NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter- 2 दो ध्रुवीयता का अंत

NCERT Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter- 2 दो ध्रुवीयता का अंत 

NCERT Solutions Class 12  समकालीन विश्व राजनीति  12 वीं कक्षा से Chapter 2  दो ध्रुवीयता का अंत   के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए। 
हमने NCERT बोर्ड की टेक्सटबुक्स हिंदी समकालीन विश्व राजनीति  के सभी Questions के जवाब बड़ी ही आसान भाषा में दिए हैं जिनको समझना और याद करना Students के लिए बहुत आसान रहेगा जिस से आप अपनी परीक्षा में अच्छे नंबर से पास हो सके।
Solutions Class 12 समकालीन विश्व राजनीति Chapter- 2 दो ध्रुवीयता का अंत


कक्षा 12

Chapter-2

प्रश्नावली (उत्तर सहित)

1. सोवियत अर्थव्यवस्था की प्रकृति के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन गलत है?

(क) सोवियत अर्थव्यवस्था में समाजवाद प्रभावी विचारधारा थी।

(ख) उत्पादन के साधनों पर राज्य का स्वामित्व/नियंत्रण होना।

(ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

(घ) अर्थव्यवस्था के हर पहलू का नियोजन और नियंत्रण राज्य करता था।

उत्तर (ग) जनता को आर्थिक आजादी थी।

2. निम्नलिखित को कालक्रमानुसार सजाएँ?

(क) अफगान-संकट

(ख) बर्लिन-दीवार का गिरना

(ग) सोवियत संघ का विघटन

(घ) रूसी क्रांति

उत्तर (घ) रूसी क्रांति,

(ख) बर्लिन - दीवार का गिरना.

(ग) सोवियत संघ का विघटन

(घ) अफगान-संकट।

3. निम्नलिखित में कौन-सा सोवियत संघ के विघटन का परिणाम नहीं है?

(क) संयुक्त राज्य अमरीका और सोवियत संघ के बीच विचारधारात्मक लड़ाई का अंत

(ख) स्वतंत्र राज्यों के राष्ट्रकुल (सीआईएस) का जन्म

(ग) विश्व-व्यवस्था के शक्ति-संतुलन में बदलाव

(घ) मध्यपूर्व में संकट......... था।

उत्तर (घ) मध्यपूर्व में संकट।

4. निम्नलिखित में मेल बैठाएं    

(1) मिखाइल गोर्बाचेव     (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी

(2) शॉक थेरेपी               (ख) सैन्य समझौता

(3) रूस                          (ग) सुधारों की शुरुआत

(4) बोरिस येल्तसिन        (घ) आर्थिक मॉडल

(5) वारसा                        (ङ) रूस के राष्ट्रपति

उत्तर (1) मिखाइल गोर्बाचेव     (ग) सुधारों की शुरुआत

(2) शॉक थेरेपी                        (घ) आर्थिक मॉडल

(3)  रूस                                (क) सोवियत संघ का उत्तराधिकारी

(4) बोरिस येल्तसिन                (ङ) रूस के राष्ट्रपति

(5) वारसा                              (ख) सैन्य समझौता

5. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें।

(क) सोवियत राजनीतिक प्रणाली..........की विचारधारा पर आधारित थी।

(ख) सोवियत संघ द्वारा बनाया गया सैन्य गठबंधन..........था।

(ग).........पार्टी का सोवियत राजनीतिक व्यवस्था पर दबदबा था।

(घ) .........ने 1985 में सोवियत संघ में सुधारों की शुरुआत की।

(ङ).........का गिरना शीतयुद्ध के अंत का प्रतीक था।

उत्तर (क) समाजवाद

(ख) वारसॉ पैक्ट

(ग) कम्युनिस्ट

(घ)-मिखाइल गोर्बाचेव   

(ङ) बर्लिन की दीवार।

6. सोवियत अर्थव्यवस्था को किसी पूँजीवादी देश जैसे संयुक्त राज्य अमरीका की अर्थव्यवस्था से अलग करने वाली किन्हीं तीन विशेषताओं का जिक्र करें।

उत्तर रूस विश्व का पहला देश था जहाँ मार्क्सवादी क्रांति सफल हुई और मार्क्सवादी विचारधारा के आधार पर शासन व्यवस्था और अर्थव्यवस्था को अपनाया गया। रूस को रामाजवादी सोवियत गणराज्यों का संघ अथवा सोवियत संघ कहकर पुकारा गया। इसकी शासन व्यवस्था साम्यवादी दल की तानाशाही पर आधारित थी। रूस में लोकतांत्रिक व्यवस्था के चिन्नों अथवा सिद्धांतों को अपनाका गया था। यहाँ की अर्थव्यवस्था पूँजीवादी देशों जैसे कि अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस आदि देशों की अर्थव्यवस्था से बिल्कुल भिन्न थी। सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था एवं पूँजीवादी राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं में मुख्य अंतर निम्नलिखित थे-

(i) सोवियत संघ में अर्थव्यवस्था पर सरकार का पूर्ण नियंत्रण या जबकि पूँजीवादी राज्यों की अर्थव्यवस्था सरकार के नियंत्रण तथा स्वामित्व में नहीं थी, उस पर बाजार व्यवस्था का प्रभाव था।

