला भाग था

(क) असम

(ख) मणिपुर

(ग) नागालैंड

(घ) मेघालय।

उत्तर 1.(ख)   2.(क)    3.(घ)    4.(ख)  5.(ग)  6.(ग)  7.(ख)   8.(ग)   9.(घ)  10.(क)  11.(घ)   12.(ख)


एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 स्वतंत्र भारत में राजनीति - II