NCERT Solutions class 12 Core hindi आरोह Chapter 14 - फणीश्वर नाथ रेनू
NCERT Solutions Class 12 Core Hindi Aroh 12 वीं कक्षा से Chapter 14 फणीश्वर नाथ रेनू के महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिलेंगे। यह अध्याय आपको मूल बातें सीखने में मदद करेगा और आपको इस अध्याय से अपनी परीक्षा में कम से कम एक प्रश्न की उम्मीद करनी चाहिए।
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NCERT SOLUTION
आरोह पाठ-14 फणीश्वर नाथ रेनू
1. कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज़ आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।
उत्तर:- कुश्ती के समय ढोल की आवाज़ और लुट्टन के दाँव-पेंच में अद्भुत सामंजस्य था। लुट्टन को ढोल की प्रत्येक थाप एक नया दाँव-पेंच सिखाती थी,उसमें नवीन ऊर्जा और उत्साह का संचार करती थीं।
लुट्टन के ढोल की आवाज़ और उसकी कुश्ती के दाँव-पेंचों में अनोखा तालमेल था,जैसे-
1. चट धा, गिड़ धा- आजा भिड़ जा।
2. चटाक चट धा- उठाकर पटक दे।
3. चट गिड़ धा- मत डरना।
4. धाक धिना तिरकट तिना- दाँव काटो,बाहर हो जाओ।
5. धिना धिना, धिक धिना- चित्त करो।
ढोल के ध्वन्यात्मक शब्द हमारे मन में उत्साह के संचार के साथ आनंद का संचार भी करते हैं।ये ताल और थाप लुट्टन को पुन:नई
उम्मीद देती थी और विपक्षी पहलवान के सामने खड़ा होने और उसे धूल चटाने का साहस देती थी।
2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?
उत्तर:- कहानी में लुट्टन के जीवन में अनेक परिवर्तन आए -
1.लुट्टन के माता-पिता का बचपन में देहांत हो गया था।
2. सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया गयाऔर सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए ही उन्होंने पहलवान बनने का निश्चय किया था।
3.उन्होंने बिना गुरु के कुश्ती सीखी थी। वे ढोल को अपना गुरु मान कर हरसमय उसे अपने समीप रखते थे।
4.अल्पायु में उन्हें पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना पड़ा और दो छोटे बच्चों का भार संभालना पड़ा, उन्हें भी लुट्टन ने पहलवानी के दाँव-पेंच सिखाये।
5. जीवन के पंद्रह वर्ष राजा की छत्रछाया में सुखपूर्वक राजसी भोग करते हुए बिताये परंतु राजा के निधन के बाद उनके पुत्र ने उन पर होने वाले खर्च को फिजूलखर्ची मानकर उन्हें राजसी सुविधाओं से वंचित कर दिया।
6. गाँव के बच्चों को पहलवानी सिखायी।
7. अपने बच्चों की मृत्यु के असहनीय दुःख का सामना साहसपूर्वक किया।
8. महामारी के समय अपनी ढोलक द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया,उन्हें मृत्यु से लड़ने का साहस दिया।
3. लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
उत्तर:- लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज या थाप से सीखे थे। ढोल से निकली हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी। जब ढोल पर थाप पड़ती थी तो पहलवान की नसें उत्तेजित हो जाती थी,उसका मन सामने वाले को पछाड़ने के लिए मचलने लगता था। इसलिए लुट्टन पहलवान ने ऐसा कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है।
4. गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहात के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?
उत्तर:- गाँव में महामारी और सूखे के कारण निराशाजनक माहौल तथा मृत्यु का सन्नाटा छाया हुआ था। इसी प्रकार का सन्नाटा पहलवान के मन में अपने बेटों की मृत्यु के कारण छाया था। ऐसे दुःख के समय में पहलवान की ढोलक निराश गाँव वालों के मन में जीने की उमंग जागती थी। ढोलक जैसे उन्हें महामारी से लड़ने की और कभी न हारने की प्रेरणा देती थी। इसलिए शायद गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों का देहांत होने के बावजूद लुट्टन पहलवान महामारी को चुनौती देने,अपने बेटों की असामयिक मृत्यु का दुःख कम करने और गाँव वालों को महामारी से लड़ने की प्रेरणा देने के लिए ढोल बजाता रहा।
5. ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?