(ii) सोवियत संघ में उत्पादन तथा वितरण के सभी साधन जैसे कि कारखाने, कृषि फार्म, बैंक, व्यापार तथा वाणिज्य राज्य के स्वामित्व में थे और सरकार के निर्णय के अनुसार संचालित होते थे, परंतु पूँजीवादी राज्यों में ये साधन तभ्या आर्थिक संस्थाएँ निजी क्षेत्र में थे। सरकार उन पर थोड़ा बहुत नियंत्रण उन्हें नियमित करने हेतु लगाती थी। परंतु वहाँ मुख्य रूप से निजी स्वामित्व की धारणा को अपनाया गया था।

(iii) सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था में निजी संपत्ति की धारणा का अभाव था। वहाँ लोगों को निजी संपत्ति रखने का अधिकार नहीं था निजी संपत्ति में रहने का मकान तथा घरेलु वस्तुएँ ही आती थीं। कारखाने, भूमि, खेत आदि पर सरकारी स्वामित्व था परंतु पूँजीवादी राज्यों में लोगों को निजी संपत्ति रखने का अधिकार था। बेशक उस पर कुछ सीमा या नियमनकारी कानून लागू होते थे परंतु लोगों को निजी संपत्ति रखने, उसे बेचनें, किसी को देने के अधिकार होते थे।

(iv) सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था के अंतर्गत खुला व्यापार तथा खुली प्रतियोगिता का अभाव था। उत्पादन की सीमा उसकी गुणवत्ता, वस्तुओं की कीमतें सरकार निश्चित करती थी और निजी लाभ की धारणा का भी अभाव था। पूँजीवादी देशों की अर्थव्यवस्था के अंतर्गत स्वतंत्र व्यापार, खुली स्पर्धा अपनाई गई थी, वस्तुओं की कीमत उत्पादक निश्चित करता था, बाजार का उन पर प्रभाव पड़ता था और निजी लाभ उत्पादन का आधार था।

7. किन बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए?

उत्तर निम्नलिखित बातों के कारण गोर्बाचेव सोवियत संघ में सुधार के लिए बाध्य हुए-

(i) गिरती हुई अर्थव्यवस्था जब गोर्बाचेव ने सोवियत संघ की बागडोर सँभाली तो इसकी अर्थव्यवस्था काफी गिर गई थी और गिरती जा रही थी। विकास की दर काफी घट गई थी। उत्पादन की गुणवत्ता पश्चिमी देशों के उत्पादन की गुणवत्ता के मुकाबले में निम्न स्तर की थी। उत्पादन की मात्रा भी घटती जा रही थी। वस्तुएँ रियायती कीमतों पर दिए जाने के कारण सरकार को काफी  घाटा सहना पड़ रहा था। अब सोवियत संघ के लिए, अपने गुट के देशों को आर्थिक तथा सैनिक सहायता देना कठिन होता जा रहा था। गोर्बाचेव के लिए अर्थव्यवस्था में सुधार करना आवश्यक हो गया था और यह तभी संभव था कि अर्थव्यवस्था को सरकार के पूर्ण नियंत्रण से मुक्ति दी जाए।

(ii) प्रशासन में भ्रष्टाचार-शासन पर साम्यवादी दल का पूर्ण नियंत्रण था। वह जनमत के प्रति उत्तरदायी नहीं था और लम्बे समय की तानाशाही ने साम्यवादी दल को जनता की आवश्यकताओं तथा कल्याण से बेखबर कर दिया था। साम्यवादी दल में सदस्यों का विशेष वर्ग उभर आया था जो विशेषाधिकारों का प्रयोग करते थे और भ्रष्टाचार में वृद्धि के कारण थे। जनता में असंतोष बढ़ता जा रहा था। गोर्बाचेव को विश्वास हो गया कि शासन व्यवस्था का भी पुनर्गठन किया जाना आवश्यक है।

(iii) पश्चिमी देशों की सूचना और प्रौद्योगिकी में प्रगति-गोर्बाचेव ने देखा कि पश्चिमी देशों में सूचना और प्रौद्योगिकी में क्रांति आई है जबकि सोवियत संघ इस क्षेत्र में बहुत पीछे है। सोवियत संघ को पश्चिमी देशों के समान लाने के लिए अर्थव्यवस्था और शासन में सुधार लाने आवश्यक हैं। उसने महसूस किया कि शीतयुद्ध अथवा पश्चिमी गुट के साथ स्पर्धा में काफी धन और समय नष्ट होता है। इन देशों से संबंधों को सुधारकर, शांति का वातावरण स्थापित कर, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आगे बढ़ने के कदम उठाए जाने अधिक लाभदायक हैं।

(iv) गोर्बाचेव के विचार-गोर्बाचेव के निजी विचारों ने भी उन्हें अर्थव्यवस्था और शासन में सुधार के कदम उठाने को बाध्य किया वे बहुध्रुवीय विश्व के समर्थक थे, तानाशाही व्यवस्था के स्थान पर लोकतांत्रिक व्यवस्था को शांति और सुरक्षा तथा विकास के लिए अधिक उपयोगी मानते थे। वे लोगों की स्वतंत्रता और अधिकारों के भी समर्थक थे। यही कारण है कि सोवियत संघ के इतिहास में स्यलिन को शीतयुद्ध के जनक के रूप में जाना जाता है तो गोर्बाचेव को शीतयुद्ध का अंत करने वाले नेता के रूप में जाना जाता है।

उपरिलिखित कारकों ने गोर्बाचेव को अर्थव्यवस्था शासन व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने के लिए बाध्य किया।

8. भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के क्या परिणाम हुए?

उत्तर  भारत जैसे देशों के लिए सोवियत संघ के विघटन के निम्नलिखित परिणाम हुए-

(i) सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत अन्य प्रजातन्त्रीय देशों की तरह विश्व की एकमात्र महाशक्ति अमरीका की तरफ और मजबूती से दोस्ती करने के लिए बढ़ता चला गया। मिश्रित अर्थव्यवस्था को सन् 1991 से ही धीरे-धीरे छोड़ दिया गया। नई आर्थिक नीति की घोषणा कर दी गई। भारत में भी लोग पूँजीवादी अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रभुत्वशाली अर्थव्यवस्था मानने लगे। भारत में उदारीकरण तथा वैश्वीकरण की नीतियाँ अपनाई जाने लगी। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी विभिन्न संस्थाएँ देश की प्रबल परामर्श दात्री मानी जाने लगीं।

(ii) भारत शीतयुद्ध को रोकने की चाह करने वाले राष्ट्रों में अग्रणी राष्ट्र था। सोवियत संघ के विघटन के बाद उसे लगने लगा कि अब विश्व में शीतयुद्ध का दौर और अन्तर्राष्ट्रीय तनावपूर्ण वातावरण एवं संघर्ष की समाप्ति हो जायेगी। भारत ने महसूस किया कि अब सैन्य गुटों के गठन की प्रक्रिया रुकेगी तथा हथियारों की तेज दौड़ भी थमेगी। भारत में सरकार तथा जनता को एक नई अन्तर्राष्ट्रीय शांति की संभावना दिखाई देने लगी।

(iii) सोवियत संघ के विघटन के बाद से भारत में राजनीतिक रूप से उदारवादी लोकतन्त्र राजनीतिक जीवन को सूत्रबद्ध करने वाला अधिक प्रबल रूप में बुद्धिजीवियों तथा अधिकांश पार्टियों द्वारा समझा जाने लगा है। अनेक वामपंथी विचारकों को एक झटका सा लगा है। वे मानते हैं कि शीघ्र ही पुनः विश्व में साम्यवाद का बोलबाला होगा।

(iv) भारत ने मध्य एशियाई देशों के प्रति अपनी विदेश नीति को नये सिरे से तय करना शुरू कर दिया है। सोवियत संघ से अलग हुए सभी पन्द्रह गणराज्यों से भारत के सम्बन्ध नये रूप से निर्धारित किये जा रहे हैं। भारत, चीन, रूस के साथ-साथ पूर्व साम्यवादी देशों के साथ भी मुक्त व्यापार को अपनाना जरूरी मान रहा है। भारत रूस, कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, उज्वेकिस्तान और अजरबेजान से तेल और गैस (जो इन चीजों के बड़े उत्पादक हैं) अन्य देशों के क्षेत्रों से पाइप लाइन गुजार करके लाने तथा अपनी जरूरतें पूरी करने के प्रयास में जुटा हुआ है। भारत रूस के साथ-साथ इन देशों में अपनी संस्कृति के प्रचार के लिए कई तरह के समझौते कर चुका है।

9. शॉक थेरेपी क्या थी? क्या साम्यवाद से पूँजीवाद की तरफ संक्रमण का यह सबसे बेहतर तरीका था?

उत्तर शॉक थेरेपी-साम्यवाद की समाप्ति के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूँजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस, मध्य एशिया के गणराज्यों और पूर्वी यूरोप के देशों में साम्यवाद से पूँजीवाद की और संक्रमण का एक खास मॉडल अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को 'शॉक थेरेपी' अर्थात् (आघात पहुँचाकर उपचार करना) कहा गया। भूतपूर्व 'दूसरी दुनिया' के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनना अलग-अलग रही लेकिन इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे। 

साम्यवाद से पूँजीवाद की ओर संक्रमण एवं शॉक थेरेपी :

(i) प्रत्येक देश पूँजीवादी अर्थव्यवस्था की ओर पूरी तरह मुड़ना चाहता था। इसका अर्थ था सोवियत संघ के दौर की हर संरचना में पूरी तरह मुक्ति पाना। 'शॉक थेरेपी' की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढांचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक फार्म' की निजी 'फार्म' में बदला गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती शुरू हुई। इस संक्रमण में राज्य नियंत्रित समाजवाद या पूंजीवाद के अतिरिक्त किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था या "तीसरे रुख' को मंजूर नहीं किया गया।