उत्तर:- ढोलक की आवाज़ से रात की विभीषिका और दुख का सन्नाटा कम होता था। महामारी से पीड़ित लोगों की नसों में बिजली सी दौड़ जाती थी, उनकी आँखों के सामने दंगल का दृश्य साकार हो जाता था।वे मानो मृत्यु अथवा बीमारी रूपी शत्रु से लड़ने के लिए तत्पर हो जाते और वे अपनी पीड़ा भूल कर खुशी-खुशी मौत का सामना करते थे। इस प्रकार ढोल की आवाज, मृतप्राय गाँववालों की नसों में संजीवनी शक्ति भरकर उन्हें महामारी से लड़ने की प्रेरणा देती थीं।
6. महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?
उत्तर:- महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में बड़ा अंतर होता था। सूर्योदय के समय कोलाहल,हाहाकार तथा हृदय विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर जीवन की चमक होती थी, लोग एक-दूसरे को सांत्वना बँधाते रहते थे
और एकदूसरे के दुख में शामिल होते थे परन्तु सूर्यास्त होते ही सारा परिदृश्य बदल जाता था। लोग अपने घरों में दुबक कर बैठ जाते थे। तब वे भी नहीं करते थे। यहाँ तक कि माताएँ अपने दम तोड़ते पुत्र को 'बेटा' भी कहकर अन्तिम विदाई नहीं दे पाती थी। ऐसे समय में केवल पहलवान की ढोलक की आवाज सुनाई देती थी जैसे वह महामारी को चुनौती दे रही हो।
7.कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था
1. ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?
2. इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
3. कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?
उत्तर:-1. पहले मनोरंजन के नवीनतम साधन अधिक न होने के कारण कुश्ती को मनोरंजन का अच्छा साधन माना जाता था इसलिए राजा-महाराजा कुश्ती के दंगलों का आयोजन करते रहते थे। जैसे-जैसे मनोरंजन के नवीन साधनों का चलन बढ़ता गया वैसे-वैसे कुश्ती की लोकप्रियता घटती गई और फिर पहले की तरह राजा-महाराजा भी नहीं रहे जो इस प्रकार के बड़े दंगलों का आयोजन करते।
2. आज कुश्ती के स्थान आधुनिक खेल, क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस आदि खेलों ने ले लिया।
3. कुश्ती को फिर से लोकप्रिय बनाने के लिए हमें एक बार पुन: कुश्ती के दंगल आयोजनों पर बल देना होगा, पहलवानों को उचित प्रशिक्षण, उनके खान-पान का उचित ख्याल, खिलाड़ियों को उचित धनराशि तथा नौकरी में वरीयता,खेल का मीडिया में अधिक से अधिक प्रचार-प्रसार आदि कुछ उपाय किये जा सकते हैं।
8. आशय स्पष्ट करें-
आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी।अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर:- प्रस्तुत पंक्ति का आशय लोगों के असहनीय दुःख से है।टूटते तारे के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि अकाल और
महामारी से त्रस्त गाँव वालों की पीड़ा को दूर करने वाला कोई नहीं था। प्रकृति भी गाँव वालों के दुःख से दुखी थी। आकाश से टूट कर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर आना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी।लेखक के कहने का तात्पर्य यह है कि स्थिर तारे चमकते हुए प्रतीत होते हैं और टूटा तारा समाप्त हो जाता है।तारों की शक्ति का तार्किक एवं मानवीय रूप से उल्लेख किया है।
9. पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।
1. अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी।
उत्तर:- आशय - यहाँ पर रात का मानवीकरण किया गया है गाँव में हैजा और मलेरिया फैला हुआ था। महामारी की चपेट में आकार लोग मर रहे थे। चारों ओर मौत का सन्नाटा छाया था ऐसे में ओस की बूंदें आँसू बहाती सी प्रतीत हो रही थी।
2. अन्य तारे अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।
उत्तर:- आशय - यहाँ पर तारों को हँसता हुआ दिखाकर उनका मानवीकरण किया गया है। यहाँ पर तारे मज़ाक उड़ाते हुए प्रतीत हो रहे हैं।
10. पाठ में मलेरिया और हैज़े से पीड़ित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आप ऐसी किसी अन्य आपद स्थिति की कल्पना करें और लिखें कि आप ऐसी स्थिति का सामना कैसे रेंगे/करेंगी?