(ii) 'शॉक थेरेपी' के कारण इन अर्थव्यवस्थाओं के बाहरी व्यवस्थाओं के प्रति रझान बुनियादी तौर पर परिवर्तित हो गए। अब समझा जाने लगा कि अधिक से अधिक व्यापार करके ही विकास किया जा सकता है। इस कारण 'मुक्त व्यापार' को पूर्ण रूप से अपनाना आवश्यक माना गया। पूँजीवादी व्यवस्था को अपनाने के लिए वित्तीय खुलापन, मुद्राओं की आपसी परिवर्तनीयता और मुक्त व्यापार की नीति महत्त्वपूर्ण मानी गई।

(iii) अंततः इस संक्रमण में सोवियत खेमे के देशों के मध्य मौजूद व्यापारिक गठबंधनों को समाप्त कर दिया गया। खेमे के प्रत्येक  देश को एक-दूसरे से जोड़ने की जगह सीधे पश्चिमी देशों से जोड़ा गया। इस तरह धीरे-धीरे इन देशों को पश्चिमी अर्थतंत्र में समाहित किया गया। पश्चिमी दुनिया के पूँजीवादी देश अब नेता की भूमिका निभाते हुए अपनी विभिन्न एजेंसियों और संगठनों के सहारे इस खेमे के देशों के विकास का मार्गदर्शन और नियंत्रण करेंगे।

10. निम्नलिखित कथन के पक्ष या विपक्ष में एक लेख लिखें - "दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परंपरागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए।"

उत्तर "दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश-नीति बदलनी चाहिए और रूस जैसे परम्परागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए" इस कथन के पक्ष में निम्नलिखित तर्क दिए जा सकते हैं-

पक्ष में तर्क-

(i) राजनीति मेशा के लिए कोई किसी को पक्का मित्र और कोई किसी का शत्रु नहीं हो सकता। भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्षता भी अब नहीं चल सकती क्योंकि अब दुनिया में दो नहीं बल्कि केवल एक ही महाशक्ति है और यह संयुक्त राज्य अमरीका ही है।

(ii) अमरीका भारत की तरह ही एक उदारवादी गणतंत्रीय, लोकतंत्रात्मक संघीय राज्य है। भारत जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़ा लोकतंत्र है तो अमरीका अपनी संवैधानिक विशेषताओं एवं इतिहास के आधार पर सर्वाधिक शकिामान, विचारधारा की दृष्टि से सर्वाधिक सफल लोकतंत्र है।

(iii) भारत जब स्वराज्य के लिए संघर्ष कर रहा था उस समय भी संयुक्त राज्य अमरीका ने भारत की जनता का समर्थन किया तथा ब्रिटेन की सरकार पर भारत को शीघ्र स्वतंत्रता देने के लिए दबाव डाला था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तो अनेक बार गेहूँ, सूखा दूध, धन, तकनीक आदि से अमरीका ने भारत की सहायता की थी परंतु भारत द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गुटनिरपेक्ष नीति का अनुसरण करने के कारण अमरीका और भारत की दूरी बढ़ती चली गयी। अमरीका और भारत में मधुर संबंधों का अभाव रहा परंतु बदलते परिप्रेक्ष्य में भारत-अमरीकी संबंधों में धीरे-धीरे पर्याप्त सुधार हो रहा है। शीतयुद्ध की समाप्ति के बाद से भारत की स्थिर लोकतंत्रीय व्यवस्था, भारत में उदारीकरण, भारत के प्राकृतिक संसाधन आदि के कारण भारत और अमरीका के संबंधों में निकटका आ रही है। अमरीकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन की मार्च 2000 में भारत यात्रा तथा भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सितम्बर 2000 में अमरीका यात्रा से दोनों देशों के संबंधों में प्रगाढ़ता आयी है। भारत और अमरीका दोनों ही देश अपने-अपने राष्ट्रीय हितों के संदर्भ में एक-दूसरे के साथ निकटता बनाने को उत्सुक हैं।

(iv) नवम्बर 1998 में जब पाकिस्तानी सैनिक तथा पाकिस्तान समर्थित आतंकवादियों ने कारगिल में नियंत्रण रेखा को पार किया तो अमरीका और उसके साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के अन्य देशों ने पाकिस्तान की इस कार्यवाही की भर्त्सना की। 11 सितम्बर 2001 को अमरीका में आतंकवादी हमले के सम्य अमरीका ने भारत, पाकिस्तान और अमरीकी संबंधों का एक नया अध्याय शुरू किया जिसमें अमरीका ने पाकिस्तान के साथ-साथ भारत से भी मधुर संबंध बनाने का प्रयास किया। आतंकवाद के विरुद्ध अंतर्राष्ट्रीय युद्ध की आवश्यकता अनुभव की गयी। पूरे विश्व से आतंक को मिटाने अमरीका द्वारा संकल्प लिया गया। इस कार्य में अमरीका भारत तथा अन्य देशों के साथ मिलकर आतंकवाद की समस्या समाप्त करना चाहता है। भारत भी आतंकवाद मिटाने के लिए अमरीका को सहायता देने को तैयार है।

(v) अमरीका भारत के साथ व्यापारिक संबंधों में भी वृद्धि करने को उत्सुक है परंतु कुछ पर्यवेक्षकों का मत है कि अमरीका अपने राष्ट्रीय हितों की साधना के लिए ही व्यापारिक संबंधों में बढ़ोत्तरी का इच्छुक है। अत: भारत को भी अमरीका से संबंध बनाते समय अपने राष्ट्रीय हितों को ध्यान में रखते हुए सतर्क रहकर ही संबंध करने चाहिए। अपनी संप्रभुता और स्वतंत्रता पर किसी प्रकार की आंच न आए इसके लिए सतर्क रहना है।