उत्तर:- पाठ में मलेरिया और हैजे से पीडित गाँव की दयनीय स्थिति को चित्रित किया गया है। आजकल 'मलेरिया और डेंगू' जैसी
बीमारी ने आम जनता को अपने शिकंजे में कस लिया है।
ऐसी स्थिति से निपटने के लिए मैं अपनी ओर से निम्न प्रयास करूँगा।
1. लोगों को इन बीमारियों से लड़ने के लिए जाग्रत करूँगा।
2. इन बीमारियों से पीड़ित लोगों को उचित इलाज करवाने की सलाह दूंगा।
3. स्वच्छता अभियान में सहायता करूँगा।
11. ढोलक की थाप मृत-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी - कला से जीवन के संबंध को ध्यान में रखते हुए चर्चा कीजिए।
उत्तर:- कला व्यक्ति के मन में बसी हुई स्वार्थ, परिवार, धर्म, भाषा और जाति आदि की सीमाएँ को मिटाकर मानव मन को विस्तृत और व्यापकता प्रदान करती है। व्यक्ति के मन को उदात्त और उदार बनाती है।
कला ही है जिसमें मानव मन में संवेदनाएँ उभारने, प्रवृत्तियों को ढालने तथा चिंतन को मोड़ने, अभिरुचि को दिशा देने की अद्भुत क्षमता है। आत्मसंतोष एवं आनंद की अनुभूति भी इसके ज्ञानार्जन से ही होती है और इसके मंगलकारी प्रभाव से व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास होता है। जब यह कला संगीतके रुप में उभरती है तो कलाकार गायन और वादन से स्वयं को ही नहीं श्रोताओं को भी अभिभूत कर देता है। मनुष्य आत्मविस्मृत हो उठता है। दीपक राग से दीपक जल उठता है और मल्हार राग से मेघ बरसना यह कला की साधना का ही चरमोत्कर्ष है।
भाट और चारण भी जब युद्धस्थल में उमंग, जोश से सरोबार कविता-गान करते थे तो वीर योद्धाओं का उत्साह दोगुना हो जाता था
तो युद्धक्षेत्र कहीं हाथी की चिंघाड़, तो कहीं घोड़ों की हिनहिनाहट तो कहीं शत्रु की चीत्कार से भर उठता था। यह गायन कला की परिणति ही तो है। इसी प्रकार मानव का कला के हर एक रूप काव्य, संगीत, नृत्य, चित्रकला, मूर्तिकला, स्थापत्य कला और रंगमंच से अटूट संबंध है।
12. चर्चा करें - कलाओं का अस्तित्व व्यवस्था का मोहताज नहीं है।
उत्तर:- कलाओं को फलने-फूलने के लिए भले व्यवस्था की जरुरत महसूस होती है परन्तु कलाओं का अस्तित्व केवल और केवल व्यवस्था का मोहताज नहीं होता है क्योंकि यदि कलाकार व्यवस्था द्वारा पोषित है और अपनी कला के प्रति समर्पित नहीं है तो वह कभी भी जनमानस में अपना स्थान नहीं बना पाएगा और कुछ ही समय बाद गायब हो जाएगा। किसी भी कला को विकसित होने में कलाकार का अपनी कला के प्रति एकनिष्ठ भाव, समर्पण भावना, उसकी अथक मेहनत और जन-सामान्य का प्यार, सरहाना आवश्यक तत्व होते हैं है। जिस किसी ने भी इन उपर्युक्त गुणों को पा लिया वह व्यवस्था के बिना भी सदैव अपने स्थान पर टिका रहता हैऔर अपनी अन्तिम साँसों तक कला को जीवित रखने के लिए प्रयासरत रहता है।
• भाषा की बात