(vi) अमरीकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (जुनियर) ने भारत से अच्छे सम्बन्ध बनाने के लिए सैनिक प्रतिबंधों में ढील दी थी। उन्होंने भारतीय नौसेना के हैलिकॉप्टरों के लिए कल-पुजों की भारत को बिक्री की अनुमति दी थी। भारत-अमरीका में अच्छे सम्बन्धों के कारण ही अक्टूबर 2002 में हवाई सेना का संयुक्त सैनिक अभ्यास आगरा में हुआ था। अमरीका के प्रयास से ही भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की संभावनाएँ समाप्त हुई।

विपक्ष में तर्क दूसरी दुनिया के विघटन के बाद भारत को अपनी विदेश नीति बदलनी चाहिए एवं रूस जैसे परापरागत मित्र की जगह संयुक्त राज्य अमरीका से दोस्ती करने पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। इस कथन के विपक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं-

(i)सोवियत संघ भारत का प्राचीन विश्वसनीय मित्र है। भारत के आर्थिक विशेषकर औद्योगिक विकास में सोवियत संघ ने बहुत ही सहायता की है। अनेक लौह-स्टील उद्योग उसी के सहयोग से चले एवं पनपे। नि:सन्देह सोवियत संघ स्टालिन के समय निर्गुट राष्ट्रों के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करता था। वह उन्हें 'पश्चिम के पिछलागू' कहता था। खुश्चेव के समय निर्गुट राज्यों के महत्त्व को स्वीकार किया गया। खुश्चेव ने ही भारत-रूस मैत्री को पुख्ता किया और कश्मीर के प्रश्न पर संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत का साथ दिया। सोवियत प्रधानमंत्री कोसिगन के समय 10 जनवरी, 1966 को भारत-पाकिस्तान युद्ध को टालने के संदर्भ में ताशकंद समझौता हुआ। उसके बाद से ही भारत-सोवियत मैत्री और पुख्ता होती गयी। सोवियत संघ के विघटन के पश्चात्भी  भारत-रूस सम्बन्ध प्रगाढ़ बने हुआ है|

(ii) दिसम्बर 1991 तक न केवल सोवियत साम्यवाद का पतन हुआ वरन् सोवियत संघ का 15 गणराज्यों में विघटन हो गया। रूस सोवियत संघ का उत्तराधिकारी बना। भारत ने सभी गणराज्यों को मान्यता दी तथा रूस के साथ अपने मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध बनाए।

रूसी राष्ट्रपति बोरिस येल्तसिन ने भारत से मधुर संबंध रखने की घोषणा की। 27 जनवरी, 1993 को वे भारत आए और 29  जनवरी, 1993 को भारत-रूस संधि हो गयो। इसमें मुख्य बातें निम्नलिखित थों :

(क) दोनों देश एक-दूसरे की अखंडता बनाए रखने को वचनबद्ध होंगे।

(ख) दोनों देश एक-दूसरे की सीमाओं का सम्मान करेंगे।

(ग) रुपया-रूबल समानता के आधार पर भारत पर ऋण का 30 प्रतिशत कम हो गया।

(घ) रूस कश्मीर के प्रश्न पर भारत को समर्थन देगा।

(iii) इसी यात्रा के दौरान सैनिक तथा तकनीकी समझौता भी हुआ था। इसके बाद रूसी प्रधानमंत्री विक्टर चेरनोमेदिन भी भारत-रूस संबंधों को मैत्रीपूर्ण बनाने के लिर 11 जून 1993 को भारत आये।

(iv) 29 जून, 1994 को भारत के प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव मास्को गए। रूस के प्रधानमंत्री 23 दिसम्बर, 1994 को फिर भारत आये। दोनों देशों के मध्य सैनिक. तकनीकी और व्यापारिक समझौते हुए। तीन वर्ष बाद 24 मार्च, 1997 को भारत के प्रधानमंत्री देवगौड़ा रूस गए। आतंकवाद और अपराध के विरुद्ध तथा नशीली वस्तुओं के अवैध व्यापार को रोकने के बारे में भी समझौते हुए। भारत द्वारा मई 1998 में किए गए नाभिकीय परीक्षणों का रूस द्वारा समर्थन किया गया।

(v) भारत-पाक कारगिल युद्ध के समय भी रूस ने भारत का समर्थन किया था। 7 दिसम्बर, 1999 को भारत-रूस के मध्य एक दसवर्षीय समझौता हुआ। इसके अनुसार भारत और रूस संयुक्त रूप से सभी प्रकार के सैन्य और असैन्य विमानों के उत्पादन का कार्य करेंगे। इसमें बमवर्षक विमान तथा वाहक पोत भी शामिल होंगे। 20 अप्रैल, 2000 को एक और समझौते के अनुसार दोनों देश अपने-अपने राजनीतिक सिद्धांतों को विश्व राजनीति और सैनिक दृष्टि से विश्लेषण करेंगे।

अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1 रूस में समाजवादी क्रांति कब हुई थी?