1. हर विषय, क्षेत्र, परिवेश आदि के कुछ विशिष्ट शब्द होते हैं। पाठ में कुश्ती से जुड़ी शब्दावली का बहुतायत प्रयोग हुआ है। उन शब्दों की सूची बनाइए। साथ ही नीचे दिए गए क्षेत्रों में इस्तेमाल होने वाले कोई पाँच-पाँच शब्द बताइए -
•चिकित्सा
• क्रिकेट
•न्यायालय
• या अपनी पसंद का कोई क्षेत्र
उत्तर:- • कुश्ती - दंगल, दाँव-पेंच, चित-पट।
• चिकित्सा - डॉक्टर, नर्स, इलाज, परहेज, औषधि, जाँच।
• क्रिकेट - बल्ला, गेंद, विकेट, अंपायर, चौका।
• न्यायालय - जज, वकील, अभियुक्त, केस, जमानत।
• विज्ञान - आविष्कार, वैज्ञानिक, जानकारी, उपकरण, पुरस्कार।
2. पाठ में अनेक अंश ऐसे हैं जो भाषा के विशिष्ट प्रयोगों की बानगी प्रस्तुत करते हैं। भाषा का विशिष्ट प्रयोग न केवल भाषाई सर्जनात्मकता को बढ़ावा देता है बल्कि कथ्य को भी प्रभावी बनाता है। यदि उन शब्दों, वाक्यांशों के स्थान पर किन्हीं अन्य का प्रयोग किया जाए तो संभवतः वह अर्थगत चमत्कार और भाषिक सौंदर्य उद्घाटित न हो सके। कुछ प्रयोग इस प्रकार हैं -
• फिर बाज की तरह उस पर टूट पड़ा।
• राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए।
• पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
• इन विशिष्ट भाषा-प्रयोगों का प्रयोग करते हुए एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर:- आज रामपुर का दंगल दर्शनीय था। पहलवान शमशेर और रघुवीर दोनों ही रत्तीभर भी एक दूसरे से कम न थे,अचानक शमशेर ने बाज की तरह रघुवीर पर हमला बोल दिया और उसे चारों खाने चित्त कर दिया। दर्शकों ने अखाड़े को तालियों की चीत्कार से भर दिया। श्रोताओं में राजा साहब भी थे जिन्हें शमशेर ने अपनी कला से मंत्र-मुग्ध कर दिया था। राजा साहब ने भी अपनी स्नेह- दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। इस प्रकार शमशेर राज पहलवान घोषित होकर राजा की कृपा दृष्टि का पात्र बना और सुखमय जीवन व्यतीत करने लगा परंतु कुछ समय बाद ही पहलवान की स्त्री भी दो पहलवानों को पैदा करके स्वर्ग सिधार गई थी।
3. जैसे क्रिकेट की कमेंट्री की जाती है वैसे ही इसमें कुश्ती की कमेंट्री की गई है? आपको दोनों में क्या समानता और अंतर दिखाई पड़ता है?
समानता
| असमानता
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1. दोनों में ही खिलाड़ियों का परिचय दिया जाता है। 2. दोनों में हार-जीत बताई जाती है। 3. दोनों में ही निर्णायक होते हैं। 4. दोनों में खेल की स्थिति का वर्णन किया जाता है। | 1. क्रिकेट में बल्लेबाज, क्षेत्ररक्षण, गेंदबाजी आदि का वर्णन किया जाता है। जबकि कुश्ती में पहलवानों के दाँव-पेंचों का वर्णन किया जाता है। 2. क्रिकेट में खेल का स्कोर बताया जाता है और कुश्ती में चित या पट। 3. क्रिकेट में प्रशिक्षित कमेंटेटर होते हैं, जबकि कुश्ती में प्रशिक्षित कमेंटेटर निश्चित नहीं होते हैं। |
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