उत्तर 1917 में रूस में समाजवादी क्रांति हुई।

प्रश्न 2 दूसरे विश्वयुद्ध के बाद कौन-सा देश एक महाशक्ति के रूप में उभरा।

उत्तर सोवियत संघा

प्रश्न 3 सोवियत संघ अपने नागरिकों की राजनीतिक तथा आर्थिक आकांक्षाओं को पूरा करने में असफल रहा, क्यों?

उत्तर (i) सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान में हस्तक्षेप किया।

(ii) सोवियत संघ में लोगों के पारिश्नमिक में लगातार बढ़ोतरी हुई परन्तु उत्पादकता तथा प्रौद्योगिकी के मामले में वह पश्चिम के देशों से बहुत पीछे चली गई। इस कारण प्रत्येक तरह की उपभोक्ता वस्तु की कमी हो गई। खाद्यान्न का आयात साल-दर-साल बढ़ता गया। 1970 के दशक के अंतिम वर्षों में यह व्यवस्था लड़खड़ा ही रही थी और अंतत: रूक सी गई।

प्रश्न 4.स्टालिन के द्वारा सोवियत संघ में किए गए किन्हीं दो महत्वपूर्ण बातों को लिखिए।

उत्तर (1 औद्योगीकरण को तेजी से बढ़ावा।

(ii) खेती का बलपूर्वक सामूहीकरण।

प्रश्न 5. सोवियत संघ का विघटन किस वर्ष हुआ था?

उत्तर 1991 में।

प्रश्न 6 सोवियत संघ के विघटन के बाद किस देश को सोवियत संघ के उत्तराधिकारी राज्य के रूप में स्वीकार किया?

उत्तर रूस को।

प्रश्न 7 स्वतंत्रता की घोषणा करने वाला पहला सोवियत गणराज्य कौन-सा था?

उत्तर लिथुआनिया।

प्रश्न 8 1991 में संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य के रूप में कौन कौन से नेश शामिल हुए?

उत्तर एस्टोनिया, लताविया और लिथुआनिया।

प्रश्न 9 शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता क्या थी?

उत्तर शॉक थेरेपी की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामित्व होगा।

प्रश्न 10 रूसी मुद्रा का क्या नाम है?

उत्तर रुबल।

प्रश्न11 द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् सोवियत संघ को एक महाशक्ति बनाने में सहायक किन्हीं पाँच कारकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् सोवियत संघ को एक महाशक्ति बनाने में सहायक पाँच कारक निम्नलिखित हैं-

(i)द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात् सोचियत संघ एक महाशक्ति के रूप में उभरा। संयुक्त राज्य अमरीका को छोड़कर सोवियत संघ की अर्थव्यवस्था शेष विश्व की तुलना में कहीं ज्यादा विकसित थी।

(ii) सोवियत संघ की संचार प्रणाली बहुत उन्नत थी। उसके पास विशाल ऊर्जा-संसाधन था जिसमें खनिज तेल, लोहा और इस्पात तथा नशीनरी उत्पाद शामिल हैं।

(iii) सोवियत संघ का घरेलू उपभोक्ता-उद्योग भी बहुत उन्नत था और पिन से लेकर कार तक सभी चीजों का उत्पादन वहाँ होता था। यद्यपि सोवियत संघ के उपभोक्ता उद्योग में बनने वाली वस्तुएँ गुणवत्ता के दृष्टिकोण से पश्चिमी देशों के स्तर की नहीं थीं।

(iv) सोवियत संघ में सभी नागरिकों के लिए एक न्यूनतम जीवन स्तर सुनिश्चित था। सरकार लोगों को बुनियादी जरूरत की चीजें जैसे-स्वास्थ्य-सुविधा, शिक्षा, बच्चों की देखभाल तथा लोक-कल्याण की अन्य चीजें रियायती दर पर मुहैया कराती थी। सोवियत संघ में बेरोजगारी नहीं थी।

(v) सोवियत संघ के दूर-दराज के क्षेत्र भी आवागमन की सुव्यवस्थित और विशाल प्रणाली के कारण आपस में जुड़े हुए थे।

प्रश्न12 सोवियत संघ के विघटन के किन्हीं दो प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर सोवियत संघ के विघटन के दो प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:

(1) मिखाईल गोर्बाचेव के सुधार : मिखाईल गोर्बाचेव ने देश के भीतर आर्थिक-राजनीतिक सुधारों तथा लोकतंत्रीकरण की नीति चलामा तो कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं द्वारा उसका विरोध किया गया। गोर्बाचेव ने जब सुधारों को लागू किया और व्यवस्था में ढील दी तो लोगें की आकांक्षाओं अपेक्षाओं का ऐसा ज्वार उमड़ा जिसका अनुमान लगाना मुश्किल था। इस पर काबू पाना एक मायने में असंभव हो गया। सोवियत संघ में जनता के एक वर्ग की सोच यह थी कि गोर्बाचेव को ज्यादा तेज गति से कदम उठाने चाहिए। ये लोग उनकी कार्यपद्धति से निराश हो गए। इन लोगों ने जैसा सोचा था वैसा फायदा उन्हें नहीं हुआ या संभव है उन्हें बहुत धीमी गति से फायदा हो रहा हो। परंतु कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य और वे लोग जो सोवियत व्यवस्था से फायदे में थे, के विचार ठीक इसके विपरीत थे। इनका कहना था कि हमारी सत्ता और विशेषाधिकार अब कम हो रहे हैं और गोर्बाचेव बहुत जल्दबाजी दिखा रहे हैं। इस खींचतान में गोर्बाचेव का समर्थन हर तरफ से जाता रहा और जनमत आपरा में बँट गया। जो लोग उनके साथ थे उनका भी मोहभंग हुआ। ऐसे लोगों ने सोचा कि गोर्बाचेव खुद अपनी ही नीतियों का दीक तरह से बचाव नहीं कर पा रहे हैं।

(ii) राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का उभार : इन सारी बातों के बावजूद शायद सोवियत संघ का विघटन न होता। परन्तु एक घटना ने अधिकांश पर्यवेक्षकों को चौंकाया और सोवियत व्यवस्था के भीतर के लोग भी इससे आश्चर्यचकित रह गए। यह घटना थी राष्ट्रवादी भावनाओं और संप्रभुता की इच्छा के उभार की। रूस और बाल्टिक गणराज्य (एस्टोनिया; लताविया और लिथुआनिया), यूक्रेन तथा जार्जिया जैसे सोवियत संघ के विभिन्न गणराज्य इस उभार में शामिल थे। राष्ट्रीयता और संप्रभुता के भावों का ठभार सोवियत संघ के विघटन का अंतिम और सर्वाधिक तात्कालिक कारण सिद्ध हुआ। हालांकि इस मसले- पर भी अलग-अलग राय मिलती है।

प्रश्न13 'शॉक थेरेपी' से आपका क्या तात्पर्य है? संक्षेप में समझाइए।

उत्तर शॉक थेरेपी का अर्थ : साम्यवाद की समाप्ति के बाद पूर्व सोवियत संघ के गणराज्य एक सत्तावादी, समाजवादी व्यवस्था से लोकतांत्रिक पूंजीवादी व्यवस्था तक के कष्टप्रद संक्रमण से होकर गुजरे। रूस. मध्य एशिया के गणराज्य और पूर्वी यूरोप के देशों में पूँजीवाद की ओर संक्रमण के एक विशेष मॉडल को अपनाया गया। विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा निर्देशित इस मॉडल को 'शॉक थेरेपी' अर्थात् आघात पहुँचाकर उपचार करना कहा गया। भूतपूर्व 'दूसरी दुनिया के देशों में शॉक थेरेपी की गति और गहनता भिन्न-भिन्न रही परन्तु इसकी दिशा और चरित्र बड़ी सीमा तक एक जैसे थे। 'शॉक धेरैपी' की सर्वोपरि मान्यता थी कि मिल्कियत का सबसे प्रभावी रूप निजी स्वामिल होगा। इसके अंतर्गत राज्य की संपदा के निजीकरण और व्यावसायिक स्वामित्व के ढाँचे को तुरंत अपनाने की बात शामिल थी। सामूहिक 'फार्म' को निजी 'फार्म' में परिवर्तित किया गया और पूँजीवादी पद्धति से खेती आरंभ हुई। इस संक्रमण में राज्य नियंत्रित समाजवाद या पूँजीवाद के अलावा किसी भी वैकल्पिक व्यवस्था या 'तीसरे रख' को मंजूर नहीं किया गया।

प्रश्न14 सोवियत संघ के विघटन के बाद गणराज्यों में उत्पन्न संघर्षों तथा तनाव की घटनाओं की व्याख्या कीजिए।

उत्तर सोवियत संघ के विघटन के बाद गणराज्यों में उत्पन्न संघर्ष तथा तनाव-दिसंबर 1991 में सोवियत संघ की समाप्ति की घोषणा की गई। इससे इस संघ के सभी गणराज्य स्वतंत्र राज्य बन गए। परंतु यह परिवर्तन शांतिपूर्ण नहीं रहा। इन विभिन्न गणराज्यों अथवा राज्यों में कितने ही आपसी संघर्ष उभरकर आए। कई गणराज्यों में गृहयुद्ध हुए. कई में शासन के विरूद्ध विद्रोह हुए। इनका प्रभाव आज भी देखने को मिलता है। कई गणराज्यों में अलगाववादी गतिविधियाँ उभरीं। इन्होंने इस क्षेत्र में तनाव की स्थिति भी पैदा की। इनका संक्षिप्त विवरण निम्नलिखित है-

(i) रूस के दो गणराज्यों चेचन्या तथा दागिस्तान ने रूस से अलग होने की चेष्टा की ओर अलगाववादी आंदोलन चले। इसकी सरकार की इनको शक्ति द्वारा दबाने का प्रयल किया। स्वाभाविक है कि शवित द्वारा किसी जनआदोलन को दवाया नहीं जा सकता। अलगाववादी संगठनों ने हिंसात्मक आंदोलन के साथ-साथ आतंकवादी गतिविधियाँ भी अपनाई। होटलों तथा स्कूलों में बम विस्फोट की घटनाएँ भी घटी और ये गतिविधियाँ आज भी जारी हैं। सोवियत संघ के दौरान ऐसी गतिविधियों को उभरने नहीं दिया जाता था।

(ii) तजाकिस्तान का लगभग सारा क्षेत्र लगभग दस वर्ष तक गृहयुद्ध की चपेट में रहा। वहाँ कई सांप्रदायिक संघर्ष भी हुए।

(iii) अजरबैजन का एक प्रांत उसके साथ नहीं रहना चाहता। नगरनोकराबाख अजरबैजान की बजाए आर्मेनिया में मिलना चाहता है।

(iv) यूक्रेन, किरगिस्तान तथा जार्जिया में शासन को उखाड़ फेंकने के लिए आंदोलन चले।

(v) जार्जिया के दो प्रांत जार्जिया से अलग होना तथा स्वतंत्र राज्य बनना चाहते हैं और वहाँ गृहयुद्ध की स्थिति लंबे समय से बनी हुई है।

(vi) चेकोस्लोवाकिया दो भागों में बँटा और उसके दो स्वतंत्र राज्य बने बेशक यह प्रक्रिया शांतिपूर्ण रही और हिंसात्मक गतिविधि याँ नहीं अपनाई गई।

(vii) मध्य एशिया के गणराज्यों के पास तेल के भंडार हैं। उनके कारण उनकी आर्थिक स्थिति तो अच्छी है परंतु वे इसी कारण बाहरी शाक्तियों की आपसी स्पर्धा के केंद्र बने हुए हैं और तेल कंपनियाँ अपने हितों की प्राप्ति तथा सुरक्षा के लिए, आपस में लड़ती रहती हैं। इससे माहौल में तनाव पैदा होता है।

(viii) मध्य एशिया के गणराज्य रूस के साथ मिलते हैं। अमरीका वहाँ अपने सैनिक ठिकाने स्थापित करना चाहता है। ये गणराज्य चीन की सीमा से भी मिलते हैं और उनकी तेल संपदा ने भी इस क्षेत्र में कई बार तनाव की स्थिति पैदा की है।

(ix) सबसे अधिक और तीन संघर्ष यूगोस्लाविया में हुआ। वह कई प्रांतों में बँट गया। उसके क्षेत्रों, योस्निया-हर्जेगोविना, स्लोवेनिया तथा क्रोशिया ने अपने को स्वतंत्र राज्य घोषित किया। इस कारण एक प्रकार से लंबा गृहयुद्ध चला और नाटो को भी हस्तक्षेप करना पड़ा तथा यूगोस्लाविया पर बमबारी हुई।

बहुविकल्पीय प्रश्न

सही उत्तर पर  (√ )  का चिन्ह लगाइए-

प्रश्न 1 बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक कौन थे?

(क) ब्लादिमीर पुतिन    (ख) ब्लादिमीर लेनिन

(ग) गोर्वाचव                 (घ) बोरिस एल्सतिन

प्रश्न 2 निम्नलिखित में किसने खेती का बलपूर्वक सामूहिकीकरण किया?

(क) स्टालिन                (ख) गोर्वाचव

(ग) खुश्चेव                    (घ) पुतिन

प्रश्न 3 एशिया की सामूहिक सुरक्षा व्यवस्था का सुझाव किसने दिया था?

(क) प्रेझनेव                (ख) खुश्चेव

(ग) गोर्बाचेव               (घ) स्टालिन

प्रश्न 4 सोवियत संसद का नाम क्या है?

(क) लोकसभा           (ख) राज्यसभा

(घ) परिषद्                (ग) ड्यूमा

प्रश्न 5 निम्नलिखित में कौन-सा देश संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य बना?

(क) एस्टोनिआ         (ख) लताविया

(ग) लिथुआनिया        (घ) उपरोक्त सभी।

प्रश्न 6 सोवियत संघ का विभाजन कब हुआ था?

(क)25 दिसंबर, 1990         (ख) 25 दिसंबर, 1991

 (ग) 25 दिसंबर, 1992        (घ) 25 दिसंबर, 1993

प्रश्न 7 'शॉक थेरेपी' को किस वर्ष अपनाया गया?

(क) 1987    (ख) 198R

(ग) 1989     (घ) 1990

प्रश्न 8 निम्नलिखित में कौन-सी मुद्रा रूसी मुद्रा है?

(क) टांका      (ख) रुबल

(ग) रुपया      (घ)डॉलर

प्रश्न 9 'शॉक थेरेपी' के कारण रूस में कितने वित्तीय संस्थान विवालिया हो गए?

(क) लगभग 200     (ख) लगभग 400    

(ग) लगभग 500      (घ)लगभग 800

प्रश्न 10 2001 के भारत-रूस सामरिक समझौते के अंग के तौर पर भारत तथा रूस के बीच कितने द्विपक्षीय दस्तावेजों पर हस्ताक्षर किए गए हैं?

(क)70                  (ख) 80

(ग)90                    (घ) 100


उत्तर  1. (ख)   2.(क)   3.(क)   4.(ग)    5.(घ)    6. (ख)   7.(घ)   8. (ख)   9.(घ)   10. (ख)


 एनसीईआरटी सोलूशन्स क्लास 12 समकालीन विश्व राजनीत